Ekadashi Vrat: जीवन चक्र के बंधन से मुक्ति का मार्ग है एकादशी का व्रत, जानिए कब और कैसे हुई इसकी शुरूआत

Ekadashi Vrat
Creative Commons licenses

आमतौर पर एकादशी का व्रत करने वाले लोग शुक्ल पक्ष की एकादशी से व्रत शुरू करते हैं। वहीं ज्योतिष की मानें तो इस व्रत की शुरूआत उत्पन्ना एकादशी से करनी चाहिए। मार्गशीर्ष महीने में उत्पन्ना एकादशी पड़ती है।

एकादशी का व्रत बेहद पुण्यदायी माना जाता है। मान्यता के अनुसार, एकादशी का व्रत आपको जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करता है। पूरे साल में कुल 24 एकादशी के व्रत पड़ते हैं। हर महीने की शुक्ल पक्ष में एकादशी व्रत और कृष्ण पक्ष में एक एकादशी पड़ती है। इन सभी एकादशियों के नाम और महत्व भी अलग-अलग होते हैं। आमतौर पर एकादशी का व्रत करने वाले लोग शुक्ल पक्ष की एकादशी से व्रत शुरू करते हैं। 

वहीं ज्योतिष की मानें तो इस व्रत की शुरूआत उत्पन्ना एकादशी से करनी चाहिए। मार्गशीर्ष महीने में उत्पन्ना एकादशी पड़ती है। वहीं इसे पहली एकादशी मानी जाती है। ऐसे में अगर आप भी एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते हैं। तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि एकादशी व्रत की शुरूआत कैसे हुई थी, इसे कैसे रखा जाता है और कब से इस व्रत की शुरूआत करनी चाहिए।

इसे भी पढ़ें: Chakshushopanishad Mantra: आंखों की रोशनी बढ़ाने और संक्रमण दूर करने के लिए करें इस मंत्र का जप, तेज होगी बुद्धि

एकादशी व्रत की शुरुआत

आपको बता दें कि एकादशी व्रत को लेकर एक कथा काफी ज्यादा प्रचलित है। कथा के मुताबिक एक बार भगवान श्रीहरि विष्णु और मुर नामक असुर का लंबे समय तक युद्ध चला। जब भगवान विष्णु असुर से युद्ध करते-करते थक गए, तो वह बद्रीकाश्रम गुफा में जाकर आराम करने लगे। तभी मुर असुर भगवान विष्णु को खोजते हुए उस गुफा में पहुंच गया। उस दौरान भगवान श्रीहरि निद्री में लीन थे, तो असुर ने उन्हें निद्रा में ही मारने का प्रयास किया। तब भगवान श्रीहरि के शरीर से एक देवी का जन्म हुआ। उन देवी ने मुर नामक असुर का वध कर दिया।

देवी के इस कार्य से प्रसन्न होकर श्रीहरि ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि मार्गशीर्ष माह की एकादशी के दिन तुम्हारा जन्म हुआ है, इस कारण तुम एकादशी के नाम से जानी जाओगी। साथ ही यह तिथि आपको समर्पित होगी। श्रीहरि ने कहा मार्गशीर्ष माह की एकादशी को जो व्यक्ति मेरी विधि-विधान से पूजन और व्रत करेगा। उसके सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होगी। देवी एकादशी भगवान श्रीहरि विष्णु की माया के प्रभाव से जन्मी थीं, इसलिए एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति सभी तरह की मोहमाया से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।

एकादशी व्रत का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में पांडवों को एकादशी के व्रत का महत्व बताया था। एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि कोई ऐसा मार्ग बताएं, जो सभी दुखों और त्रिविध तापों से मुक्ति का मार्ग हो। साथ ही हजारों यज्ञों के अनुष्ठान के समान पुण्यफल प्राप्त हों और व्यक्ति को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को एकादशी व्रत का महत्व बताया था। साथ ही इसे पूरे विधि-विधान से करने की सलाह दी थी।

जानिए एकादशी व्रत के नियम

बता दें कि दशमी तिथि से शुरु होकर द्वादशी एकादशी व्रत के नियम तक चलते हैं। दशमी तिथि के सूर्यास्त के समय सात्विक भोजन कर रात में जमीन पर आसन बिछाकर सोना चाहिए। फिर सुबह जल्दी स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद श्रीहरि विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

वहीं क्षमतानुसार फलाहार लेकर या बिना फलाहार के पूरा दिन व्रत रखें। रात में भगवान नारायण का ध्यान करें और कीर्तन आदि करें। फिर अगले दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसे सामर्थ्य अनुसार दान दें। फिर ब्राह्मण के पैर छूकर आशीर्वाद लें। इसके बाद श्रीहरि नारायण का ध्यान करते हुए व्रत खोलें।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़