SC ने RBI के परिपत्र को किया रद्द, विशेषज्ञों ने दी मिली-जुली प्रतिक्रिया

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[email protected] । Apr 3 2019 11:34AM

इसके अलावा इस्पात, परिधान, चीनी तथा पोत परिवहन क्षेत्र की कंपनियों पर भी असर पड़ा था। अपने 84 पृष्ठ के आदेश में न्यायालय ने कहा कि बैंकों को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का रास्ता अपनाने का निर्देश बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35एए की शक्तियों से परे है।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वित्तीय संकट में फंसी बिजली कंपनियों को राहत देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के 2018 के उस कड़े परिपत्र को मंगलवार को रद्द कर दिया जिसमें कर्ज लौटाने में एक दिन की भी चूक पर कंपनी को दिवालिया घोषित करने का प्रावधान है। हालांकि न्यायालय के इस आदेश से दिवाला कार्यवाही की गति धीमी पड़ सकती है। इस फैसले से परिपत्र के अंतर्गत आने वाले फंसे कर्ज के जल्दी समाधान की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। फैसले से वसूली में फंसे कर्ज के पुनर्गठन को लेकर बैंकों को कुछ सहूलियत हो सकती है।

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उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी 2018 को परिपत्र जारी कर कहा था कि बैंकों को 2,000 करोड़ रुपये या उससे ऊपर के कर्ज के मामलों में एक दिन की भी चूक की स्थिति में 180 दिन के अंदर रिण समाधान प्रक्रिया शुरू करनी होगी। इसमें कहा गया था कि यदि निर्धारित अवधि में कोई समाधान नहीं तलाशा जा सके तो गैर-निष्पादित खातों को दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता कानून के तहतराष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण के समक्ष रखा जाए। 

रिजर्व बैंक के इस परिपत्र से सर्वाधिक प्रभावित बिजली कंपनियां हुई थी। इसके अलावा इस्पात, परिधान, चीनी तथा पोत परिवहन क्षेत्र की कंपनियों पर भी असर पड़ा था। अपने 84 पृष्ठ के आदेश में न्यायालय ने कहा कि बैंकों को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का रास्ता अपनाने का निर्देश बैंकिंग नियमन कानून की धारा 35एए की शक्तियों से परे है। इसमें कहा गया है कि आईबीसी का संदर्भ मामला-दर-मामला आधार पर लिया जा सकता है और इस संदर्भ में कोई सामान्य निर्देश नहीं हो सकता।

जीएमआर एनर्जी लि., रतन इंडिया पावर लि., एसोसिएशन आफ पावर प्रोड्यूसर्स, स्वतंत्र बिजली उत्पादों का संगठन आईपीपीए, शुगर मैनुफैक्चरिंग एसोसिएशन फ्राम तमिलनाडु तथा गुजरात के जहाज बनानले वाली कंपनियों के संगठन ने परिपत्र के खिलाफ विभिन्न अदालतों में याचिकाएं दायर की थी। बिजली क्षेत्र की दलील थी कि 5.65 लाख करोड़ रुपये का कर्ज (मार्च 2018 की स्थिति अनुसार) उन कारकों के कारण है जो उनके नियंत्रण से बाहर है। जैसे ईंधन की उपलब्धता और कोयला ब्लाक का आबंटन रद्द होना। इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 11 सितंबर को इस परिपत्र पर रोक लगा दी थी।

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न्यायालय ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया जो परिपत्र जारी करने के लिये धारा 45 एल (3) (वित्तीय संस्थानों से सूचना मांगने तथा निर्देश देने का बैंकों को अधिकार) को संतुष्ट करे। न्यायाधीश आर एफ नरीमन और न्यायाधीश विनीत सरन ने कहा, ‘‘आरबीआई परिपत्र को अवैधानिक घोषित करना होगा और हम यह घोषित करेंगे कि कानूनी रूप से यह प्रभाव में नहीं हो। परिणामस्वरूप उक्त परिपत्र के अंतर्गत की गयी सभी कार्रवाई निश्चित रूप से खत्म मानी जाए जिसमें इसमें इसके तहत ऋण शोधन संहिता के तहत शुरू की गयी कार्रवाई भी शामिल है।’’ याचिकाकर्ताओं ने परिपत्र को चुनौती देते हुए कहा था कि क्षेत्र की समस्याओं पर गौर किये बिना अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के लिये 180 दिन की समयसीमा का निर्धारण मनमाना और भेदभावपूर्ण है और इसीलिए संविधान के अनुच्छेद की धारा 14 का उल्लंघन करता है। न्यायालय के फैसले पर जे सागर एसोसिएट्स के भागीदार वी मुखर्जी ने शीर्ष अदालत के आदेश के बाद कहा कि आरबीआई को दबाव वाली संपत्ति के पुनर्गठन को लेकर संशोधित दिशानिर्देश / परिपत्र जारी करना पड़ सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘जारी प्रक्रिया को लेकर भी सवाल है। कुछ मामलों में प्रक्रिया या तो पूरी हो चुकी है या पूरी होने के करीब है...हालांकि इससे बिजली कंपनियों के साथ बैंकों को कुछ राहत मिलेगी। साथ ही कर्ज पुनर्गठन को लेकर बैंकों को लचीलापन मिलेगा...।’’ सिरील अमरचंद मंगलदास के प्रबंध भागीदारी सिरील श्राफ ने इसे बड़ा निर्णय बताया। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन अगर बैंक स्वेच्छा से आईबीसी (दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता) के प्रावधानों का उपयोग करते हैं तोव्यवहारिक रूप से इस फैसले का प्रभाव कम होगा।’’ घरेलू रेटिंग एजेंसी इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सब्यसाची मजूमदार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय से बिजली क्षेत्र में दबाव वाली संपत्ति के समाधान की प्रक्रिया और धीमी होगी। अंतरराष्ट्र रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा कि रिजर्व बैंक की विज्ञप्ति को रद्द करने का निर्णय बैंकों की साख के लिहाज से नकारात्मक है। उसने कहा, ‘‘परिपत्र से फंसे कर्ज की पहचान एवं समाधान की प्रक्रिया कड़ी हुई थी लेकिन लेकिन परिपत्र को निरस्त करने से इस पर अब पानी फिर गया है।’’

विधि कंपनी एसएनजी एंड पार्टनर्स के प्रबंध भागीदार राजेश नारायण गुप्ता ने कहा कि न्यायालयका निर्णय बैंकों द्वारा राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के समक्ष कंपनियों के खिलाफ शुरू की गयी कार्यवाही के संदर्भ में झटका है। उन्होंने कहा कि आदेश के तहत बैंकों को आईबीसी (दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता) के तहत मामला-दर-मामला आधार पर निर्णय करने की जरूरत होगी। उन्हें अब आरबीआई के परिपत्र के बजाए अपने विवेक के आधार पर यह फैसला करना होगा।

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