काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-23

Lord Rama
विजय कुमार । Oct 6 2021 11:44AM

श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अयोध्या कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।

मन की ग्लानी छोड़कर, जाओ उनके पास

कितना उनको प्रेम है, नहीं तुम्हें अहसास।

नहीं तुम्हें अहसास, यहां पर रैन बिताई

तीनों करने रहे तुम्हारी सिर्फ बड़ाई।

कह ‘प्रशांत’ यह सुनकर भरतलाल सकुचाए

बैठे रहे मौन, आदर से शीश झुकाए।।91।।

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मुनिवर मेरे हृदय में, चुभी हुई यह बात

जिस मां से जन्मा मिला, उससे ही आघात।

उससे ही आघात, जल रही मेरी छाती

इसके कारण मुझे रात भर नींद न आती।

कह ‘प्रशांत’ यदि राम लौट वापस आएंगे

तब ही सारे पाप-ताप ये कट पाएंगे।।92।।

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मुनिवर का आतिथ्य पा, हुए तृप्त मेहमान

भोजन से विश्राम तक, था समुचित सामान।

था समुचित सामान, ऋद्धि-सिद्धि ने आकर

कर दी सभी व्यवस्था मुनि की आज्ञा पाकर।

कह ‘प्रशांत’ अगले दिन करके गंगा स्नाना

चित्रकूट की ओर किया सबने प्रस्थाना।।93।।

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रस्ते में जो भी मिले, सबको किया प्रणाम

यमुना का तट आ गया, किया वहीं विश्राम।

किया वहीं विश्राम, चले अगले दिन आगे

कामदगिरि को देख बरसने नैना लागे।

कह ‘प्रशांत’ राजा निषाद ने यह बतलाया

पयस्विनी के तट पर रहते हैं रघुराया।।94।।

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रामचंद्र की जय कही, कीन्हा उसे प्रणाम

लगता था सम्मुख खड़े, लक्ष्मण सीता-राम।

लक्ष्मण सीता-राम, शिथिल सब गात हो गये

दर्शन की आशा में कर उपवास सो गये।

कह ‘प्रशांत’ उत सपना देखा सीताजी ने

लगता है कुछ अघट घटा है अवधपुरी में।।95।।

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चिंतित राम-लखन हुए, आये भील-किरात

भरतलाल के आगमन, की बतलाई बात।

की बतलाई बात, संग में सेना भारी

क्या है उसके मन में, कैसी है तैयारी।

कह ‘प्रशांत’ पल भर में समझ गये रघुराई

पर लक्ष्मण के मन में इसने आग लगाई।।96।।

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तनिक देर संयम किया, फिर बोले यह बात

भरतलाल करने चले, हैं हमसे अपघात।

हैं हमसे अपघात, अवध सिंहासन पाया

लगता है इससे दिमाग उसका बौराया।

कह ‘प्रशांत’ सत्ता पाकर मद हो जाता है

दुनिया का इतिहास यही तो बतलाता है।।97।।

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उसके मन में आ बसा, शायद दुष्ट विचार

निष्कंटक शासन करे, हम दोनों को मार।

हम दोनों को मार, मगर मैं बतलाऊंगा

धनुष-बाण का कौशल उसको दिखलाऊंगा।

कह ‘प्रशांत’ मेरे रहते वह सफल न होगा

केवल आप नहीं, यह सारा जग देखेगा।।98।।

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आकाशी वाणी हुई, ठहरो लक्ष्मण लाल

जल्दीबाजी मत करो, सोचो थोड़े काल।

सोचो थोड़े काल, कष्ट पाओगे वरना

उचित नहीं है भरतलाल पर शंका करना।

कह ‘प्रशांत’ राघव ने भी उनको समझाया

नहीं भरत पर पड़ सकती सत्ता की छाया।।99।।

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चित्रकूट है आ गया, बोले राज निषाद

भरत-शत्रुघन ले बढ़े, सबके आशिर्वाद।

सबके आशिर्वाद, भरतजी हैं सकुचाए

माता के दुष्कर्म याद बरबस हैं आए।

कह ‘प्रशांत’ श्रीराम-जानकी ठुकराएंगे

या अपने इस सेवक को वे अपनाएंगे।।100।।

- विजय कुमार

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