बाजार में सरसों समर्थन मूल्य से नीचे, सरकारी खरीद जल्द शुरू होने कि मांग

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इस साल के लिये सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,200 रूपये क्विंटल तय किया गया है जबकि बाजार में बिना मंडी शुल्क और तेल-पड़ता की शर्त वाली सरसों का भाव 3,500-3,600 रुपये क्विंटल चल रहा है।

नयी दिल्ली। राजस्थान और आसपास के सरसों के उत्पादक राज्यों में आवक शुरू होने के साथ ही मंडियों में इसके भाव नीचे जाने लगे हैं। व्यापारियों का मानना है कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरसों की खरीद जल्द शुरू करनी चाहिए ताकि बाजार संभले और किसानों का नुकसान न हो। इस साल के लिये सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,200 रूपये क्विंटल तय किया गया है जबकि बाजार में बिना मंडी शुल्क और तेल-पड़ता की शर्त वाली सरसों का भाव 3,500-3,600 रुपये क्विंटल चल रहा है। व्यापारियों के अनुसार सरसों के प्रमुख उत्पादक राजस्थान सरकार ने 15 मार्च से सरसों की खरीद की योजना बनायी है। खाद्य तेलों की प्रमुख मंडी दिल्ली के व्यापारियों के अनुसार खुले बाजार में लूज में सरसों का भाव 3,500 से 3,600 रूपये क्विंटल के दायरे में बोले जा रहे हैं जबकि एनसीडीईएक्स में 42 प्रतिशत कंडीशन (42 प्रतिशत तेल पड़ता की शर्त वाली) सरसों का अप्रैल, मई, जून डिलीवरी के वायदा सौदों में भाव 3,846-3,920 रुपये क्विंटल के बीच बोले जा रहे हैं। 

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व्यापारियों ने बताया कि इस समय मंडियों में तेल-पड़ता की शर्त और शुल्क के बिना बिक रही सरसों के भाव वायदा बाजार से कम होने का कारण यह है कि वायदा बाजार में भाव आढत, लदान और दूसरे खर्चे जोड़ने के साथ-साथ 42 प्रतिशत तेल के पड़ता की शर्त के साथ खरीदे बचे जाते हैं। इसके अलावा सरकारी खरीद शुरू होने पर बाजार में सुधार की उम्मीद भी है। रबी मौसम की सरसों की आवक फरवरी के आखिर में शुरू हो गई। सबसे पहले राजस्थान के कोटा में सरसों की आवक होनी शुरू हुई। इस साल सरसों की 90 लाख टन पैदावार होने का अनुमान लगाया जा रहा है। जबकि पिछले साल 80 लाख टन तक उत्पादन हुआ था। अलवर, राजस्थान के तेल व्यापारी अर्पित गुप्ता का कहना है, इसे बिडंबना ही कहा जायेगा कि जिस देश में खाद्य तेलों की 70 प्रतिशत तक कमी है उस देश में तिलहनों का दाम समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है। सरकार को सरसों किसानों को समर्थन देना चाहिये। उन्होंने कहा कि देश में खाद्य तेलों के लगातार बढ़ते आयात की वजह से घरेलू स्तर पर पैदा होने वाले तेल तिलहन के बाजार को समर्थन नहीं मिल पाता है। हालांकि, सरकार इनके समर्थन मूल्य में हर साल कुछ न कुछ वृद्वि करती रहती है। 

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दिल्ली वेजिटेबल आयल्स टेडर्स एसोसिएशन (डीवोटा) के चेयरमैन लक्षमी चंद अग्रवाल का कहना है कि पिछले साल अप्रैल-मई के दौरान 42 प्रतिशत कंडीशन सरसों का भाव 4,200 से 4,300 रुपये क्विंटल तक रहा था। लूज में भी सरसों 4,000 रुपये तक बिकी थी। सरसों की खेती करने वाले कुछ किसान बताते हैं कि सरकार ने पिछले साल हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कुछ राज्यों में करीब साढे आठ लाख टन तक सरसों की खरीद की थी। इस साल 90 लाख टन तक सरसों की पैदावार होने की उम्मीद है, ऐसे में किसानों को समर्थन देने के वास्ते सरकार को सरसों की कम से कम 25 से 30 लाख टन तक खरीद करनी चाहिये। जानकारों का कहना है कि देश में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत पश्चिमी देशों के 35 किलो के मुकाबले काफी कम है। उनका कहना है कि देश में आज स्थिति यह है कि 235 लाख टन की कुल खपत में 160 से 170 लाख टन तेलों का आयात होता है जबकि मात्र 70 से 75 लाख टन ही देश में तैयार होता है। 

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देश में पाम तेल, सोयाबीन, रेपसीड और सनफलावर का ज्यादा आयात होता है। कच्चे सोयाबीन, रेपसीड, सनफलावर पर 35 प्रतिशत आयात शुल्क लगता है जबकि पाम तेल पर 40 से 45 प्रतिशत शुल्क लागू है। फिर भी इनका आयात सस्ता पड़ता है। घरेलू कारोबार और तिलहन उत्पादक किसानों के हित में इसमें संतुलन बनाया जाना चाहिये। व्यापारियों का कहना है कि सरकारी खरीद पिछले साल 8.46 लाख टन थी जिसमें से आधे से ज्यादा खरीद राजस्थान से हुई थी। स्थानीय तेल उद्योग का कहना है कि इस बार सरकार को खरीद का स्तर और बढ़ाना चाहिए ताकि घरेलू सरसों किसान को एमएसपी से कम पर माल न बेचना पड़े नहीं तो वे इसकी खेती से पीछे हटेंगे और खाद्य तेल आयात पर निर्भरता बढ़ेगी।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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