श्रद्धा के साथ पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखें

अनुज अग्रवाल । Sep 10 2016 1:27PM

गणेशोत्सव की सार्थकता को समझें और इन आयोजनों के माध्यम से अपनी श्रद्धा को पोषित करने के साथ पर्यावरण संरक्षण की स्वस्थ परम्पराएँ चल पड़ें, ऐसे कुछ प्रयास किये जायें।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव की परम्परा को स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मेलन का आधार बनाया था। उन दिनों के उत्सवों में विध्नविनाशक गणपति बापा से देश को मुक्ति दिलाने की प्रार्थना भी होती थी और उसके लिए आवश्यक त्याग-बलिदान की राह पर चलते हुए योजनाएँ बनायीं व क्रियान्वित की जाती थीं।

आज परम्पराएँ बदल गयी हैं। लोग मनोकामनापूर्ति और मनोरंजन के लिए सामाजिक हितों को भूलते जा रहे हैं। बड़े समारोह और आकर्षण के चक्कर में प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाएँ, रासायनिक रंग व प्लास्टिक-पॉलीथीन के सजावटी सामानों से जल, जमीन और जनजीवन दूषित हो रहे हैं। फूहड़ मनोरंजन से मानसिक प्रदूषण बढ़ता है।

आइये! भूल सुधारें, गणेशोत्सव की सार्थकता को समझें और इन आयोजनों के माध्यम से अपनी श्रद्धा को पोषित करने के साथ पर्यावरण संरक्षण की स्वस्थ परम्पराएँ चल पड़ें, ऐसे कुछ प्रयास किये जायें। गायत्री परिवार और ऐसी ही मानसिकता वाले अन्य संगठन यदि संकल्पपूर्वक कुछ आदर्शों को अपना लें तो एक बड़ी क्रान्ति को जन्म दे सकते हैं।

करने योग्य कुछ सुझाव:-

• पर्यावरण को दूषित न करने वाली प्रतिमाएँ ही स्थापित की जायें। बड़े सार्वजनिक स्थानों पर मिट्टी की बनी और हानि रहित प्राकृतिक रंगों से रंगी प्रतिमाएँ स्थापित हों तथा घरों में सुपारी या ऐसे ही  पदार्थों से बनीं प्रतिमाएँ स्थापित की जायें।
• प्रतिदिन चढ़ाये जाने वाले फूल-हार व अन्य पुजापे को सार्वजनिक रूप से एकत्रित कर उनसे खाद बनाने की योजना बनायी जाये।
• प्रतिमाओं का जलस्रोतों में नहीं, उनके किनारे विशेष कुण्ड बनाकर विसर्जन किया जाये।
• कार्यक्रम स्थल को प्रभावशाली प्रेरणादायी सद्वाक्यों से सजाया जाये। इनके माध्यम से राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान दिलाया जाये, क्षेत्रीय स्तर पर उनके निवारण के लिए  विचार मंथन हो, अभियान आरंभ किये जायें।
• सार्वजनिक गणेश मण्डल सामूहिक स्वच्छता अभियान चलायें।
• प्रत्येक मण्डल को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जाये।
• वृक्षारोपण, व्यसनमुक्ति, जल संरक्षण एवं सद्वाक्यों के स्टिकर प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को दिये जा सकते हैं।
• सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों, विशेषकर युवक-युवतियों को अपने समाज के आदर्श विकास की गतिविधियों में शामिल करने की प्रेरणा दी जाये, आगे की योजना बनायी जाये।

अनुज अग्रवाल

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