मां कात्यायनी की आराधना से मिलते हैं चारों पुरुषार्थ

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देवी कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। दायीं ओर का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में स्थित होता है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में विद्यमान होता है।

शक्ति के छठे रूप को मां कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना से जीवन के चारों पुरुषार्थों अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की आसानी से प्राप्त हो जाती है। तो आइए हम आपको मां कात्यायनी की महिमा के बारे में बताते हैं।

कात्यायनी का स्वरूप

मां कात्यायनी अद्भुत रूप वाली हैं। नवरात्र के छठे दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में आज्ञा चक्र का खास महत्व होता है। जातक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने के कारण देवी कात्यायनी के आसानी से दर्शन मिलते हैं। मां कात्यायनी का रूप भव्य तथा प्रभावशाली होता है। उनका रूप सोने की तरह चमकीला है। देवी कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। दायीं ओर का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में स्थित होता है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में विद्यमान होता है। मां के बायीं ओर वाले हाथ में तलवार होता है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल मौजूद रहता है। मां कात्यायनी सदैव शेर पर सवार रहती हैं। 

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पूजा की विधि

मां कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए विशेष प्रकार से आराधना करें। इसके लिए पहले फूलों से देवी मां को प्रणाम कर मंत्र का जाप करें। नवरात्र के छठे दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। देवी को फूल और जायफल प्रिय हैं इसलिए उन्हें पुष्प तथा जायफल अर्पित करें। देवी के साथ ही शंकर जी की भी पूजा करें। देवी कात्यायनी को शहद पसंद है इसलिए इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनकर मां को शहद चढ़ाएं।

मां कात्यायनी की पूजा का महत्व 

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की विधिवत स्तुति करने से सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जिन साधकों को शादी से जुड़ी परेशानी है वह मां को हल्दी की गांठ चढ़ाएं। मां दुर्गा के छठवें रूप की पूजा से राहु और काल सर्प दोष से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं। देवी की विधिवत पूजा से कार्यक्षेत्र में साधक सफल होता है तथा रास्ते में आने वाली कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि मां कात्यायनी की आराधना से त्वचा, मस्तिष्क, संक्रमण, अस्थि आदि बीमारियों में लाभ मिलता है।

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मां कात्यायनी से जुड़ी पौराणिक कथा

जब महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया तो ब्रह्म, विष्णु और महेश ने अपना तेज देकर देवी कात्यायनी को पैदा किया। महर्षि कात्यायन की यह इच्छा थी कि देवी उनके घर पुत्री के रूप में पैदा हों। इसके बाद देवी अश्विन मास की कृष्ण चतुर्दशी को पैदा हुईं। कात्यायन ऋषि ने उनका पालन पोषण किया। उसके बाद महर्षि कात्यायन की प्रार्थना स्वीकार कर देवी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया था। उसके बाद शुम्भ तथा निशुम्भ नाम के राक्षस भी इन्द्र, नवग्रह, वायु तथा अग्नि को परेशान करने लगे। इन असुरों से त्रस्त देवताओं ने हिमालय पर्वत पर जाकर विष्णुमाया नाम की दुर्गा की आराधना की। उसके बाद मां कात्यायनी ने ही देवताओं को इन दुष्ट असुरों से मुक्ति दिलायी थी।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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