इक्रा ने कहा, पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 3,500 से 4,000 मेगावाट वृद्धि की संभावना
इक्रा ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष 2019-20 में पवन ऊर्जा क्षमता में 3,500 से 4,000 मेगावाट वृद्धि की उम्मीद है। प्रमुख चुनौतियों के समाधान के लिये उठाये गये कदमों तथा नोडल एजेंसियों द्वारा बड़ी परियोजनाओं के आबंटन से क्षमता वृद्धि में मदद मिलेगी।
नयी दिल्ली। पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता में चालू वित्त वर्ष के दौरान 3,500 से 4,000 मेगावाट वृद्धि की संभावना है। हालांकि, भूमि अधिग्रहण और पारेषण चुनौतियां महत्वपूर्ण बनी रहेंगी। साख निर्धारण एजेंसी इक्रा ने मंगलवार को यह कहा। इक्रा ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष 2019-20 में पवन ऊर्जा क्षमता में 3,500 से 4,000 मेगावाट वृद्धि की उम्मीद है। प्रमुख चुनौतियों के समाधान के लिये उठाये गये कदमों तथा नोडल एजेंसियों द्वारा बड़ी परियोजनाओं के आबंटन से क्षमता वृद्धि में मदद मिलेगी।
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केंद्रीय नोडल एजेंसियों और राज्य की वितरण कंपनियों ने फरवरी 2017 से 12,000 मेगावाट से अधिक क्षमता आबंटित की हैं। हालांकि, जमीनी स्तर पर प्रगति धीमी रही है और वित्त वर्ष 2018-19 में केवल 1,600 मेगावाट का इजाफा हुआ।जमीन अधिग्रहण से जुड़े मुद्दे और पारेषण संपर्क के कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हुई। इक्रा के उपाध्यक्ष और क्षेत्र के प्रमुख (कारपोरेट रेटिंग) गिरीश कुमार कदम ने कहा, ‘‘सरकार ने मसलों के समाधान को लेकर कुछ उपाय किये हैं।इसमें सुविधा शुल्क के रूप में प्रोत्साहन की पेशकश तथा जमीन अधिग्रहण के लिये राज्य सरकारों से मदद और अंतर-राज्यीय पारेषण ढांचे को मजबूत बनाने के लिये निवेश शामिल हैं।
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उन्होंने कहा कि हालांकि, क्रियान्वयन और वित्तीय चुनौतियों के कारण कुछ परियोजनाओं के समक्ष समस्याओं से इनकार नहीं किया जा सकता। कंपनियों द्वारा समय पर वित्त की व्यवस्था महत्वपूर्ण बनी हुई है। हाल में पवन ऊर्जा नीलामी में शुल्क दरें 3 रुपये प्रति यूनिट से नीचे बनी हुई है। वर्ष 2017 में यह 3.01 रुपये प्रति यूनिट थी जो 2018 में 2.64 रुपये प्रति यूनिट पर आ गयी। हालांकि, वर्ष 2019 के पांच महीनों में औसत बोली शुल्क 2.85 रुपये प्रति यूनिट रहा। इसका कारण परियोजनाओं के क्रियान्वयन से जुड़े जोखिम, कम प्रतिस्पर्धा तथा वित्त संबंधी चुनौतियां थी। इसके बावजूद परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले शुल्क दरें प्रतिस्पर्धी बनी हुई हैं।
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