काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-32
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित अरण्य कांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
इसीलिए लो भक्ति को, सर्वश्रेष्ठ तुम मान
पढ़-लिखकर पा लीजिए, चाहे जितना ज्ञान।
चाहे जितना ज्ञान, मुझी को जो भजते हैं
वे प्राणी दुनिया में सदा सुखी रहते हैं।
कह ‘प्रशांत’ नारदजी समझे प्रभु की माया
झूठ स्वयंवर में क्यों उनका मन भरमाया।।61।।
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संतो के लक्षण सुनो, नारदजी दे ध्यान
काम क्रोध मद-लोभ को, जाने जहर समान।
जाने जहर समान, मोह-मत्सर से बचता
उनके वश में सदा-सदा को हूं मैं रहता।
कह ‘प्रशांत’ हो पाप-कामना रहित अकिंचन
मेरे चरण कमल में ही रहता जिनका मन।।62।।
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ज्ञानवान इच्छा-रहित, पावन तन-मन जान
सत्यनिष्ठ मितहारी-निश्चल, योगी कवि-विद्वान।
योगी कवि-विद्वान, मान दूजों को देता
निराभिमानी धैर्य-धर्म आचरण सचेता।
कह ‘प्रशांत’ जो रहता संदेहों से ऊपर
सावधान संसारी दुख से रहित गुणागर।।63।।
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अपने गुण सुनते नहीं, दूजों के सुन हर्ष
रहते सम-शीतल सदा, यह जीवन निष्कर्ष।
यह जीवन निष्कर्ष, न्याय का पथ ना छोड़ें
होते सरल स्वभाव प्रेम से सबको जोड़ें।
कह ‘प्रशांत’ जप तप व्रत दम-संयम अनुरागी
नियमों में दृढ़ रहते सदा संत बड़भागी।।64।।
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गुरुवर हों गोविंद हों, और सभी विद्वान
इनके चरणों में सदा, रखते प्रेम महान।
रखते प्रेम महान, विराग विनय-विज्ञाना
हों विवेक से युक्त, वेद-पुराण का ज्ञाना।
कह ‘प्रशांत’ मद-दम्भ और अभिमान न करते
गलत राह पर अपने पैर कभी ना धरते।।65।।
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मेरे चरणों में सदा, रखते निश्छल प्यार
मन में बसती है सदा, श्रद्धा-दया अपार।
श्रद्धा-दया अपार, दया-मुदिता के आगर
सबके प्रति मैत्री का बहता निर्मल सागर।
कह ‘प्रशांत’ मेरी लीला को सुनते-गाते
दूजों का हित करने में वे नहीं अघाते।।66।।
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हे मुनिवर संभव नहीं, आगे और बखान
शेष वेद-मां शारदा, इन्हें अपूरण जान।
इन्हें अपूरण जान, ज्ञान नारदजी पाए
चरण कमल रघुनंदन के निज हृदय लगाये।
कह ‘प्रशांत’ फिर कीन्हा ब्रह्मलोक प्रस्थाना
धन्यभाग वे जिनका जीवन संत समाना।।67।।
- विजय कुमार
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