कोरोना महासंकट के दौर में बेहद प्रासंगिक है भगवान महावीर का दर्शन

Lord Mahavir
ललित गर्ग । Apr 24 2021 10:44AM

महावीर बनना है तो आग्रही पकड़ छोड़नी होगी। हर परिस्थिति में प्रतिकूलता को सहने की क्षमता जगानी होगी। षट्काय जीवों की हिंसा के प्रति संवेदनशील मन को जगाना होगा। पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए पापभीरू, अप्रमत्त एवं संयमी बनना होगा।

भगवान महावीर की जन्म जयन्ती मनाते हुए हमें महावीर बनने की तैयारी करनी होगी, हम महावीर को केवल पूजें ही नहीं, बल्कि उनको जीयें तभी महावीर जयन्ती मनाने की सार्थकता है। उन्होंने जो शिक्षाएं दीं, वे जन-जन के लिये अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य एवं निराशा से आशा की ओर जाने का माध्यम बनी। इसलिये भी जैन धर्म के अनुयायियों ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिये उनकी जन्म-जयन्ती मनाने का महत्व है। महावीर लोकोत्तम पुरुष हैं, उनकी शिक्षाओं की उपादेयता सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक है, दुनिया के तमाम लोगों ने इनके जीवन एवं विचारों से प्रेरणा ली है। सत्य, अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह ऐसे सिद्धान्त हैं, जो हमेशा स्वीकार्य रहेंगे और विश्व मानवता को प्रेरणा देते रहेंगे। महावीर का संपूर्ण जीवन मानवता के अभ्युदय की जीवंत प्रेरणा है। लाखों-लाखों लोगों को उन्होंने अपने आलोक से आलोकित किया है। इस वर्ष भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति घोषित की है, यह समय कोरोना महासंकट का समय है, ऐसे समय में महावीर की शिक्षाओं को अपना कर हम हमारी शिक्षा नीति को परिपूर्णता प्रदत्त कर सकते है एवं कोरोना महासंकट से मुक्ति पा सकते हैं।

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भगवान महावीर की जन्म जयन्ती हम जैसों के लिये जागने की दस्तक है। उन्होंने बाहरी लड़ाई को मूल्य नहीं दिया, बल्कि स्व की सुरक्षा में आत्म-युद्ध को जरूरी बतलाया। उन्होंने जो कहा, सत्य को उपलब्ध कर कहा। उन्होंने सबके अस्तित्व को स्वीकृति दी। ‘णो हीणे णो अइरित्ते’- उनकी नजर में न कोई ऊंचा था, न कोई नीचा। उनका अहिंसक मन कभी किसी के सुख में व्यवधान नहीं बना। महावीर का यह संदेश जन-जन के लिये सीख बने- ‘पुरुष! तू स्वयं अपना भाग्यविधाता है।’ औरों के सहारे मुकाम तक पहुंच भी गए तो क्या? इस तरह की मंजिलें स्थायी नहीं होतीं और न इस तरह का समाधान कारगर होता है। यह सीख भारत की नवपीढ़ी विशेषतः छात्रों के लिये जीवन-निर्माण का सशक्त माध्यम बन सकती है।

भगवान महावीर कितना सरल किन्तु सटीक कहा हैं- सुख सबको प्रिय है, दुःख अप्रिय। सभी जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। हम जैसा व्यवहार स्वयं के प्रति चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के प्रति भी करें। यही मानवता है और मानवता का आधार भी। मानवता बचाने में है, मारने में नहीं। किसी भी मानव, पशु-पक्षी या प्राणी को मारना, काटना या प्रताड़ित करना स्पष्टतः अमानवीय है, क्रूरतापूर्ण है। हिंसा-हत्या और खून-खच्चर का मानवीय मूल्यों से कभी कोई सरोकार नहीं हो सकता। मूल्यों का सम्बन्ध तो ‘जियो और जीने दो’ जैसे सरल श्रेष्ठ उद्घोष से है।

