जानें हरिद्वार कुम्भ के बारे में सब कुछ, 12 साल बाद लगने वाले महाकुम्भ की अद्भूत है महिमा

Haridwar Maha Kumbh

कुंभ के तीनों शाही स्नान महाशिवरात्रि, संक्रांति और वैशाख पूर्णिमा पर पड़ते हैं। इस बार तो महाशिवरात्रि पर पड़े पहले शाही स्नान को गुरुवार का दिन था और इसी दिन बृहस्पतिवार प्रवेश कुंभ राशि में हुआ था। यह तमाम तिथियां वास्तु के हिसाब से बहुत विशेष मानी जाती हैं और उत्तम पुण्य का फल प्रदान करती हैं।

कुंभ शायद संपूर्ण विश्व में एकमात्र ऐसा उत्सव है, जहां बिना किसी सरकार या बड़ी संस्था के प्रचार-प्रसार के स्वेच्छा से, करोड़ों लोग आते हैं। पुराणों में कहा गया है कि कुंभ में स्नान करने के बाद कोई भी व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त हो सकता है, किन्तु इस लोक में भी इसकी महिमा कम नहीं है। कुम्भ की सभी बड़ी विशेषता यह है कि साधारण स्नानों की तरह प्रत्येक वर्ष कुंभ नहीं लगता है, बल्कि 12 साल पर महाकुंभ लगता है, जबकि अर्ध कुम्भ 6 सालों के बाद आयोजित होते हैं। वास्तु के हिसाब से अगर बात करें तो इस समय वृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, और इसी से कुंभ महायोग का जन्म होता है। बता दें कि कुंभ के तीनों शाही स्नान महाशिवरात्रि, संक्रांति और वैशाख पूर्णिमा पर पड़ते हैं। इस बार तो महाशिवरात्रि पर पड़े पहले शाही स्नान को गुरुवार का दिन था और इसी दिन बृहस्पतिवार प्रवेश कुंभ राशि में हुआ था। यह तमाम तिथियां वास्तु के हिसाब से बहुत विशेष मानी जाती हैं और उत्तम पुण्य का फल प्रदान करती हैं।

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इसी के अनुसार वृहस्पति का प्रवेश कुंभ राशि में आने वाले 5 अप्रैल को होगा, और इसी दिन सूर्य भी कुंभ राशि में ही रहेंगे। यह संयोग भी अति उत्तम माना गया है। इसी क्रम में अगर आगे देखते हैं तो 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या के दिन शाही स्नान वृहस्पति का अर्थ योग बन रहा है, अतः स्नान उत्तम योग में संपन्न होने वाला है। जबकि 13 अप्रैल को नव संवत्सर और बैशाखी स्नान संपन्न होंगे। इसी क्रम में जब सूर्य का वृष राशि में प्रवेश हो जाएगा, तो कुंभ का पूर्ण महायोग बनेगा और यह दूसरा शाही स्नान होगा। देर रात तक चलते रहने वाले इस शाही स्नान में सभी 13 अखाड़े महायोग में करेंगे स्नान। इसी क्रम में 27 अप्रैल को केवल बैरागी अणियों का शाही स्नान तीन अखाड़े करेंगे। यह स्नान भी पूर्ण महायोग में पड़ेगा। हालाँकि सामान्य जनता के लिए पूर्ण महायोग 14 मई तक बने रहने की बात कही गई है और यह वास्तु के हिसाब से उत्तम है। सबसे अद्भुत बात यह है कि सूर्य नारायण जब वृष राशि में प्रवेश करते हैं, ठीक उसी वक्त 12 वर्ष बाद बना यह महायोग संपन्न हो जाता है, और यही कुंभ की वो महिमा है जो 12 साल तक श्रद्धालु इंतजार करते हैं।

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कुंभ की महिमा केवल वास्तु के हिसाब से नहीं बल्कि कल्चर के हिसाब से भी बेहद महत्वपूर्ण है। हरिद्वार महाकुंभ में अगर आप पहली बार जा रहे हैं तो आप देखकर दंग रह जाएंगे कि न केवल भारत से बल्कि संपूर्ण विश्व से तमाम लोग भारत के इस अद्भुत अवसर पर खुद को साक्षी बनाने में गर्व का अनुभव करते हैं। कुंभ की महिमा सर्वव्यापी है, अति प्राचीन है। देवासुर संग्राम के बारे में हम जानते हैं और जब समुद्र-मंथन हुआ, तब समुद्र मंथन के पश्चात अन्य चीजों के साथ अमृत उत्पन्न हुआ और उसी अमृत को लेकर देवताओं और असुरों में छीना झपटी मच गई। सबसे पहले असुर अमृत को लेकर भाग खड़े हुए, जबकि देवता उनके पीछे-पीछे अमृत को पुनः प्राप्त करने के प्रयास में लग गए।  

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एक समय ऐसा भी आया, जब देवताओं ने असुरों को पकड़ लिया और अमृत के घड़े को दोनों तरफ से खिंचा जाने लगा। इसी छीना झपटी में से अमृत की कुछ बूंदे चार स्थानों पर गिर गईं। इन्हीं जगहों पर नदियों के संगम के तट पर तभी से कुंभ का आयोजन होता है। हकीकत यह है कि कुंभ आस्था के पर्व के साथ-साथ एक बेहतरीन टूरिस्ट प्लेस भी है। हालाँकि वर्तमान समय में कोरोना वायरस को लेकर यह थोड़ा कम हुआ है, लेकिन श्रद्धालु कुंभ की महिमा को लेकर अद्भुत रूप से उत्सुक हैं। पर अगर आप कुम्भ में स्नान करने जा रहे हैं, तो कोरोना के तहत जारी गाइडलाइंस के पालन में ढिलाई ना बरतें। नहीं तो सरकार द्वारा आप पर जुर्माना लगाया जा सकता है।

विंध्यवासिनी सिंह 

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