काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-24
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अयोध्या कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
सभी तरह सुंदर-सुखद, रघुवर का आवास
बैर भूल वन जीव भी, रहते उनके पास।
रहते उनके पास, आस सब पूरी होई
रघुनंदन को देख भरत ने सुध-बुध खोई।
कह ‘प्रशांत’ रक्षा कीजे हे नाथ-गुसाईं
हुए दंडवत धरती पर दोनों ही भाई।।101।।
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गले लगाया राम ने, पुलकित दोनों भ्रात
लक्ष्मण भी हंसकर मिले, भूल पुरानी बात।
भूल पुरानी बात, बहुत दोनों हर्षाए
सीताजी के चरणों की रज शीश चढ़ाए।
कह ‘प्रशांत’ गुरुजन मंत्री-माता हैं आयीं
सुनते ही लक्ष्मण संग दौड़ पड़े रघुराई।।102।।
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राम-लखन सबसे मिले, किया बहुत सम्मान
आश्रम में लेकर गये, जितने थे मेहमान।
जितने थे मेहमान, बहुत सीता हर्षाई
सबका स्वागत करके जी भर आशिष पाई।
कह ‘प्रशांत’ पर माताओं के सूखे चेहरे
बता रहे थे इसमें राज छिपे हैं गहरे।।103।।
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बैठे परिजन फिर सभी, गुरु वशिष्ठ के पास
जगत और कुछ है नहीं, माया का आभास।
माया का आभास, गहन कुछ बात बताई
फिर दशरथ के स्वर्गवास की कथा सुनाई।
कह ‘प्रशांत’ सर्वत्र शोक सुनते ही छाया
करने लगे विलाप लखन सीता-रघुराया।।104।।
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गुरु वशिष्ठ ने जो कहा, किये राम ने काम
जिससे दशरथ पा सकें, सर्वोत्तम निज धाम।
सर्वोत्तम निज धाम, निवेदन उनसे कीन्हा
आकर वन में जो सम्मान सभी ने दीन्हा।
कह ‘प्रशांत’ हम तीनों हैं उसके आभारी
अच्छा हो, अब करें वापसी की तैयारी।।105।।
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सबकी इच्छा थी यही, रहें और दिन चार
रघुनंदन के हो सकें, दर्शन बारम्बार।
दर्शन बारम्बार, दिवस बीते फिर रैना
भरतलाल को नींद न आती, सूखे नैना।
कह ‘प्रशांत’ राघव को घर कैसे लौटाएं
गुरुवर कह दें अगर, बात शायद बन जाए।।106।।
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सब थे चिंतन कर रहे, जिससे संवरे काम
कैसे भी हो लौट लें, अवधपुरी को राम।
अवधपुरी को राम, मुनी ने राह दिखाई
मन में था संकोच, मगर यह बात बताई।
कह ‘प्रशांत’ इन तीनों को वापस लौटाएं
और शत्रुघन-भरत यहीं वन में रह जाएं।।107।।
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भरत प्रफुल्लित हो गये, सुनते ही यह बात
पर माताओं को लगा, इससे फिर आघात।
इससे फिर आघात, कष्ट तो नहीं मिटेगा
दो बेटों को जंगल में ही रहना होगा।
कह ‘प्रशांत’ सारे मिलकर कुटिया में आये
और राम को अपना ये सुझाव बतलाए।।108।।
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बहुत देर चलते रहे, चर्चा और विमर्श
अपनी-अपनी राय थी, नहीं एक निष्कर्ष।
नहीं एक निष्कर्ष, कहा सबने फिर मिलकर
रघुनंदन जो उचित लगे, निर्णय दीजे कर।
कह ‘प्रशांत’ थी भरतलाल के मन में इच्छा
राजतिलक हो जाय यहीं, तो होगा अच्छा।।109।।
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इस चर्चा के बीच में, समाचार यह जान
जनकराज हैं आ रहे, हुए सभी हैरान।
हुए सभी हैरान, हृदय सबके हर्षाए
स्वागत करने रामचंद्र खुद आगे आये।
कह ‘प्रशांत’ कर एक-दूसरे का अभिनंदन
सबको आश्रम में ले आये श्री रघुनंदन।।110।।
- विजय कुमार
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