समय के आकाश पर आज कोरोना महामारी, युद्ध, शोषण, हिंसा जैसे अनगिनत प्रश्नों का कोलाहल है। जीवन क्यों जटिल से जटिलतर होता जा रहा है ? इसका मूल कारण है कि महावीर ने जो उपदेश दिया हम उसे आचरण में नहीं उतार पाए। इसी कारण मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था और विश्वास कमजोर पड़ा, धर्म की व्याख्या में हमने अपना मत, अपना स्वार्थ, अपनी सुविधा, अपना सिद्धान्त जोड़ दिया। मनुष्य जिन समस्याओं से और जिन जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है उन सबका समाधान महावीर के शिक्षा-दर्शन और सिद्धांतों में समाहित है।

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कमल के फूल लग सकता है, चंपक के फूल लग सकता है पर आकाश में कभी फूल नहीं लगता। यह असंभव बात है कि इंद्रिय जगत में आदमी जीए और वह सुख या दुःख एक का ही अनुभव करे, यह द्वंद्व बराबर चलता रहेगा। तब व्यक्ति के मन में एक जिज्ञासा पैदा होती है कि ऐसा कोई उपाय है जिससे सुख को स्थायी बनाया जा सके? इसका समाधान है स्वयं का स्वयं से साक्षात्कार। इसके लिये जरूरी है हर क्षण को जागरूकता से जीना। उसको जीने के लिये भगवान महावीर ने कहा था-‘खणं जाणाहि पंडिए’, जो क्षण को जानता है, वह सुख और दुःख के निमित्त को जानता है। उनकी यह प्रेरणा वर्तमान शिक्षा-जगत एवं शिक्षार्थियों के लिये अमूल्य प्रेरणा है।

भगवान महावीर ने अपने स्वभाव में रमण करने एवं आत्म-साक्षात्कार की प्रेरणा दी। यह नितान्त वैयक्तिक विकास की क्रांति है। यही व्यक्ति विकास की क्रांति शिक्षा पद्धति की सफलता एवं उन्नत पीढ़ी के निर्माण का आधार है। जीवन की सफलता-असफलता, सुख-दुख, हर्ष-विषाद का जिम्मेदार सिवाय खुद के और कोई नहीं है। धर्म का महत्वपूर्ण पड़ाव यह भी है कि हम सही को सही समझे और गलत को गलत। सम्यक्त्व दृष्टि का यह विकास मुक्ति का ही नहीं, सफल एवं सार्थक जीवन का हस्ताक्षर है। इस मायने में महावीर का शिक्षा-दर्शन पवित्रता का नया आकाश, व्यक्ति निर्माण का नया मार्ग, नया विचार, नए शिखर छूने की कामना, कल्पना और सपने हैं।

आज विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में ज्ञान-विज्ञान की इतनी शाखाएं हो गई हैं, जितनी अतीत में कभी नहीं थीं। लेकिन नैतिकता का जितना ह्रास आज हुआ है और हो रहा है, उतना अतीत में कभी नहीं था। पदार्थ स्वयं में न सुख देता है, न  दुख। पदार्थ की आसक्ति पकड़ती है और आसक्ति से ही जन्मता है क्रिया प्रतिक्रिया का भाव जगत्। ऐसे क्षणों में ‘सम्मत्तदंसी न करंति पावं’ को चिंतन सूत्र बनाएं तो यह संतुलन अस्त-व्यस्त और बिखराव भरी जीवनशैली को तनावों की भीड़ से बचा सकता है।

