केंद्रीय मंत्री गडकरी ने अगरबत्ती उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने बनाने की योजना को मंजूरी दी

Gadkari

‘खादी अगरबत्ती आत्मनिर्भर मिशन’ नाम के इस कार्यक्रम का मकसद देश के विभिन्न भागों में बेरोजगार और प्रवासी मजदूरों के लिये रोजगार सृजित करने के साथ कारीगारों एवं स्थानीय अगरबत्ती उद्योग की मदद करना है। देश में फिलहाल अगरबत्ती की खपत करीब 1,490 टन प्रतिदिन की है, जबकि देश में उत्पादन केवल 760 टन प्रतिदिन है।

नयी दिल्ली। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं एमएसएमई मंत्री मंत्री नितिन गडकरी ने अगरबत्ती उत्पादन में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिये खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के रोजगार सृजन कार्यक्रम के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। आयोग ने देश में विनिर्मित मशीनों और प्रशिक्षित कामगारों के जरिये भारत को अगरबत्ती उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिये यह प्रस्ताव किया है। ‘खादी अगरबत्ती आत्मनिर्भर मिशन’ नाम के इस कार्यक्रम का मकसद देश के विभिन्न भागों में बेरोजगार और प्रवासी मजदूरों के लिये रोजगार सृजित करने के साथ कारीगारों एवं स्थानीय अगरबत्ती उद्योग की मदद करना है। देश में फिलहाल अगरबत्ती की खपत करीब 1,490 टन प्रतिदिन की है, जबकि देश में उत्पादन केवल 760 टन प्रतिदिन है। मांग को पूरा करने के लिये मुख्य रूप से चीन और वियतनाम से आयात किया जाता है। योजना शुरू में पायलट आधार पर शुरू की जाएगी। इसके बारे में जानकारी देते हुए केवीआईसी के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा, ‘‘अगरबत्ती उत्पादन में उपयोग होने वाली मशीनों का शत प्रतिशत आयात वियतनाम से किया जाता रहा है।’’ 

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योजना के अंतर्गत केवीआईसी ने केवल भारतीय विनिर्माताओं द्वारा विनिर्मित मशीनों को ही खरीदने का निर्णय किया है। इससे स्थानीय तौर पर उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। योजना के तहत केवीआईसी अगरबत्ती बनने के लिये कारीगरों को स्वचालित मशीनें और पाउडर मिलाने वाली मशीनें उपलब्ध कराएगा। यह सब निजी अगरबत्ती विनिर्माताओं के जरिये किया जाएगा जो व्यापार भागीदार के रूप में समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। केवीआईसी मशीन की लागत पर 25 प्रतिशत सब्सिडी देगा और 75 प्रतिशत राशि कारीगरों से हर महीने आसान किस्त के रूप में लेगा। सक्सेना ने कहा कि कार्यक्रम के लिये पायलट परियोजना इस महीने शुरू होगी। सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने कहा, ‘‘कारीगरों को कच्चे माल की आपूर्ति, लॉजिस्टिक, गुणवत्ता नियंत्रण और अंतिम उत्पाद के विपणन का जिम्मा व्यापार भागीदार का होगा। लागत का 75 प्रतिशत वसूल करने के बाद मशीनों का मालिकाना हक स्वत: कारीगरों केपास चला जाएगा।’’ इस संदर्भ में परियोजना को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत सफलतापूर्वक चलाने के लिये दो पक्षीय समझौते पर केवीआईसी और निजी अगरबत्ती विनिर्माता हस्ताक्षर करेंगे। कारीगरों के प्रशिक्षण के लिये खर्चा केवीआईसी और निजी व्यापार भागीदारी के बीच साझा किया जाएगा। इसमें आयोग 75 प्रतिशत लागत वहन करेगा जबकि 25 प्रतिशत का भुगतान व्यापार भागीदार करेंगे। मंत्रालय के अनुसार प्रत्येक स्वचालित अगरबत्ती बनाने की मशीन से प्रतिदिन 80 किलो अगरबत्ती बनायी जा सकती है। इससे चार लोगों को सीधा रोजगार मिलेगा। इसके अलावा पांच अगरबत्ती मशीन पर एक पाउडर मिलाने की मशीन दी जाएगी। इससे दो लोगों को रोजगार मिलेगा। कारीगरों को मजदूरी व्यापार भागीदार द्वारा साप्ताहिक आधार पर दिया जाएगा। उन्हें यह पारिश्रमिक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिये सीधे उनके खाते में दिया जाएगा। फिलहाल 15 रुपये प्रति किलो की दर से कारीगरों को पारिश्रमिक दिया जाता है। इस हिसाब से 80 किलो अगरबत्ती से 1,200 रुपये प्रतिदिन की कमाई होगी। इससे प्रत्येक कारीगर को कम-से-कम 300 रुपये प्रतिदिन मिलेंगे। इसी प्रकार, पाउडर मिलाने वाली मशीन पर काम करने वाले कारीगरों को 250 रुपये प्रतिदिन मिलेगा। मंत्रालय के अनुसार, ‘‘प्रस्ताव पिछले महीने मंजूरी के लिये एमएसएमई मंत्रालय को दिया गया। जल्दी ही पायलट परियोजना शुरू होगी। परियोजना के पूर्ण रूप से क्रियान्वयन से हजारों की संख्या में रोजगार सृजित होंगे।’’ इससे पहले, केंद्र ने घरेलू उद्योग की मदद के लिये अगरबत्ती क्षेत्र के लिये दो बड़े निर्णय किये। एक तरफ जहां इसे मुक्त व्यापार से प्रतिबंधित व्यापार की श्रेणी में लाया गया, वहीं अगरबत्ती बनाने में काम आने वाले बांस से बनी गोल पतली लकड़ी पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया गया। केवीआईसी के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि केंद्र सरकार के दोनों निर्णयों से अगरबत्ती उद्योग में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित हो रहे हैं। सरकार ने पिछले साल अगस्त में अगरबत्ती और इसी प्रकार के उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी थी। चीन और वियतनाम जैसे देशों से आयात बढ़ने की रिपोर्ट पर यह कदम उठाया गया था। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में अप्रैल-जून के दौरान अगरबत्ती और सुगंधित पदार्थों का आयात 1.775 करोड़ डॉलर का रहा। वहीं 2018-19 में यह 8.358 करोड़ डॉलर का था।

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