वित्त वर्ष में बदलाव के लिए जनता से मांगीं टिप्पणियां
वित्त वर्ष में बदलाव के संबंध में आम बहस की इच्छुक सरकार ने मौजूदा अवधि में बदलाव की आवश्यकता के संबंध में टिप्पणी मांगी है ताकि बजट प्रक्रिया और नकदी प्रबंधन में सुधार किया जा सके।
वित्त वर्ष में बदलाव के संबंध में आम बहस की इच्छुक सरकार ने मौजूदा अवधि में बदलाव की आवश्यकता के संबंध में जनता से टिप्पणी मांगी है ताकि बजट प्रक्रिया और नकदी प्रबंधन में सुधार किया जा सके। सरकार और देश की ज्यादातर कंपनियां एक अप्रैल से 31 मार्च तक के वित्त वर्ष का अनुपालन करती हैं। माईगव वेबसाइट पर जारी एक सूचना में कहा गया है, ‘‘वित्त वर्ष में बदलाव के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क हैं जो बजट के मुद्दों तथा सरकार के नकदी प्रबंधन, सरकारी राजस्व तथा व्यय के मौसमी असर, बजट के पूर्वानुमान पर मानसून के असर, कामकाजी मौसम, सरकार द्वारा बजट पारित करने के विधायी चक्र के इर्द-गिर्द घूमते हैं।’’
इसमें कहा गया कि इसमें राजकोषीय सांख्यिकी की अंतरराष्ट्रीय तुलनात्मकता, सरकारी वित्त वर्ष का कर आकलन वर्ष से तालमेल बिठाना और कारपोरेट लेखा उद्देश्य जैसे मुद्दे भी उठाए गए हैं। इस बारे में 30 सितंबर तक सार्वजनिक टिप्पणी आमंत्रित की गई है। नए वित्त वर्ष की व्यवहार्यता की जांच के लिए सरकार ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। समिति दिसंबर तक रपट सौंपेगी और वह केंद्र तथा राज्य सरकारों की प्राप्ति और व्यय के सही आकलन की दृष्टि से वित्त वर्ष की उपयुक्तता की वजह मुहैया कराएगी। आचार्य के अलावा समिति के अन्य सदस्यों में पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर, तमिलनाडु के पूर्व वित्त सचिव पीवी राजारमण और सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च के वरिष्ठ फेलो राजीव कुमार शामिल हैं।
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