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महावीर भविष्य दृष्टा और भविष्य वक्ता थे। वे अपने अनुयायियों को भावी जन्म की सूचनाएं देकर अप्रमत्त, विवेकशील एवं संयमी बनाना चाहते थे। स्वर्ग-नरक का बंध बताकर मन में वैराग्य जगाते थे। हजारों उदाहरण इतिहास में सुरक्षित हैं, जिन्हें महावीर ने अगले जन्म का दर्शन देकर सम्यग् दृष्टि-बोध दिया। महावीर पारदर्शी ज्ञान के धनी थे। जो भी चरणों में पहुंचता, मन की बात पकड़ लेते। बिना पूछे ही उसके मन में छुपे प्रश्न का उत्तर दे देते। सामने वाला व्यक्ति हतप्रभ रह जाता। समधायक दृष्टि के प्रति श्रद्धा प्रणत हो सारे तर्क, संशय, ऊहापोह समाहित हो जाते। सत्योपलब्धि का यह क्षण महावीर की करुणा, अहिंसा, मैत्री और जागरूकता का प्रतीक बन जाता। महावीर के जीवन में ‘पर’ कोई था ही नहीं। उन्होंने सबके बीच एक समान अपनी करुणा बांटी। भले प्रिय शिष्य गौतम हो या फिर चण्डकौशिक सर्प। करुणा का स्रोत समत्व की चट्टानों से समान वेग से प्रवाहित हुआ।

महावीर की शिक्षाओं के महत्वपूर्ण पहलू कुछ विचारों पर आधारित हैं, जो बेहतर शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद कर सकते हैं। महावीर ने सही विश्वास, उचित आचरण और ज्ञान जैसे विचारों पर जोर दिया, उनकी नजरों में ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। ये वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन को आकार देते हैं, व्यक्ति निर्माण करते है। श्रद्धा बहुत ही व्यक्तिगत है, जब तक यह समझ में नहीं आता है कि इसे उपयोगी माना जा सकता है, इसे सिखाया या प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इसी तरह, मनुष्यों, जानवरों और पौधों के राज्य सहित सभी जीवित जीवों में एक शुद्ध आत्मा, जो अपने स्वयं के संबंध में स्वतंत्र है और पूर्ण ज्ञान है। यह शुद्ध आत्मा कर्म जैसी स्थूल चीजों से भरी हुई है, जो वास्तव में हमारे ज्ञान को हमारी स्वतंत्रता को सीमित करती है और अंत में हमें एक दूसरे के साथ बांधती है।

महावीर बनना है तो आग्रही पकड़ छोड़नी होगी। हर परिस्थिति में प्रतिकूलता को सहने की क्षमता जगानी होगी। षट्काय जीवों की हिंसा के प्रति संवेदनशील मन को जगाना होगा। पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए पापभीरू, अप्रमत्त एवं संयमी बनना होगा। महावीर को पढ़ना, सुनना, समझना जितना आसान है महावीर जैसा बनना उतना ही साधना सापेक्ष है। मगर ऐसा सपना देखने का संकल्प भी तो उन्हीं का जगाया हुआ है। उन्होंने ही तो हमारे भीतर यह आस्था, श्रद्धा और आत्मविश्वास पैदा किया था कि ‘तुम’ और ‘मैं’ में कोई फर्क नहीं, बिंदु भी सिंधु बन सकता है। भक्त भी भगवान हो सकता है। मैं ही मेरा भाग्य विधाता हूं, इसलिए मेरे जीवन का सत्य भी यही है- ‘अप्पा कत्ता विकत्ता य।’ आज जरूरत है हम महावीर को सिर्फ शास्त्रों में ही न पढ़ें, प्रवचनों में न सुनें, पढ़ी हुई और सुनी हुई ज्ञान-राशि को जीवन में उतारें।

आज के युग की जो भी समस्याएं हैं, चाहे कोरोना महामारी या पर्यावरण की समस्या हो, हिंसा एवं युद्ध की समस्या हो, चाहे राजनीतिक अपराधीकरण एवं अनैतिकता की समस्या, चाहे तनाव एवं मानसिक विकृतियां हो, चाहे आर्थिक एवं विकृत होती जीवनशैली की समस्या हो- इन सब समस्याओं का समाधान महावीर के सिद्धान्तों एवं उपदेशों में निहित है। इसलिये आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके द्वारा जीये गये आदर्श जीवन के अवतरण की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें तभी महावीर जन्म-जयन्ती पर महावीर की स्मृति एवं स्तुति करना सार्थक होगा।

-ललित गर्ग

(लेखक, पत्रकार, स्तंभकार)

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