काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-39
श्रीराम चरित मानस में उल्लेखित सुंदरकांड से संबंधित कथाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन लेखक ने अपने छंदों के माध्यम से किया है। इस श्रृंखला में आपको हर सप्ताह भक्ति रस से सराबोर छंद पढ़ने को मिलेंगे। उम्मीद है यह काव्यात्मक अंदाज पाठकों को पसंद आएगा।
दोनों ने सुमिरन किया, रघुनंदन का नाम
बजरंगी को याद था, लेकिन असली काम।
लेकिन असली काम, विभीषण ने बतलाया
है अशोक वाटिका कहां, रस्ता समझाया।
कह ‘प्रशांत’ है सीता वहीं, ध्यान से जाना
फिर क्या था, झट पहुंचे वहां वीर हनुमाना।।11।।
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सीताजी को देखकर, मन से किया प्रणाम
दुबली काया थी मगर, होठों पर श्रीराम।
होठों पर श्रीराम, पेड़ पर छिप हनुमाना
सोच रहे थे कैसे सम्मुख होगा जाना।
कह ‘प्रशांत’ सज-धज कर तभी रक्षपति आया
पहले लालच दिया और फिर खूब डराया।।12।।
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सीता मेरी बात को, सुनो खोलकर कान
पटरानी बन पाएगी, तू अतिशय सम्मान।
तू अतिशय सम्मान, रानियां हैं जो मेरी
मंदोदरी आदि सब होंगी दासी तेरी।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन तू जिद पर अड़ी रहेगी
तो मेरी कृपाण तेरा सिर अलग करेगी।।13।।
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सीता बोली दुष्ट हे, तुझको है धिक्कार
हिम्मत है तो दे चला, तू अपनी तलवार।
तू अपनी तलवार, विरह अब सहा न जाता
तेरी ये कृपाण बन जाए मेरी त्राता।
कह ‘प्रशांत’ पर राघवेन्द्र जिस दिन आएंगे
हे पापी, तब तेरे प्राण न बच पाएंगे।।14।।
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सुन रावण क्रोधित हुआ, खींची निज तलवार
मंदा बोली नाथ हे, कीजे नीति विचार।
कीजे नीति विचार, समय कुछ उसको दीजे
उसे बीत जाने पर फिर मनचाहा कीजे।
कह ‘प्रशांत’ रावण बोला है एक महीना
उसके बाद चीर दूंगा मैं इसका सीना।15।।
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रावण घर वापस गया, ले अपनी तलवार
भयकंपित सीता मगर, करने लगी विचार।
करने लगी विचार, प्राण किस दिन छूटेंगे
क्या इस जीवन में फिर से श्रीराम मिलेंगे।
कह ‘प्रशांत’ थी रक्ष नारियां आती-जाती
जो थी पहरेदार, सिया को खूब डरातीं।।16।।
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लेकिन त्रिजटा राक्षसी, थी उनमें से एक
रामचरण प्रेमी बहुत, दिल-स्वभाव की नेक।
दिल-स्वभाव की नेक, सुनाया सपना उसने
तहस-नहस कर डाली लंका इक वानर ने।
कह ‘प्रशांत’ सारी सेना उसने संहारी
भुजाहीन नंगा रावण, है गधा सवारी।।17।।
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सिर मुंडित उसके सभी, जाता है यमधाम
लंका में डंका बजा, जय रघुनंदन राम।
जय रघुनंदन राम, विभीषण शासन पाया
राघव ने फिर सीताजी को भेज बुलाया।
कह ‘प्रशांत’ यह सपना जल्दी पूरा होगा
त्रिजटा बोली, लंका में सब कुछ बदलेगा।।18।।
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रक्ष नारियां डर गयीं, पड़ी सिया के पांव
कर प्रणाम भागी सभी, अपने-अपने ठांव।
अपने-अपने ठांव, कहा सीता ने माता
हे देवी त्रिजटा, विपदा में तू बन त्राता।
कह ‘प्रशांत’ हूं विरही, पीड़ा सही न जाती
चिता बनाकर आग लगा दे हे जगदाती।।19।।
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त्रिजटा ने समझा-बुझा, किया सिया को शांत
फिर वह अपने घर गयी, बचा निवड़ एकांत।
बचा निवड़ एकांत, उचित अब मौका जाना
रामनाम अंकित मुदरी फेंकी हनुमाना।
कह ‘प्रशांत’ उसको पाकर सीता हर्षाई
बजरंगी ने रामकथा संपूर्ण सुनाई।।20।।
- विजय कुमार
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