बाढ़ प्रभावित केरल के लिए विदेशी सहायता के पक्ष में केंद्रीय मंत्री अलफोंस

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[email protected] । Aug 24 2018 2:31PM

बाढ़ प्रभावित केरल में विदेशी सहायता को स्वीकार करने के लिये बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2016 में सुझाव दिया था

नयी दिल्ली/कोच्चि। बाढ़ प्रभावित केरल में विदेशी सहायता को स्वीकार करने के लिये बढ़ते विवाद के बीच राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने 2016 में सुझाव दिया था कि विदेशों से की गई सहायता की पेशकश को भारत द्वारा सद्भावना भरे कदम के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। यह प्रदेश के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के उस रूख को और मजबूत करता है कि विदेशी सहायता पर किसी तरह का पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।

विपक्षी दलों और अन्य लोगों द्वारा केंद्र की आलोचना की जा रही है क्योंकि वह 2004 में सुनामी के बाद मनमोहन सिंह सरकार द्वारा विदेशी सहायता स्वीकार नहीं करने के मनमोहन सिंह सरकार के नीतिगत फैसले का हवाला देकर विदेशी सहायता की पेशकश को नामंजूर कर रही है। वहीं इसबीच केंद्रीय मंत्री के जे अलफोंस ने आजरात अपील की कि 14 साल पुरानी इस परंपरा में ‘‘एक बार अपवाद’’ को लागू कर विदेशी सहायता को मंजूर किया जाए, खासतौर पर संयुक्त अरब अमीरात द्वारा।

अलफोंस ने दिल्ली में  बताया, ‘‘पिछले 50 सालों के दौरान केरल ने विदेशी विनिमय के तौर पर भारी मात्रा में योगदान किया है। वास्तव में पिछले साल ही उससे 75,000 करोड़ आए हैं...इन कारणों से एक कनिष्ठ मंत्री के तौर पर मैं अपने वरिष्ठ मंत्री से अनुरोध करता हूं कि वे राज्य के लिये खासतौर पर विचार करें। मैं उनसे इस नीति में एक बार अपवाद का अनुरोध करता हूं।’’

केरल से आने वाले अलफोंस ने इससे पहले दिन में केंद्र के फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि सुनामी के बाद दिसंबर 2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक नीतिगत फैसला किया था जिसमें प्राकृतिक आपदा के दौरान सरकार विदेश से आने वाली सहायता को स्वीकार नहीं करेगी।

विजयन और उनके मंत्रीमंडलीय सहयोगी थॉमस इसाक ने कल कहा था कि भारत, कानून के तहत, भीषण संकट के दौरान विदेशी सरकारों द्वारा स्वैच्छिक वित्तीय सहायता को स्वीकार कर सकता है। उन्होंने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना का हवाला दिया। मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान काम कर चुके वरिष्ठ कूटनीतिज्ञों और नौकरशाहों ने सुझाव दिया कि 2004 का फैसला कोई पत्थर की लकीर नहीं है।

केरल के वित्त मंत्री इसाक ने सहायता को स्वीकार नहीं करने को लेकर भाजपा नीत सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि बाढ़ प्रभावित दक्षिणी राज्य ने केंद्र से 2,200 करोड़ रुपये की मदद मांगी लेकिन उसने केवल 600 करोड़ रुपये जारी किये। इसाक ने ट्विटर पर कहा, ‘‘हमनें विदेशी सरकारों से कोई अनुरोध नहीं किया लेकिन यूएई सरकार ने स्वेच्छा से 700 करोड़ रूपये की पेशकश की थी। केंद्र सरकार ने कहा, नहीं, विदेशी सहायता स्वीकार करना हमारी गरिमा के अनुकूल नहीं है।’’

विजयन ने बीती रात कहा था कि ऐसी सहायता स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘दूसरे देशों की सहायता स्वीकार्य है। अगर जरूरत हुई हम प्रधानमंत्री के पास जाएंगे।’’ विजयन ने कहा दो देशों का एक-दूसरे की सहायता करना स्वाभाविक है।

उन्होंने कहा कि 2016 में घोषित आपदा प्रबंधन नीति यह स्पष्ट करती है कि किसी दूसरे देश की कोई सरकार आपदा पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता दिखाते हुए सद्भावना रूप में स्वेच्छा से मदद करती है तो केंद्र सरकार इस पेशकश को स्वीकार कर सकती है।

आपदा की स्थिति में कार्यढांचे की योजना को लेकर एनडीएमए की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना ने 2016 के अपने दस्तावेज में कहा कि एक नीति के तौर पर भारत सरकार आपदा के दौरान विदेशी सहायता के लिये किसी मदद की अपील नहीं जारी करती।

मौजूदा राजग सरकार के कार्यकाल के दौरान तैयार एनडीएमपी कहती है, ‘‘हालांकि किसी दूसरे देश की सरकार स्वेच्छा से आपदा पीड़ितों से एकजुटता दिखाते हुए कोई पेशकश करती है तो केंद्र सरकार उसे स्वीकार कर सकती है।’’

एनडीएमपी के बारे में गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता से जब उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा, ‘‘इस चरण में गृह मंत्रालय के पास अभी देने के लिये कोई प्रतिक्रिया नहीं है।’’

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