गंगा दशहरा पर्व पर इस विधि से करें पूजन, पूरी होगी हर मनोकामना

Ganga Dussehra
शुभा दुबे । Jun 19 2021 4:05PM

गंगा मैय्या की महिमा के बारे में पद्म पुराण में लिखा है कि अविलंब सद्गति का उपाय सोचने वाले सभी स्त्री−पुरुषों के लिए गंगा ही ऐसा तीर्थ है, जिनके दर्शन भर से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भविष्य पुराण में भी माँ गंगा की अपरमपार महिमा का उल्लेख है।

गंगा दशहरा पर्व को भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गँगा किनारे मेले आदि लगाये जाते हैं और श्रद्धालु आधी रात से ही पवित्र नदी में स्नान आदि कर मंदिरों में दर्शन-पूजन आरम्भ कर देते हैं। लेकिन पिछले वर्ष की भाँति इस साल भी गँगा किनारे मेले या बड़े जमावड़े की अनुमति नहीं है। हाल ही में आयोजित महाकुंभ के दौरान जिस तरह की स्थिति रही उसको देखते हुए प्रशासन काफी चौकस है और कोरोना प्रोटोकाल्स का पूरी तरह पालन कराया जा रहा है। इस वर्ष गंगा दशहरा पर्व 21 जून को पड़ रहा है।

गंगा दशहरा पर्व का महत्व

धर्म ग्रंथों के मुताबिक राजा भगीरथ ने अपने पुरखों को मुक्ति प्रदान करने के लिए भगवान शिव की आराधना करके गंगा जी को स्वर्ग से उतारा था। जिस दिन वे गंगा को इस धरती पर लाए, वही दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा का आगमन हुआ था। अतः इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न वस्त्र आदि का दान, जप तप, उपासना और उपवास किया जाता है। इससे पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन गंगा पूजन का विशेष महत्व है। महर्षि व्यास ने गंगा की महिमा के बारे में पद्म पुराण में लिखा है कि अविलंब सद्गति का उपाय सोचने वाले सभी स्त्री−पुरुषों के लिए गंगा ही ऐसा तीर्थ है, जिनके दर्शन भर से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि जो मनुष्य इस दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार गंगा स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर वांछित फल को पाता है।

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गंगा दशहरा पूजन विधि

इस दिन गंगा तटवर्ती प्रदेश में अथवा सामर्थ्य न हो तो समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके सुवर्णादि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावय विभूषित, रत्न कुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रों से सुशोभित तथा वर और अभय मुद्रा से युक्त श्री गंगाजी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें अथवा किसी साक्षात मूर्ति के करीब बैठ जाएं और फिर ओम नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः से आह्वान आदि षोड्शोपचार पूजन करें। तत्पश्चात ओम नमो भगवते ऐं ह्रीं श्रीं हिलि, हिलि, मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा मंत्र से पांच पुष्पांजलि अर्पण करके गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ का और जहां से उनका उद्भव हुआ है, उस हिमालय का नाम मंत्र से पूजन करें। फिर दस फल, दस दीपक और दस सेर तिल का गंगायै नमः कहकर दान करें। साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। सामर्थ्य हो तो सोने का कछुआ, मछली और मेंढ़क आदि का भी पूजन करके जल में विसर्जित करें।

इसके अतिरिक्त दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूं दस ब्राह्मणों को दान दें। इस दिन पुण्य सलिला गंगा का जन्मदिन मनाया जाता है। गंगा को पृथ्वी पर लाने की योजना महाराजा सगर ने बनाई थी। महाराजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने मिलकर अपने श्रम को सफल बनाया था।

गंगा दशहरा पर्व व्रत कथा

एक बार महाराज सगर ने बड़ा व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला, पर इन्द्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल छान मारा, पर अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खोदने पर उन्होंने देखा कि साक्षात भगवान महर्षि कपिल के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर चोर चोर कहने लगी। महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गयी।

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इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। उस तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने गंगा की मांग की। इस पर ब्रह्मा ने पूछा− राजन ! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो परन्तु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल लेगी ? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शंकर का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।

महाराज भगीरथ ने वैसा ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमण्डल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका। अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवाजी की जटाओं से छूटकर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ीं।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ के कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देतीं, मुक्ति भी देती हैं। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

-शुभा दुबे

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