नये नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और डीयू का रुख जानना चाहती है कोर्ट

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[email protected] । Jun 10 2019 4:23PM

इसका मतलब है कि गणित शीर्ष चार विषयों में से एक होगा और इनके कुल जोड़ को दाखिले का आधार माना जायेगा। इसी तरह से बीकॉम (ऑनर्स) में किसी छात्र के लिये गणित/बिजनेस मैथेमैटिक्स के कुल जोड़ 45 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य था।

नयी दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के नये नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र तथा विश्वविद्यालय का रुख जानना चाहा। अदालत ने कहा कि प्रवेश के लिये पंजीकरण की शुरुआत से महज एक दिन पहले मानदंड में संशोधन किया गया जो बिल्कुल मनमाना है। वकील चरणपाल सिंह बागरी द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि अंतिम समय में मानदंड में संशोधन का विश्वविद्यालय का फैसला नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिये पंजीकरण की 30 मई से शुरू हो गया है।यह प्रक्रिया 14 जून को खत्म होगी।

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अदालत ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से पेशअधिवक्ता ब्रजेश कुमार और विश्वविद्यालय को अगली सुनवाई के दिन यानी 14 जून तक याचिका के संबंध में अपने-अपने जवाब दाखिल करने को कहा है। ऐसा देखा गया कि कुछ पाठ्यक्रमों के लिये पात्रता मानदंड में किये गये बदलाव से छात्र अनजान हैं। पिछले साल तक अगर किसी छात्र को गणित में 50 प्रतिशत अंक आते थे तो वह छात्र या छात्रा अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) में आवदेन कर सकता है लेकिन इस साल ‘बेस्ट ऑफ फोर’ के लिये इस विषय को अनिवार्य कर दिया गया है।

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इसका मतलब है कि गणित शीर्ष चार विषयों में से एक होगा और इनके कुल जोड़ को दाखिले का आधार माना जायेगा। इसी तरह से बीकॉम (ऑनर्स) में किसी छात्र के लिये गणित/बिजनेस मैथेमैटिक्स के कुल जोड़ 45 प्रतिशत अंक के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। इस साल इस मानदंड में संशोधन किया गया है जिसकी नयी शर्तों के मुताबकि छात्र को गणित/बिजनेस मैथेमैटिक्स में 50 प्रतिशत या अधिक अंक के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए और कुल जोड़ अंक 60 प्रतिशत होना चाहिए।

याचिका में संशोधित पात्रता मानदंड को रद्द करने और छात्रों को पूर्व मानदंड के अनुरूप ही आवेदन की इजाजत देने का अनुरोध किया गया है। प्राप्त खबरों के अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक एवं कार्यकारी परिषद के सदस्यों ने इन नियमों को ‘‘मनमाना’’ और ‘‘अवांछित’’ बताते हुए हाल में कुलपति को पत्र लिखकर इन्हें बदलने की मांग की है। पत्र में कुलपति से ‘‘तत्कालिक आधार’’ पर अकादमिक सत्र के लिये पूर्ववर्ती मानदंड बहाल करने की मांग की गयी है।

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