काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-22
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अयोध्या कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
देख भरत की ओर तब, बिलख उठे मुनिनाथ
हानि लाभ जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।
यश-अपयश विधि हाथ, हो गया जो स्वीकारो
अब आगे क्या करना है, ये सोच-विचारो।
कह ‘प्रशांत’ दशरथजी की आज्ञा को मानो
करो प्रजा का पालन, सबकी सहमति जानो।।81।।
-
ये हम सब हैं जानते, मन में भरा बिछोह
तुम्हें अवध के राज से, नहीं जरा भी मोह।
नहीं जरा भी मोह, राज्य राम को देना
जब वे लौटें, पूर्ण प्रेम से सेवा करना।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन बढ़कर अब काम संभालो
जो कह गये पिताश्री, उन वचनों को पालो।।82।।
-
कहा भरत ने गुरुजनों, मंत्री और समाज
इच्छा सबकी है यही, करूं अवध पर राज।
करूं अवध पर राज, विनय मेरी सुन लीजे
सोच समझकर फिर सब मुझको आज्ञा दीजे।
कह ‘प्रशांत’ कल प्रातः मैं वन में जाऊंगा
चरणों में पड़, राघव को वापस लाऊंगा।।83।।
-
धन्य-धन्य सबने कहा, कितने श्रेष्ठ विचार
हम सारे हैं साथ में, चलने को तैयार।
चलने को तैयार, सज गये घोड़े-हाथी
गुरुजन माता मंत्री-सेवक उनके साथी।
कह ‘प्रशांत’ वशिष्ठ मुनि उनको तिलक करेंगे
और अवध के राजा मेरे राम बनेंगे।।84।।
-
दोनों भाई चल दिये, चित्रकूट की ओर
लोग हजारों साथ थे, शोर हुआ घनघोर।
शोर हुआ घनघोर, नदी जंगल कर पारा
शंृगवेरपुर पहुंचे, चकित निषाद अपारा।
कह ‘प्रशांत’ क्या करने भरतलाल हैं आये
और संग में सेना को किस कारण लाये।।85।।
-
साथी सारे कर दिये, लड़ने को तैयार
हमरे जीते जी नहीं, होंगे गंगा पार।
होंगे गंगा पार, एक वृद्ध समझाए
मिलकर उनसे एक बार पूछो, क्यों आये।
कह ‘प्रशांत’ उनकी यह बात सभी ने मानी
लेकर समुचित भेंट चले निषाद अभिमानी।।86।।
-
रघुनंदन के मित्र हैं, सुनते ही यह बात
भरतलाल के हो गये, पुलकित सारे गात।
पुलकित सारे गात, छोड़ रथ नीचे आये
देख प्रेम उनका निषादराज सकुचाए।
कह ‘प्रशांत’ बाहों में कसकर गले लगाया
जो कुछ उसके मन में था संदेह मिटाया।।87।।
-
इसके बाद निषाद ने, सबको किया प्रणाम
सब बोले तुम धन्य हो, गले लगाये राम।
गले लगाये राम, भरत को जगह दिखाई
जहां जानकी के संग बैठे थे रघुराई।
कह ‘प्रशांत’ फिर गंगाजी में सभी नहाये
भरतलाल ने वर मांगा, राघव घर आएं।।88।।
-
रघुनंदन को याद कर, बीत गया दिन-रैन
हरदम भीगे ही रहे, भरतलाल के नैन।
भरतलाल के नैन, विधाता हुआ वाम है
महलों के वासी, वनवासी हुए राम हैं।
कह ‘प्रशांत’ प्रातः निषाद के साथी आये
सबको सादर गंगाजी के पार लगाये।।89।।
-
भरद्वाज मुनि का वहां, था सुंदर आवास
तीरथराज प्रयाग में, पहुंचे उनके पास।
पहुंचे उनके पास, भरत ने शीश नवाया
मुनिवर ने दे आसन, अपने पास बिठाया।
कह ‘प्रशांत’ हे भरत पता है मुझको सारा
जो कुछ हुआ, नहीं है उसमें दोष तुम्हारा।।90।।
- विजय कुमार
अन्य न्यूज़