कर छूट में संदेह का लाभ राज्य के पक्ष में जाना चाहिये: सुप्रीम कोर्ट

Advantage of doubt in tax rebate should go in favor of state: Supreme Court
[email protected] । Jul 31 2018 9:25AM

उच्चतम न्यायालय ने 21 साल पुराने फैसले को पलटते हुए आज कहा कि जब कर छूट अधिसूचना में चीजें साफ नहीं हो तो ऐसी अनिश्चितता का लाभ राज्य के पक्ष में जाना चाहिये।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 21 साल पुराने फैसले को पलटते हुए आज कहा कि जब कर छूट अधिसूचना में चीजें साफ नहीं हो तो ऐसी अनिश्चितता का लाभ राज्य के पक्ष में जाना चाहिये। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि कर देनदारी संबंधी अधिनियम में चीजें अस्पष्ट हों तो संदेह का लाभ करदाता को मिलना चाहिए। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि सरकार की कर रियायत संबंधी अधिसूचना में संदेह की स्थिति में उसके लाभ का दावा करदाता नहीं कर सकता। न्यायालय के अनुसार ऐसी अधिसूचना का गहराई से विश्लेषण करने की जरूरत है।

न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि लाभ की प्रासंगिकता साबित करने की जवाबदेही करदाता पर होगी। उसे यह साबित करना होगा कि उसका मामला छूट उपबंध या छूट अधिसूचना के मानदंडों के अंतर्गत आता है। पीठ के अन्य न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायाधीश आर भानुमति, न्यायाधीश एमएम शंतानागोदार तथा एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

संविधान पीठ ने 1997 में तीन न्यायाधीशों की पीठ के आदेश को पलट दिया। उस समय पीठ ने सन एक्सपोर्ट कारपोरेशन बनाम सीमा शुल्क कलेक्टर, बाम्बे के बीच के विवाद में व्यवस्था दी थी कि कर छूट प्रावधान में अगर कोई संदेह पैदा होता है तो इसे करदाता के पक्ष में परिभाषित होना चाहिए जो इस छूट का दावा कर रहा है।

पीठ ने आज कहा, ‘‘जब भी कर रियायत अधिसूचना में कोई संदेह होता है तो इस प्रकार की संदेह की स्थिति का दावा करदाता द्वारा नहीं किया जा सकता और इसे राजस्व (सरकार) के पक्ष में परिभाषित किया जाना चाहिये।’’ पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सन एक्सपोर्ट मामले में फैसला सही नहीं था और जो भी फैसले सन एक्सपोर्ट मामले की तरह के हुये उन्हें पलटा हुआ माना जायेगा।

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