#MeToo पर बोले महेश भट्ट, दोनों पक्षों को सुना जाना जरुरी
निर्माता-निर्देशक ने कहा कि लोग कोई फैसला करें, उससे पहले पीड़िता और आरोपी दोनों को ही अपना अपना पक्ष रखने का उचित मौका दिया जाए।
नयी दिल्ली। भारत में ‘मी टू’ अभियान के आलोक में विभिन्न क्षेत्रों के कई लोगों पर यौन दुराचार और उत्पीड़न के आरोप लगाये जाने पर फिल्मकार महेश भट्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर जनमत की अदालत में फैसला नहीं किया जा सकता है। निर्माता-निर्देशक ने कहा कि लोग कोई फैसला करें, उससे पहले पीड़िता और आरोपी दोनों को ही अपना अपना पक्ष रखने का उचित मौका दिया जाए।
भट्ट ने यहां एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘आप एक ध्रुवीकृत दुनिया में हैं। किसी भी पक्ष के लोग अतिवादी रुख अपनाते हैं। समस्या यही पर हैं। ये मामले जनमत के वोट से तय नहीं किये जा सकते और न ही अदालतों में उन पर निर्णय हो सकता है क्योंकि जो नियम कानून हैं वे बाबा आदम के जमाने के हैं। बतौर पुरुष हमें भारतीय महिलाओं को वो सभी आवश्यक ताकतें देने की जरुरत है जिससे वे सिर ऊंचा उठाकर चल सकें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह नैतिकता की बात है । इन बहसों को अतिवादी रुख अपनाकर हल नहीं किया जा सकता... आपको महिला को अधिकार देने की जरुरत है जिसे अपनी आवाज सामने रखने से वंचित किया गया लेकिन साथ ही, उस व्यक्ति को भी अपना पक्ष रखने का अधिकार दीजिए जिस पर अंगुली उठायी गयी हैं।’’ फिल्मकार भट्ट अपने अगले प्रोडक्शन ‘जलेबी’ के प्रचार के लिए यहां आये थे।
उन्होंने कहा कि बॉलीवुड में प्रोडक्शन हाऊस को यह पक्का करना चाहिए कि उनकी मान्यताओं और कृत्यों में कोई विसंगति न हो।अपने भाई मुकेश के साथ ‘‘विशेष फिल्म्स’’ चलाने वाले भट्ट ने अनुराग कश्यप और फैंटम फिल्म्स के भंग होने का उदाहरण दिया।
आलोक नाथ के विरुद्ध विंता नंदा के बलात्कार एवं यौन उत्पीड़न संबंधी आरोपों पर भट्ट ने कहा, ‘‘मेरे एक सहयोगी ने कहा, ‘वह क्यों चुप थीं?’ उन्होंने इतने सालों तक क्यों नहीं बोला? इसका मतलब यह नहीं है कि वह अब क्यों बोल रही हैं? बस इतना भर के लिए, आप 20 साल के बाद बोल रहे हैं, मतलब यह नहीं होता कि आपके दावे संदिग्ध हैं। महत्वपूर्ण यह है कि जो व्यक्ति हो रही अन्य सभी गलत बातों को लेकर मुखर है, इस पर (चुप्पी साधना) पसंद करती है..... आप पूछते हैं कि ऐसी कौन सी बात है जिसने आपको ऐसा करने से रोका।’’
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