शिकारा की कहानी आपको झकझोर कर रख देगी, विधु विनोद ने किया कमाल का निर्देशन

By रेनू तिवारी | Feb 07, 2020

फिल्म शिकारा– ए लव लेटर फ्रॉम कश्मीर बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है। शिकारा एक ऐसी फिल्म है जिसे देखकर जब आप सिनेमाघर से बाहर निकलेंगे तो यह आपके जहन में अपनी छाप छोड़ जाएगी। फिल्म में प्यार है, सुख है, इमोशंस हैं, दर्द है, तकलीफ है और एक ऐसी कहानी है जिसे देखकर लगता है कि जिंदगी पलभर में कैसे बदल जाती है। हंसती-खेलती जिंदगी कैसी दुखों के सागर में डूब जाती है। फिल्म शिकारा की कहानी आपकी आत्मा को झकझोर कर रख देगी। 

कहानी

कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी फिल्म शिकारा की कहानी की बात करें तो शिव और शांति फिल्म की अहम कड़ी हैं, जो कश्मीर की खूबसूरत वादियों में शादी करके अपनी खूबसूरत जिंदगी बिता रहे हैं। प्यार में डूबें शिव और शांति को नहीं पता कि उनकी जिंदगी में एक ऐसा तूफान आने वाला है जो उन्हें तबाह कर देगा। फिल्म में दिखाया गया है कि एक तरफ शिव और शांति के बीच प्यार बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ भारत के स्वर्ग कश्मीर में आतंकवाद अपने पैर पसार रहा है। ये बढ़ता आतंकवाद एक दिन कश्मीरी पंडितों की जिंदगी में तूफान ले आता है और रातों-रात कश्मीर से कश्मीरी पंड़ितो को मिटा दिया जाता है। कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को खदेड़ दिया जाता है और जिसने भी इसका विरोध किया उसे मार दिया जाता है। शिव और शांति के साथ भी ऐसा ही होता है और उन्हें भी अपना घर छोड़कर रिफ्यूजी कैंप में रहना पड़ता है।

 

रिव्यू

फिल्म शिकारा का निर्देशन विधु विनोद चोपड़ा ने किया है। विधु विनोद चोपड़ा खुद कश्मीर से ताल्लुख रखते हैं उनका जन्म और पढ़ाई-लिखाई कश्मीर में हुई है इसलिए वह कश्मीर में जो कुछ हुआ उसकी बारीक जड़ो से वाकिफ है। फिल्म को उन्होंने बखूबी डायरेक्ट किया है। किसी बसी- बसाई जिंदगी उजड़ जाने का दर्द क्या होता है ये फिल्म देखकर आप खुद में फील कर सकते हो। फिल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है आप कहानी से खुद को जोड़ते चलें जाएंगे। कश्मीरी पंड़ितो के पलायन का मुद्दा एक गंभीर विषय है जिस पर विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्म बनाई है। इसके लिए वह बधाई के हकदार भी हैं। फिल्म में लीड रोल निभाने वाले शिव और शांति का किरदार आदिल और सादिया ने निभाया है। जिन्होंने अपने काम के साथ न्याय किया है। दोनों अपनी लॉन्चिंग फिल्म के साथ जाने अनजाने ही सही अभिनय की उस अवस्था पर पहुंच गए हैं, जहां पहुंचना सभी के बस की बात नहीं होती। फिल्म के सपोर्टिंग एक्टर फिल्म को एक अलग ऊंचाइयों पर ले जाते है। 

 

फिल्म को 4.5 स्टार

 

क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ

जनवरी 1990 में कश्मीर में इंसानियत की सरेआम हत्या हुई थी, लाखों लोगों की जिंदगी रातों रात बदल गयी थी। किसी मां को अपना लाल खोना पड़ा था, तो किसी पत्नी के माधे का सिंदूर हमेशा के लिए मिट गया था। किसी के भाई को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था तो किसी के बाप को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया गया था। उस रात रूह को चीर देने वाली ऐसी आवाजें उठी थी जिसने शायद भगवान के सीने तक को चीर दिया होगा लेकिन कश्मीर के बेरहम आतंकियों को वो आवाजे नहीं सुनाई पड़ी क्योंकि उनके सिर पर सियासत का काला खून सवार था। 

 

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