5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने से पहले भारत को बड़ा झटका, निवेशकों के 17 लाख करोड़ डूबे

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अंकित सिंह । Aug 1 2019 4:01PM

कारोबारी यह भी बता रहे हैं कि अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर के मजबूत होने तथा घरेलू शेयर बाजारों के सतर्कता में खुलने से भी रुपये पर दबाव रहा। बीएसई में सूचीबद्ध शीर्ष 500 कंपनियों के लगभग 50 प्रतिशत स्टॉक दोहरे अंकों में डूब गए।

दोबारा सत्ता में आने के बाद भले ही नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली सरकार देश को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के दावे कर रही हो पर पिछले महीने सेंसेक्स का लुढकना अच्छे संकेत नहीं दे रहा। जुलाई महीने में सेंसेक्स 4,000 अंक लुढ़क कर 34,000 के स्तर पर पहुंच गया है जो एक चिंता की लकीर खींच रहा है। बेंचमार्क इंडेक्स के अनुसार जुलाई में सेंसेक्स 4.86% और निफ्टी में 5.69% तक लुढ़क गए, जो पिछले साल अक्टूबर के बाद की सबसे बड़ी मासिक गिरावट है। यह 17 वर्षों में जुलाई में शेयर बाजारों का सबसे खराब प्रदर्शन है। इससे पहले जुलाई 2002 में, सेंसेक्स 7.92% गिर गया था। सेंसेक्स में इस गिरावट की वजह से निवेशकों ने इस गिरावट में शीर्ष 30 कंपनियों में 17 लाख करोड़ रुपये गंवा दिए हैं। 

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विश्लेषकों को इस बात की चिंता है कि बाजार में आई इस गिरावट के कारण ऋण आपूर्ति में कमी, कारोबारी भावनाओं को कमजोर करने, कमजोर निवेश चक्र और वैश्विक विकास धीमा पड़ सकता है। चिंता की बात तो यह है कि बाजारों का यह हाल तब रहा जब मुद्रा में तेजी और कच्चे तेल की कीमतों में अनुकूल गिरावट देखने को मिली। जुलाई में रुपया 0.34% मजबूत हुआ तो कच्चे तेल का भाव 2.15% नीचे था। केंद्रीय बजट में बड़े करदातोओं पर अतिरिक्त कर का प्रावधान विदेशी संस्थागत निवेशकों को परेशान कर रहा है। अत: वे भारतीय बाजारों में निवेश में कम रूचि ले रहे हैं। हालांकि, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियों सहित घरेलू संस्थागत निवेशक ₹ 17,915.14 करोड़ के भारतीय शेयरों के शुद्ध खरीदार थे।

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जानकार भी मानते हैं कि केंद्रीय बजट में कोई बड़ा सुधार या कोई बड़ी आकर्षक बातें नहीं थी। इसके विपरीत, अधिभार में वृद्धि और 25% से 35% तक सार्वजनिक हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रस्ताव ने निवेशकों को प्रभावित किया। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि बाजार के लिए प्रमुख चिंता विभिन्न क्षेत्रों में देखी जाने वाली गंभीर मंदी भी है। वर्तमान मंदी को सुधारने के लिए कठिन आर्थिक सुधारों की जरूरत है। माना यह भी जा रहा कि खपत में आई गिरावट काफी हद तक घरेलू आय में मध्यम वृद्धि और उच्च करों को दर्शाती है। इस गिरावट के लिए एक और बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बेंचमार्क दरों में करीब चौथाई फीसदी की कटौती की है जो पिछले एक दशक में अब तक की सबसे ज्यादा है। फेडरल रिजर्व बैंक के इस निर्णय पर दुनिया भर के बाजारों की निगाहें टिकी थी।

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कारोबारी यह भी बता रहे हैं कि अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर के मजबूत होने तथा घरेलू शेयर बाजारों के सतर्कता में खुलने से भी रुपये पर दबाव रहा। बीएसई में सूचीबद्ध शीर्ष 500 कंपनियों के लगभग 50 प्रतिशत स्टॉक दोहरे अंकों में डूब गए। 239 शेयरों में 10-50% की गिरावट देखी गई, जिसमें टीवीएस मोटर, एस्कॉर्ट्स, टाटा पावर, इंडियाबुल्स वेंचर्स, पीएनबी, जेएम फाइनेंशियल, कोल इंडिया, बीएचईएल, आरबीएल बैंक, अपोलो टायर्स और जेट एयरवेज शामिल हैं। हालांकि बाजार विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि इस गिरावट से म्यूचुअल फंड निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है। भले ही तमाम दावे किए जा रहे हों पर यह बात सही हैं कि एक विकासशील देश के लिए यह स्थिति सहज नहीं है। 

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