काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-38

श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित सुंदरकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
जामवंत की बात सुन, खड़े हुए तत्काल
पर्वत से हनुमान ने, लीन्ही बड़ी उछाल।
लीन्ही बड़ी उछाल, राम के बाण समाना
तीव्र वेग से बढ़ने लगे वीर हनुमाना।
कह ‘प्रशांत’ मैनाक शिखर बोला सुस्ताओ
रामदूत हे, बैठो थोड़ी थकन मिटाओ।।1।।
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बजरंगी ने छू उसे, सादर किया प्रणाम
रामकाज कीन्हे बिना, मुझे नहीं विश्राम।
मुझे नहीं विश्राम, राह में सुरसा आयी
बोली मुझे मिला आहार बड़ा सुखदायी।
कह ‘प्रशांत’ हनुमत बोले सुनिए हे माता
रामकार्य पूरा करके हूं वापस आता।।2।।
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वापस आकर तुम मुझे, खा लेना हे मात
लेकिन सुरसा ने नहीं, मानी उनकी बात।
मानी उनकी बात, बड़ा सा मुंह फैलाया
हनुमत ने भी उससे दूना बदन बढ़ाया।
कह ‘प्रशांत’ फिर झट से छोटा रूप बनाये
उसके मुंह में घुसे और फिर बाहर आये।।3।।
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हनुमत की बल-बुद्धि से, सुरसा हुई प्रसन्न
रघुनंदन के काम सब, होंगे अब सम्पन्न।
होंगे अब सम्पन्न, बहुत आशीष लुटाए
शीश नवा हनुमत ने आगे कदम बढ़ाये।
कह ‘प्रशांत’ फिर एक राक्षसी आ टकराई
खाती उड़ते जीव पकड़ उनकी परछाईं।।4।।
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पवनपुत्र ने समझकर, उसका मायाजाल
उसे मारकर तोड़ दी, सारी कपट-कुचाल।
सारी कपट कुचाल, गये फिर सागर पारा
वृक्ष फूल-फल से शोभित था जंगल सारा।
कह ‘प्रशांत’ था सम्मुख पर्वत एक विशाला
दौड़ चढ़ गये उसके ऊपर हनुमत लाला।।5।।
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पर्वत से हनुमान ने, देखा चारों ओर
सम्मुख लंका का किला, कोई ओर न छोर।
कोई ओर न छोर, करे सागर रखवाली
लंका नगरी थी स्वर्णिम परकोटे वाली
कह ‘प्रशांत’ परकोटों पर थीं सज्जित मणियां
चैराहे बाजार-मार्ग सुंदर अति गलियां।।6।।
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रक्षा में तैनात थे, चहुंदिश पहरेदार
थे शरीर वीभत्स पर, लिये विकट हथियार।
लिये विकट हथियार, बहुत सोचे हनुमाना
दिन में तो मुश्किल है लंका में घुस पाना।
कह ‘प्रशांत’ जब होगी रात तभी जाऊंगा
और ढूंढकर सीता को वापस आऊंगा।।7।।
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धीरे-धीरे दिन ढला, आयी शीतल रात
बजरंगी छोटे हुए, ज्यों मच्छर का गात।
ज्यों मच्छर का गात, नाम लेकर रघुराई
पहुंचे लंका द्वार, लंकिनी सम्मुख आयी।
कह ‘प्रशांत’ बिन पूछे कौन घुसा आता है
ऐसे चोरों से मेरा अच्छा नाता है।।8।।
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देख उसे हनुमान ने, घूंसा मारा एक
खून वमन करने लगी, दीन्हा माथा टेक।
दीन्हा माथा टेक, ब्रह्म वरदान बताया
बोली रक्ष जाति का अंत समय है आया।
कह ‘प्रशांत’ रख रामनाम दिल में तुम जाओ
और काम पूरे करके ही वापस आओ।।9।।
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लंका में हनुमानजी, घूमे घर-घर द्वार
लेकिन सीता का नहीं, मिला कहीं आधार।
मिला कहीं आधार, एक घर ऐसा पाया
तुलसी के थे वृक्ष, चिन्ह अंकित रघुराया।
कह ‘प्रशांत’ थे वहां विभीषण रावण-भ्राता
बजरंगी ने जोड़ लिया उनसे शुभ नाता।।10।।
- विजय कुमार
