गोपाष्टमी पर्व पर होती है गौ माता की पूजा, जानिए गोपाष्टमी का महत्व

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गौ माता का हमारे जीवन में विशेष स्थान है हम अपने आवश्यकताओं हेतु गाय पर निर्भर करते हैं। गोपाष्टमी पर्व गौ माता को समर्पित एक त्यौहार है। गोपाष्टमी का त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन देश भर में श्रीकृष्ण मंदिरों में विभिन्न प्रकार के आयोजन होते हैं।

आज गोपाष्टमी है, गोवर्धन पूजा के कुछ दिनों बाद गोपाष्टमी मनायी जाती है। गोपाष्टमी पर्व का बृजवासियों तथा वैष्णव लोगों के लिए खास महत्व होता है। इस दिन गौ माता की पूजा होती है तो आइए हम आपको गोपाष्टमी पर्व के बारे में विशेष जानकारी देते हैं। 


जाने गोपाष्टमी के बारे में 

गौ माता का हमारे जीवन में विशेष स्थान है हम अपने आवश्यकताओं हेतु गाय पर निर्भर करते हैं। गोपाष्टमी पर्व गौ माता को समर्पित एक त्यौहार है। गोपाष्टमी का त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन देश भर में श्रीकृष्ण मंदिरों में विभिन्न प्रकार के आयोजन होते हैं। इसके अलावा गो माता की पूजा कर गाय के महत्व पर चर्चा की जाती है। गोपाष्टमी के दिन श्रीकृष्ण मंदिरों में विविध प्रकार के भोग भी लगाए जाते हैं। 

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गोपाष्टमी का मुहूर्त

गोपाष्टमी तिथि– 4 नवंबर 2019

गोपाष्टमी तिथि शुरू हो रही है– सुबह 02:56 (4 नवंबर 2019)

गोपाष्टमी तिथि का अंत हो रहा है– सुबह 04:57 (5 नवंबर 2019)


गोपाष्टमी का महत्व 

हमारे हिन्दू धर्म तथा शास्त्रों में गाय को सभी प्राणियों की माता कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गाय की देह में समस्त देवी-देवता वास करते है। माना जाता है कि जो व्यक्ति सुबह स्नान कर गौ माता को स्पर्श करता है, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है उस जगह से सभी पाप खत्म हो जाते हैं। गाय को चारा खिलाने पर बहुत पुण्य मिलता है। यह पुण्य हवन या यज्ञ करने के समान होता है। जिस घर में सभी सदस्यों के भोजन करने से पहले गाय के लिए खाना निकाला जाता है, उस परिवार में कभी भी अन्न-धन की कमी नहीं होती है।


गोपाष्टमी से जुड़ी कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गो चारण लीला का आरम्भ किया था इसलिए इस तिथि को गोपाष्टमी कहा जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन श्रीकृष्ण बृजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठा लिया था। गोपाष्टमी के दिन ही इंद्र श्रीकृष्ण के समक्ष अपनी हार स्वीकार की थी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे उतार दिया था तभी से गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन गाय के साथ बछड़ों की भी पूजा होती है। इसलिए गोपाष्टमी पर्व को गोवर्धन पूजा के सात दिन बाद मनाया जाता है। 

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कैसे करें गोपाष्टमी की पूजा

गायों की रक्षा करने के कारण श्रीकृष्ण गोविन्द कहलाए। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत धारण करने के बाद कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया था। गोमाष्टमी के दिन प्रातः स्नान कर गाय को स्नान कराएं। उसके बाद गाय और उसके बछड़े को तैयार किया जाता है। गाय को पैरों में घुंघरू पहनाए जाते हैं तथा कई प्रकार के आभूषणों से भी सजाया जाता है। साथ ही मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजा कर उन्हें भोजन कराया जाता है। उस दिन गौ माता को हरा चारा खिलाया जाता है। इसके अलावा गाय की परिक्रमा कर उन्हें बाहर घुमाने ले जाते हैं। ग्वालों को भी दान दिए जाने की परम्परा है।

प्रज्ञा पाण्डेय

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