तुलसी विवाह से मिलता है कन्यादान का पुण्य

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[email protected] । Nov 8 2019 11:14AM

देवउत्थानी एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है। तुलसी विवाह का वही महत्व होता है जो कन्यादान से होता है। इसलिए जिनके घर में कन्याएं नहीं वह तुलसी विवाह करा कर कन्यादान का पुण्य कमा सकते हैं।

हिन्दू धर्म में तुलसी विवाह को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। हर साल हरि प्रोबधनी एकादशी के दिन तुलसी का शालीग्राम के साथ विवाह कराना शुभ माना जाता है तो आइए हम आपको तुलसी विवाह के महत्व और पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें तुलसी विवाह के बारे में 

तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे की शालिग्राम भगवान से शादी कराई जाती है। शालिग्राम भगवान को श्री विष्णु का एक रूप माना जाता है। सामान्य विवाह की तरह ही तुलसी विवाह भी होते हैं। उत्तर भारत में लोग बहुत से श्रद्धा से तुलसी विवाह सम्पन्न कराते हैं। 

तुलसी विवाह से होता है लाभ 

देवउत्थानी एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है। तुलसी विवाह का वही महत्व होता है जो कन्यादान से होता है। इसलिए जिनके घर में कन्याएं नहीं वह तुलसी विवाह करा कर कन्यादान का पुण्य कमा सकते हैं।

तुलसी विवाह से जुड़ी कथा

पुराणों में तुलसी विवाह के सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है। उसके अनुसार तुलसी का नाम वृंदा था। वह एक राक्षस कुल में पैदा हुआ लेकिन भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वृंदा की शादी जलंधर नाम के राक्षस से की गयी। जलंधर बहुत पराक्रमी था तथा वृंदा की भक्ति से अजेय हो गया। उसके जलंधर अत्याचार करने लगा तब देवताओं ने सोचा कि जलंधर को कैसे परास्त किया जाय। जलंधर को हराने के लिए सबसे पहले वृंदा का सतीत्व नष्ट करना पड़ेगा। इसके लिए भगवान विष्णु जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास गए। इसके बाद जलंधर का नाश हो गया। लेकिन जब भगवान विष्णु के इस छल के बारे में पता चला तो वह बहुत क्रुद्ध हुई और उन्होंने विष्णु को पाषाण होने का श्राप दिया।

लेकिन विष्णु जी के पत्थर बनने से सृष्टि रूक गयी तब देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की और उन्होंने विष्णु को श्राप मुक्त कर दिया। विष्णु को श्राप मुक्त करने के बाद वृंदा जल कर रख बन गयी। उसी राख से तुलसी का पौधा बना। विष्णु जी ने भक्तों कहा कि अब वह तुलसी के पत्ते के बिना कोई भी प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे। देवताओं ने वृंदा का सतीत्व तथा पवित्रता बचाने के लिए शालीग्राम के साथ तुलसी के पौधे का विवाह कराया। तभी से हरि प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधे से शालीग्राम की शादी करायी जाती है।

ऐसे करें तुलसी जी का विवाह

तुलसी विवाह के दिन सबसे पहले सुबह उठें। इसके बाद नहा कर साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद तुलसी जी को लाल चुनरी ओढ़ाएं। इसके बाद तुलसी के पौधे का श्रृंगार करें। फिर शालिग्राम को तुलसी के पौधे के साथ रखें। उसके बाद पंडित जी को बुलाकर विवाह सम्पन्न कराएं। विवाह के दौरान तुलसी के पौधे और शालिग्राम की सात परिक्रमा कराएं और तुलसी जी की आरती गाएं।

तुलसी के औषधीय गुण

तुलसी स्वास्थ्य हेतु बेहद लाभदायी है। चाय में तुलसी की दो पत्तियां डालने से स्वाद बढ़ता है। तुलसी की पत्तियां शरीर को ऊर्जा देती हैं और बीमारियों से दूर रखती है। तुलसी के औषधीय गुणों के कारण आर्युवेद में तुलसी को बहुत महत्व दिया जाता है।

प्रज्ञा पाण्डेय

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