95% सामान भारत में ही बनते है लेकिन कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता बरकरार: CEAMA

china india trade

उद्योग संस्था सीईएएमए के मुताबिक ज्यादातर सामान भारत में ही बनता है पर कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता अभी भी बरकरार है।चीन में कोरोना वायरस महामारी फैलने के दौरान आपूर्ति बाधित होने की वजह से विभिन्न कंपनियों ने वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी थी।

नयी दिल्ली। उद्योग संस्था सीईएएमए के मुताबिक भारत में बिकने वाले लगभग 95 प्रतिशत उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक और उपकरण स्थानीय स्तर पर ही बनते हैं, लेकिन इनके कलपुर्जों के लिए चीन पर 25 से लेकर 70 प्रतिशत तक निर्भरता अभी बरकरार है, जिसे रातों रात खत्म करना कठिन है। कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड अप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीईएएमए) ने कहा कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान से पहले ही चीन में कोरोना वायरस महामारी फैलने के दौरान आपूर्ति बाधित होने की वजह से विभिन्न कंपनियों ने वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी थी। सीईएएमए के अध्यक्ष कमल नंदी ने बताया, ‘‘एक उद्योग के रूप में (सभी ब्रांड) हमने पिछले दो-तीन वर्षों में क्षमता बढ़ाने के लिए बहुत काम किए हैं।इसके लिए सभी श्रेणियों में तैयार माल के विनिर्माण के लिए नए संयंत्र लगाए गए हैं। अब हम तैयार माल खंड की सभी श्रेणियों में काफी अच्छी स्थिति में हैं।’’ उन्होंने कहा कि एयर कंडीशनर खंड में लगभग 30 प्रतिशत अभी भी आयात किया जाता है, लेकिन इसमें और कमी आएगी, क्योंकि नई क्षमताओं को तैयार किया जा रहा है और अगले सत्र में इसमें बहुत अधिक कमी होगी।

इसे भी पढ़ें: ऊर्जा मंत्रालय ने जारी किए निर्देश, चीन से बिजली उपकरणों के आयात के लिए लेनी होगी पहले मंजूरी

भारत में विनिर्माण की मौजूदा स्थिति के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘हम देश में जो उत्पाद बेचते हैं, उसमें 95 प्रतिशत से अधिक देश में तैयार होते हैं। गोदरेज उपकरणों के मामले में भी ऐसा ही है।’’ नंदी गोदरेज अप्लायंसेज के कारोबार प्रमुख और कार्यकारी उपाध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, कलपुर्जों के लिए चीन पर निर्भरता अभी भी है और यह विभिन्न श्रेणियों में 25 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक है। सबसे कम वाशिंग मशीन के लिए है और सबसे ज्यादा एयर कंडीशनर के लिए है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब तक हम कलपुर्जों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित नहीं करते हैं, तब तक चीन पर निर्भरता कम करना संभव नहीं है। इसमें समय लगेगा। हमें एक विकल्प तलाशना होगा, जो वैश्विक स्तर पर उपलब्ध हो।’’

इसे भी पढ़ें: वैश्विक संकेतकों और भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से तय होगी बाजार की चाल

नंदी ने कहा कि भारत में भी विकल्प उपलब्ध है, ‘‘लेकिन हमें उन विकल्पों को विकसित करना होगा... इसमें समय लगेगा और हमारा अनुमान है कि देश में कलपुर्जों के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने में दो साल लगेंगे।’’ उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और सरकार चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) जैसी योजनाओं के साथ विनिर्माण को प्रोत्साहित कर रही है। भारत और चीन के बीच संबंधों में मौजूदा तनाव के मद्देनजर उन्होंने कहा, ‘‘भूल जाइए कि अब क्या हो रहा है।यहां तक ​​कि पहली तिमाही में (जनवरी-मार्च) जब चीन लॉकडाउन से गुजर रहा था और हम सभी को कलपुर्जों की कमी महसूस हुई, तभी ‘चीन प्लस वन’ की रणनीति तैयार हो गई थी।’’ उन्होंने बताया कि इसके लिए थाईलैंड, वियतनाम और कोरिया जैसे देशों पर विचार हुआ।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़