काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-21
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अयोध्या कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
थे सुमंत्र व्याकुल बड़े, मन में कष्ट अपार
घोड़े भी थे कर रहे, जाने से इन्कार।
जाने से इन्कार, विवश निषाद ने होकर
अपने उत्तम सेवक भेजे उनके रथ पर।
कह ‘प्रशांत’ थे रस्ते में सुमंत्र पछताते
क्या बोलेंगे लोग देख रथ खाली लाते।।71।।
-
घुसे नगर में उस समय, बीत गयी जब शाम
पहुंचे दशरथ के महल, कीन्हा उन्हें प्रणाम।
कीन्हा उन्हें प्रणाम, कहां हैं राम बताओ
राजा बोले, मुझको शीघ्र वहां पहुंचाओ।
कह ‘प्रशांत’ सुमंत्र ने उनको धैर्य बंधाया
और सभी वर्णन विस्तार सहित बतलाया।।72।।
-
दशरथ तड़पे रात भर, नहीं मिला विश्राम
बोले, जीवन चाहता है अब पूर्ण विराम।
है अब पूर्ण विराम, श्रवण की यादें आई
पूरी गाथा कौशल्या को आज बताई।
कह ‘प्रशांत’ रघुनंदन राघव-राम पियारे
रटते-रटते दशरथजी सुरलोक सिधारे।।73।।
-
अवधपुरी में मच गया, भीषण हाहाकार
कैकेयी को मिल रही, गाली बारम्बार।
गाली बारम्बार, गुरु वशिष्ठ सुन आये
शव की उचित व्यवस्था कर दूत दौड़ाये।
कह ‘प्रशांत’ उनको मेरा आदेश सुनाओ
भरत-शत्रुघन दोनों को लौटाकर लाओ।।74।।
-
जैसे ही लौटे भरत, दिखा नगर सुनसान
मानव पशु-पक्षी सभी, जैसे मृतक समान।
जैसे मृतक समान, गये महलों में मां के
कर प्रणाम फिर पूछे सारे हाल यहां के।
कह ‘प्रशांत’ कैकेयी ने सब कथा बताई
राजा गये सिधार और वन को रघुराई।।75।।
-
भरतलाल को यों लगा, ज्यों जलता अंगार
पके घाव को छू गया, बोले भर हुंकार।
बोले भर हुंकार, दुष्ट हे कुल विनाशिनी
मां कहते है जीभ लजाती तुझे पापिनी।
कह ‘प्रशांत’ पैदा होते ही गला दबाती
नहीं देखना पड़ता तो ये दिन कुलघाती।।76।।
-
तभी मंथरा आ गयी, करती हंस-हंस बात
देख शत्रुघन जल उठे, मारी कसके लात।
मारी कसके लात, कूबड़ा उसका टूटा
मुंह से खून गिरा, कपाल-जबड़ा भी फूटा।
कह ‘प्रशांत’ उसका झोंटा खींचा फिर मारा
भरतलाल ने दया दिखाकर उसे उबारा।।77।।
-
दोनों भाई फिर गये, कौसल्या के पास
मलिन गात जर्जर बदन, चेहरा पूर्ण उदास।
चेहरा पूर्ण उदास, चरण में शीश नवाया
मैं हूं कारण जिसने ये सब दुख दिखलाया।
कह ‘प्रशांत’ कौसल्या के नैन भर आये
गले लगाया दोनों को आशिष बरसाए।।78।।
-
मां-बेटे रोये बहुत, सारे हुए अनाथ
वामदेवजी आ गये, मुनि वशिष्ठ के साथ।
मुनि वशिष्ठ के साथ, उचित उपदेश सुनाए
और पिता के अंत्यकर्म सब विधि करवाए।
कह ‘प्रशांत’ हो गयी अयोध्या राजा-हीना
लगता था पूरी नगरी है प्राण-विहीना।।79।।
-
शोक-काल पूरा हुआ, ठीक समय तब जान
मुनि वशिष्ठजी ने किया, राजसभा आह्वान।
राजसभा आह्वान, सभी मंत्री बुलवाए
और महाजन अवधपुरी के भी सब आये।
कह ‘प्रशांत’ मुनिवर ने सारी कथा बताई
राजा के व्रत धर्म-सत्य की करी बड़ाई।।80।।
- विजय कुमार
अन्य न्यूज़