काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-55

सभी देव करने लगे, मंगल स्तुतियां आज
ईश्वर के अवतार हैं, सीतापति रघुराज।
सीतापति रघुराज, उधर मंदा थी रोती
देख शीश रावण के, अपने नैन भिगोती।
कह ‘प्रशांत’ सबने तुमको कितना समझाया
मगर काल के वश स्वामी कुछ समझ न आया।।101।।
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अंत्य-क्रिया इसकी करो, बोले फिर श्रीराम
किये विभीषण ने सभी, पूरे अंतिम काम।
पूरे अंतिम काम, लखन को लंका भेजा
राजतिलक से बने विभीषण विधिवत राजा।
कह ‘प्रशांत’ फिर हनुमत ने संदेश सुनाया
सीताजी को एक-एक विवरण बतलाया।।102।।
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सीताजी हर्षित हुईं, पुलकित हुआ शरीर
होठों पर आशीष थे, नैनों में था नीर।
नैनों में था नीर, राम के दर्श कराओ
जैसे भी हो, अब रघुनंदन से मिलवाओ।
कह ‘प्रशांत’ पालकी एक तैयार कराई
बैठ उसी में सीता राघव दल में आयी।।103।।
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सीताजी को देखने, को थे सभी अधीर
धक्का-मुक्की देखकर, बोले श्री रघुवीर।
बोले श्री रघुवीर, सिया को पैदल लाएं
सारे योद्धा मां के जी भर दर्शन पाएं।
कह ‘प्रशांत’ राघव ने फिर लीला दिखलाई
लखनलाल से अग्नि प्रज्ज्वलित वहां कराई।।104।।
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सीता ने निर्भीक हो, सबको किया प्रणाम
पहुंच अग्नि के बीच में, बोली जय श्रीराम।
बोली जय श्रीराम, आग चंदन सी होई
माया रूपी सीता उसमें जाकर खोई।
कह ‘प्रशांत’ ले देह अग्निदेव खुद आये
असली सीता रघुनंदन के हाथ थमाये।।105।।
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निश्छल पावन है सिया, सबको मिला सुबूत
देख राम के संग में, सभी हुए अभिभूत।
सभी हुए अभिभूत, देवगण सब हर्षाए
डंके लगे बजाने, फूल बहुत बरसाये।
कह ‘प्रशांत’ फिर करने लगे आरती-पूजा
रघुनंदन तुम जैसा नहीं सृष्टि में दूजा।।106।।
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देवों पर कीन्ही कृपा, मारा रावण दुष्ट
कई तरह अवतार ले, काटे सबके कष्ट।
काटे सबके कष्ट, स्वयं ब्रह्माजी आये
वे भी रघुनंदन की पावन स्तुतियां गाये।
कह ‘प्रशांत’ हे बाण धनुष-तरकश के धारी
दीनदयाला सज्जनवृंदों के हितकारी।।107।।
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भवसागर से तारते, हो शोभा के धाम
सीताजी के साथ लें, मेरा नम्र प्रणाम।
मेरा नम्र प्रणाम, श्रेष्ठ राजा सुख-मंदिर
रक्तवर्ण हैं नेत्र, बनी छवि कितनी सुंदर।
कह ‘प्रशांत’ वरदान मिले प्रभु करूं याचना
चरणकमल में प्रीति रहे, है यही कामना।।108।।
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दशरथजी प्रकटे वहां, देने को आशीष
राम-लखन को देखकर, गर्वित उन्नत शीश।
गर्वित उन्नत शीश, राम ने उन्हें बताया
पुण्य आपके, जो रावण को मार गिराया।
कह ‘प्रशांत’ दशरथजी देवलोक प्रस्थाने
तभी आ गये इन्द्र, लगे वे स्तुतियां गाने।।109।।
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शरणागत आकर जहां, पाता है विश्राम
वे शोभा के धाम हैं, प्रबल-प्रतापी राम।
प्रबल-प्रतापी राम, दुष्ट खर-दूषण मारे
सैन्य सहित रावण का मर्दन करने वारे।
कह ‘प्रशांत’ हे कमलनयन सेवा बतलाएं
मेरे दिल में सह-परिवार निवास बनाएं।।110।।
- विजय कुमार