अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सब्सिडी, प्रोत्साहनों पर पुनर्विचार की जरूरत: समीक्षा
सरकार को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी और प्रोत्साहनों पर फिर से गौर करने की जरूरत है। इसका कारण क्षेत्र में शुल्क के ग्रिड समतुल्य की ओर बढ़ना और कुछ वितरण कंपनियों द्वारा पहले से हस्ताक्षर किये जा चुके बिजली खरीद समझौते (पीपीए) पर फिर से बातचीत के लिये जोर देना है।
नयी दिल्ली। सरकार को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी और प्रोत्साहनों पर फिर से गौर करने की जरूरत है। इसका कारण क्षेत्र में शुल्क के ग्रिड समतुल्य की ओर बढ़ना और कुछ वितरण कंपनियों द्वारा पहले से हस्ताक्षर किये जा चुके बिजली खरीद समझौते (पीपीए) पर फिर से बातचीत के लिये जोर देना है। आर्थिक समीक्षा में यह बात कही गयी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में पेश 2017-18 की आर्थिक समीक्षा में अक्षय ऊर्जा कंपनियों के लिये भुगतान गारंटी कोष या विदेशी विनिमय कोष गठित करने का भी सुझाव दिया गया है। इसका मकसद सस्ते वित्त पोषण के साथ जोखिम को कम करना है। इसमें कहा गया है, ‘‘अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी और प्रोत्साहनों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।’’
विशेषज्ञों के अनुसार पिछले वर्ष शुल्क दरों में गिरावट से ऐसी स्थिति पैदा हुई है जहां अक्षय ऊर्जा कोयला आधारित तापीय बिजली के मुकाबले सस्ती है। इससे तापीय बिजली संयंत्र प्रभावित होंगे और फंसे कर्ज या एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) का सृजन होगा। समीक्षा में यह रेखांकित किया गया है, ‘‘नीलामी प्रक्रिया में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में न्यूनतम शुल्क पर पहुंचना एक स्वागत योग्य कदम है। हालांकि इससे पहले से हस्ताक्षरित पीपीए पर फिर से बातचीत की मांग उठी है। कुछ बिजली वितरण कंपनियों ने पहले से हस्ताक्षर किये गये पीपीए पर फिर से बातचीत की संभावना जतायी है। इसका कारण हाल की बोली के मुकाबले पूर्व शुल्क दरों का ऊंचा होना है।’’
इसमें क्रिसिल (2017) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि शुल्क दरों पर फिर से बातचीत से 48,000 करोड़ रुपये के निवेश को जोखिम उत्पन्न हो सकता है। समीक्षा में अक्षय ऊर्जा कंपनियों के लिये भुगतान गारंटी कोष या विदेशी विनिमय कोष गठित करने का भी सुझाव दिया गया है। इसका मकसद सस्ते वित्त पोषण के साथ जोखिम को कम करना है।
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