महाकाल भी खेलते हैं होली, जानिये इसका महत्व और इतिहास

Lord Mahakaal also play Holi, know its importance and history
कमल सिंघी । Feb 22 2018 12:46PM

दुनिया भर में मनाए जाने वाले होली के त्यौहार की शुरुआत हमेशा धार्मिक नगरी उज्जैन से होती है। यहाँ सबसे पहले होली के त्यौहार की शुरुआत विश्वप्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से होने की परंपरा है।

उज्जैन। दुनिया भर में मनाए जाने वाले होली के त्यौहार की शुरुआत हमेशा धार्मिक नगरी उज्जैन से होती है। यहाँ सबसे पहले होली के त्यौहार की शुरुआत विश्वप्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर से होने की परंपरा है। बाबा महाकाल के दरबार में होली का उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव में स्वयं भगवान महाकालेश्वर होली खेलते हैं। दरअसल यहाँ संध्या आरती में पण्डे-पुजारी महाकाल के साथ होली खेलते हैं। इस दिन हजारों की संख्या में भक्त भक्ति में लीन होकर अबीर गुलाल के साथ होली मनाते हैं। आरती के बाद यहाँ होलिका दहन किया गया जाता है और भक्त बाबा के भजनों में झूमते नजर आते हैं।

महाकाल के दरबार में एक दिन पहले मनाते हैं होली

उज्जैन के महाकाल मंदिर में होली के त्यौहार की शुरुआत एक दिन पहले ही हो जाती है। यहां परंपरा अनुसार संध्या आरती में बाबा महाकाल को रंग लगाया जाता है। श्रद्धालु और पण्डे पुजारी आरती में लीन होकर अबीर गुलाल और फूलों के साथ होली खेलते हैं। आरती के बाद मंदिर परिसर में मंत्रोच्चारण के साथ होलिका दहन किया जाता है। इस दौरान भजन संध्या भी आयोजित होती है, जिसमें भक्त झूमते गाते हैं। देश विदेश से कई भक्त उज्जैन में मनाई जाने वाली इस होली को देखने के लिए आते हैं। आरती के समय बाबा के भक्तों पर भी होली का रंग खूब चढ़ता है। क्या बच्चे-क्या बड़े सभी बाबा महाकाल के रंग में रंग जाते हैं। महाकाल मंदिर में एक दिन पहले होली का पर्व मानाने की परंपरा आदि अनादिकाल से चली आ रही है। यहां सबसे पहले बाबा महाकाल के आंगन में होलिका का दहन होता है और उसके बाद शहर भर में होली मनाई जाती है।

होली 2018 का मुहूर्त

1 मार्च होलिका दहन मुहूर्त- 18:16 से 20:47

भद्रा पूंछ- 15:54 से 16:58

 

भद्रा मुख- 16:58 से 18:45

रंगवाली होली- 2 मार्च

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 08:57 (1 मार्च)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 06:21 (2 मार्च)

महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन

उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर में कई देवी-देवाताओं के कई मंदिर हैं। महाकाल बाबा के दर्शन के लिए मुख्य द्वार से गर्भग्रह तक कतार में लगकर श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर में एक प्राचीनकाल का कुंड भी है। यहां स्नान करने से पवित्र होने और पाप व संकट नाश होने के बारे में कहा जाता है। महाकालेश्वर मंदिर तीन खंडों में है। नीचे वाले हिस्से में महाकालेश्वर स्वयं हैं। बीच के हिस्से में ओंकारेश्वर हैं। ऊपर के हिस्से में भगवान नागचंद्रेश्वर हैं। भगवान महाकालेश्वर के गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश एवं कार्तिकेय की मूर्तियों के दर्शन किए जा सकते हैं।

होलिका दहन की कथा

हिंदू पुराणों के मुताबिक जब दानवों के राजा हिरण्यकश्यप ने देखा कि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की आराधना में लीन हो रहा है तो उन्हें अत्यंत क्रोध आया। उन्होंने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को यह वरदान था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती है। लेकिन जब वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी तो वह पूरी तरह जलकर राख हो गई। नारायण के भक्त प्रहलाद को एक खरोंच तक नहीं आई। तब से इसे इसी दृश्य की याद में पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। यहां लकड़ी को होलिका समझकर उसका दहन किया जाता है। जिसमें सभी हिंदू परिवार समान रूप से भागीदार होते हैं।

-कमल सिंघी

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़