बसपा के भयमुक्त सरकार देने के वादे की खुली पोल

उत्तर प्रदेश के विधनसभा चुनाव हर दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण तथा 'करो या मरो' की हालत वाले होते जा रहे हैं। यही कारण है सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल हर हालत में मुस्लिम वोटबैंक को ही अपने पास सुरक्षित रखना चाह रहे हैं। विगत पांच माह से समाजवादी पार्टी में अतीक अहमद से लेकर पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी अपने परिवार सहित सपा से टिकट पाने के लिए उनके दरवाजे पर दौड़ लगा रहे थे लेकिन सपा के नये मुखिया व सीएम अखिलेश यादव के आगे उनकी एक नहीं चल पायी और अंततः सपा से टिकट की उम्मीदवारी छोड़नी ही पड़ गयी।
अब वह गणंतत्र दिवस के दिन बसपा में विलीन हो गये हैं तथा उनको मऊ सदर से टिकट भी मिल गया है। उनके भाई व बेटे को भी बसपा का टिकट मिल गया है। यह राजनीति का जबर्दस्त अवसरवाद है। अभी तक बसपा यही कह रही थी कि जब पार्टी सत्ता में वापस आयेगी तब सपा सरकार का एक भी गुंडा व अपराधी जेल जाने से नहीं बच सकेगा। क्या यही भय दिखाकर बसपा नेत्री मायावती ने अब सपा के बाहुबली अपराधी किस्म के लोगों को अपने दल में शामिल करना शुरू कर दिया है। अपनी पत्रकार वार्ता में बसपा नेत्री मायावती ने कहा कि मुख्तार अंसारी व उनके परिवार को राजनैतिक कारणों से फंसाया गया है। अब वह कह रही हैं कि जब बसपा की सरकार बनेगी तब अंसारी बंधुओं के साथ न्याय होगा। यह है आज की उल्टासन करने की भारतीय राजनीति। बसपा नेत्री मायावती ने पत्रकार वार्ता में भाजपा पर यह तंज कसा कि भाजपा ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है।
उन्हें संभवतः भाजपा का यह इतिहास नहीं पता है कि भाजपा कभी भी मुस्लिम उम्मीदवारों को थोक का वोटबैंक नहीं मानती और न ही देश व प्रदेश का मुसलमान भाजपा को कभी वोट देता है जबकि सपा, बसपा और कांग्रेस का तो वोटबैंक केवल और केवल मुस्लिम समाज ही है। यह सभी दल मुस्लिम समाज का वोट हासिल करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यह उसी का तकाजा है कि जो अंसारी बंधु अभी तक बसपा के लिए अछूत थे अचानक से उनके प्रेमी हो गये। बसपा का मानना है कि अंसारी बंधुओं के आ जाने से पूर्वांचल में अब बसपा की स्थिति काफी मजबूत हो जायेगी तथा वह लड़ाई में आ जायेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि राजनीति के अपराधीकरण के लिए कुख्यात इलाकों में पूर्वांचल का नाम सबसे आगे है। मुख्तार अंसारी लगातार चार बार मऊ से विधायक चुने जा चुके हैं। एक बार बसपा टिकट पर, एक बार निर्दलीय और एक बार स्वयं के बनाये गये दल कौमी एकता दल से। उनके एक और भाई सिबगतुल्ला अंसारी भी उसी दल से विधायक हैं।
जबकि एक अन्य भाई अफजाल अंसारी सांसद रह चुके हैं। मुख्तार अंसारी के बसपा में शामिल होते ही कौमी एकता दल का भी विलय हो गया। एक प्रकार से वह साइकिल से सवार होते होते हाथी की सवारी कर बैठे हैं। माना जाता है कि अंसारी के परिवार का इतिहास कांग्रेस से जुड़ा है। स्वयं मुख्तार अंसारी के पिता भी स्वतंत्रता सेनानी तथा कम्युनिस्ट नेता थे। मुख्तार ने अपनी राजनीति की शुरूआत छात्र राजनीति से की थी। मुख्तार अंसारी इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि बनने से पहले दबंग व माफिया के रूप में पहचाने जाते थे। 1988 में पहली बार उनका नाम हत्या के एक मामले में सामने आया लेकिन पुलिस कोई सबूत नहीं जुटा सकी। 1990 के दशक में जमीन के कारोबार ओर ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में एक चर्चित चेहरा बन चुके थे। माना जाता है कि वह गाजीपुर और पूर्वी उप्र के कई जिलों में सरकारी ठेके आज भी नियंत्रित करते हैं।
1995−96 में अंसारी को एक ठाकुर बाहुबली बृजेश सिंह से सीधी चुनौती मिलनी शुरू हो गयी थी। अंसारी के राजनैतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बृजेश सिंह ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय का समर्थन किया था तथा राय ने 2002 में विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को हराया था। यही मुख्तार अंसारी कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्य अभियुक्त बनाये गये हैं। उनके खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। अब यही अंसारी बसपा में आने के बाद गरीबों के मसीहा बन गये हैं। बसपा नेत्री मायावती उनको राजनैतिक व सामाजिक न्याय दिलाने जा रही हैं। माना जा रहा है कि कभी वह बसपा से नाराज होकर सपा में चले गये थे तथा एक बार स्वयं बसपा नेत्री मायावती ने ही उन्हें पकड़वाया भी था लेकिन अब वह वोटबैंक की चाहत में निर्दोष हैं तथा उन्हें विरोधी ताकतों ने राजनैतिक विद्वेष की भावना से फंसाया है। सबसे बड़ी बत यह है कि बसपा ने ही उन्हें 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़ाया था और उन्हें गरीबों का मसीहा बताकर पेश किया था लेकिन तब भी वह भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी से 17 हजार से भी अधिक मतों सें हार गये थे। 2010 में अंसारी बंधुओं के बसपा से रिश्ते खराब होते चले गये तथा बाद में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। लेकिन यहां पर भी मायावती का कहना है कि अब उन्हें अपनी गलतियों का पछतावा हो रहा है। यही आज की राजनीति का तकाजा है।
इन सभी लोगों को बसपा में शामिल करने के पीछे सबसे बड़ा तर्क यह है कि बसपा का सारा गणित दलित−मुस्लिम वोट बैंक पर टिका है। सपा व कांग्रेस के बीच गठबंधन के बाद मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव की संभावना बढ़ गयी है। ऐसे में बसपा मुस्लिम मतदाताओं का ठोस समर्थन पाने की कवायद में दिन रात जुटी हुयी है तथा बाहुबली विधायकों को बसपा में शामिल करवाना उसी रणनीति का एक बड़ा हिस्सा है। दूसरी बड़ी बात यह है कि जब अंसारी बंधुओं को टिकट देने का ऐलान किया गया था उससे पहले ही अपने पहले से घोषित उम्मीदवारों को चुनाव मैदान से हटा लिया था लेकिन यह भी खबर है कि कुछ उनमें से बागी हो सकते हैं। इसी बीच बसपा नेत्री मायावती ने सीएम अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव को भी चारा फेंका है तथा उनके प्रति विशेष राजनैतिक सहानुभूति दिखाने का प्रयास किया है जिससे रानजैतिक हलकों में यह संकेत भी चला गया कि क्या चाचा शिवपाल भी बसपा के हाथी पर सवार होंगे? इसी को कहा जाता है सहूलियत और स्वार्थ की राजनीति, किसी को प्रदेश व देश के विकास की चिंता नहीं कोई परिवार बचाना चाह रहा है तो कोई जेल जाने से बचना चाह रहा है।
- मृत्युंजय दीक्षित
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