टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर सरकार सजग, रॉयल्टी भुगतान पर लगाएगी अंकुश
सरकार प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर विदेशी इकाइयों को किए जाने वाले रॉयल्टी भुगतान पर अंकुश लगाने की तैयारी कर रही है।
नयी दिल्ली। सरकार प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर विदेशी इकाइयों को किए जाने वाले रॉयल्टी भुगतान पर अंकुश लगाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों ने कहा कि विदेशी कंपनियों को इस तरह के कोष के अत्यधिक प्रवाह की वजह से सरकार यह कदम उठाने की योजना बना रही है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने विदेशी इकाइयों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से या भारत में किसी कंपनी के जरिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण या सहयोग के मामलों में रॉयल्टी भुगतान की सीमा तय करने का प्रस्ताव किया है। सूत्रों ने कहा कि अब इस प्रस्ताव को अंतर मंत्रालयी विचार विमर्श के लिए जारी किया जाएगा।
इस तरह के भुगतान की सीमा पहले चार साल तक चार प्रतिशत घरेलू बिक्री तथा सात प्रतिशत निर्यात तक सीमित करने का प्रस्ताव है। प्रस्ताव के अनुसार उसके अगले तीन साल तक यह सीमा तीन प्रतिशत घरेलू बिक्री तथा छह प्रतिशत निर्यात तक रहेगी। उसके अगले तीन साल के लिए यह सीमा दो प्रतिशत तथा चार प्रतिशत होगी। बाद के वर्षों में यह एक प्रतिशत स्थानीय बिक्री और दो प्रतिशत निर्यात रहेगी।
ट्रेडमार्क और ब्रांड नाम के संदर्भ में मंत्रालय की रॉयल्टी भुगतान की सीमा एक प्रतिशत बिक्री और दो प्रतिशत निर्यात तक सीमित रखने का प्रस्ताव किया है। सरकार द्वारा 2009 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति को उदार किए जाने के बाद से विदेशी कंपनियों को इस तरह के कोष का प्रवाह बढ़ा है। इसमें भुगतान की सीमा को समाप्त कर दिया गया और भारतीय कंपनियों को सरकार की मंजूरी के बिना उन्हें प्रौद्योगिकी सहयोग देने वाली कंपनियों को रॉयल्टी का भुगतान करने की अनुमति दी गई।
किसी विदेशी इकाई को रॉयल्टी का भुगतान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, ब्रांड या ट्रेडमार्क के इस्तेमाल के लिए किया जाता है। इस तरह के अंकुशों का प्रस्ताव करते हुए मंत्रालय की दलील है कि इससे घरेलू कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा,विशेषरूप से वाहन क्षेत्र में। साथ ही इससे विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट को रोका जा सकेगा, अल्पांश शेयरधारकों के हितों की रक्षा की जा सकेगी और सरकार का राजस्व बढ़ाया जा सकेगा।
2009 से पहले रॉयल्टी भुगतान नियमन के दायरे में था। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मामले में यह सीमा आठ प्रतिशत निर्यात तथा पांच प्रतिशत घरेलू बिक्री तक सीमित थी। ट्रेडमार्क या ब्रांड नाम के इस्तेमाल के मामले में यह सीमा दो प्रतिशत निर्यात तथा एक प्रतिशत घरेलू बिक्री तक सीमित थी।
पर इस समय दूसर संचार कंपनियां प्रति मोबाइल लाइन 15 अमेरिकी डालर के बराबर रायल्टी देती है। इसी तरह देश की सबसे बड़ी कार विनिर्माता अपनी मूल जापानी कंपनी को अपनी शुद्ध बिक्री आय के 5.5 प्रतिशत के बराबर रायल्टी दे रही है।
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