मौसम की अनिश्चितताओं से जूझता रहा कृषि क्षेत्र, खाद्यान्न आपूर्ति एवं फसल बेहतर होने की संभावना

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इस वर्ष देश के कृषि क्षेत्र के विकास पर मौसम की बदलती प्रकृति का कहर देखने को मिला जिससे गेहूं और धान की फसलें प्रभावित हुईं और इनकी खुदरा कीमतों में तेजी देखने को मिली।

इस वर्ष देश के कृषि क्षेत्र के विकास पर मौसम की बदलती प्रकृति का कहर देखने को मिला जिससे गेहूं और धान की फसलें प्रभावित हुईं और इनकी खुदरा कीमतों में तेजी देखने को मिली। इस परिस्थिति में सरकार को पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था में खाद्यान्न आपूर्ति को संभालने के लिए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने समेत विभिन्न नीतिगत कदम उठाने पड़े। अगर वर्ष 2021 कृषि कानूनों की वजह से यह क्षेत्र सुर्खियों में था तो वर्ष 2022 को कृषि-खाद्य क्षेत्र में हुए कई बदलावों की वजह से जाना जायेगा।

जहां सर्दियों में बारिश की कमी और गर्म हवा ने कुछ प्रमुख फसलों के उत्पादन को प्रभावित किया, वहीं रूस-यूक्रेन संघर्ष ने कई वस्तुओं और उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि कर दी। मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर पर होने के बीच सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत वर्ष 2022 तक 80 करोड़ से अधिक लोगों को अतिरिक्त पांच किलोग्राम खाद्यान्न मुफ्त प्रदान किया। सरकार ने अब 31 दिसंबर, 2023 तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत नियमित रूप से हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम का मुफ्त राशन देने का निर्णय लिया है। जहां तक कृषि उपज का सवाल है तो सरकारी अधिकारियों और कृषि विशेषज्ञों को उम्मीद है कि नया साल बेहतर होगा।

चालू रबी सत्र में खेती का रकबा बढ़ा है क्योंकि मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी से किसानों को प्रोत्साहन मिला है। कुछ आवश्यक खाद्य पदार्थों के दाम अधिक रहने से वर्ष 2023 में भी किसानों और उपभोक्ताओं के हितों में संतुलन साधने की चुनौती बनी रहेगी। राष्ट्रीय वर्षा-सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अशोक दलवई ने पीटीआई-से कहा, कृषि क्षेत्र ने 2022 में कुल मिलाकर अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन मौसम की गड़बड़ी से कुछ फसलों पर असर पड़ा। हमें उम्मीद है कि अगला वर्ष कहीं बेहतर साबित होगा और फिलहाल गेहूं फसल की अच्छी संभावना है।’’

उन्होंने कहा कि मौसम असामान्य होने से उपज को होने वाले नुकसान को रोक पाना मुश्किल है, लेकिन किसानों को होने वाले नुकसान को पीएम-किसान और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के जरिये निष्प्रभावी किया जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने फसल वर्ष 2021-22 (जुलाई-जून) में 31 करोड़ 57.2 लाख टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन किया, जो वर्ष 2020-21 के 31 करोड़ 7.4 लाख टन उत्पादन से भी अधिक है।

उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा, कुल मिलाकर यह एक चुनौतीपूर्ण साल था लेकिन सक्रिय कदमों से स्थिति बेहतर हुई। स्थिर आयात नीति के साथ बफर स्टॉक के प्रबंधन से प्रमुख वस्तुओं की आपूर्ति और उनकी कीमतों को साल भर स्थिर रखने में मदद मिली है। मौसम पर कृषि क्षेत्र की निर्भरता इस साल साफ नजर आई। कुछ राज्यों में अचानक गर्म हवाओं के कारण गेहूं की पैदावार में कमी आई, जबकि देश के पूर्वी हिस्सों में कम बारिश से धान की फसल प्रभावित हुई।

गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष के 10 करोड़ 95.9 लाख टन से घटकर वर्ष 2022 में 10 करोड़ 68.4 लाख टन रह गया। हालांकि व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि गेहूं का उत्पादन लगभग 9.5 करोड़ टन ही रहा। केंद्र की गेहूं खरीद भी इस साल करीब 50 प्रतिशत घट गई जिससे बफर स्टॉक पर दबाव बढ़ गया है। गेहूं और उसके आटे की खुदरा कीमतें बढ़ने पर सरकार ने खुदरा मूल्य वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए 13 मई, 2022 से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।

इसके साथ ही सरकार ने राशन की दुकानों से होने वाले खाद्यान्न वितरण में गेहूं की मात्रा घटाने के साथ चावल की मात्रा बढ़ा दी। चावल की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही। मुख्य रूप से पूर्वी राज्यों में, खरीफ मौसम के दौरान कम बारिश होने से चावल के उत्पादन में गिरावट आई है। वर्ष 2022 के खरीफ मौसम में चावल का उत्पादन घटकर 10 करोड़ 49.9 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले साल इसी मौसम में यह उत्पादन 11 करोड़ 17.6 लाख टन का हुआ था।

इस स्थिति में सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत सीमा शुल्क लगा दिया। इससे चावल की कीमतों में तेज वृद्धि को रोकने में मदद मिली। चावल का औसत खुदरा मूल्य अब 38.43 रुपये प्रति किलोग्राम है। हालांकि, अखिल भारतीय निर्यातक संघ के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि चावल का निर्यात वर्ष 2022 की अप्रैल-अक्टूबर अवधि में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले सात प्रतिशत बढ़कर 126.97 लाख टन हो गया।

खाद्य तेलों के मामले में, घरेलू उपलब्धता को बढ़ावा देने और स्थानीय कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कई मौकों पर आयात शुल्क घटाया गया। उर्वरक सब्सिडी पर खर्च चालू वित्त वर्ष में 2.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है क्योंकि वैश्विक उर्वरक कीमतों में तेज वृद्धि के बावजूद सरकार ने खुदरा कीमतों को अपरिवर्तित रखा है। इस साल सरकार ने फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने से संबंधित व्यवस्था को मजबूत करने के तरीकों पर गौर करने के लिए एक समिति का गठन भी किया। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किए जाने के साथ ही सरकार मोटे अनाज की खपत बढ़ाने के लिए कदम उठा रही है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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