5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में नोटबंदी ही है अहम मुद्दा
चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के साथ ही पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज गया है। वैसे देखा जाए तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास भी कहा जा सकता है हालांकि इसे लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है।
चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के साथ ही पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज गया है। वैसे देखा जाए तो इसे 2019 के लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास भी कहा जा सकता है हालांकि इसे लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम शुरू से ही देश की भावी राजनीति को प्रभावित करते आए हैं। वैसे भी उत्तर भारत के तीन प्रमुख प्रदेश उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के साथ ही गोआ और मणिपुर में भी 4 फरवरी से चुनाव होने जा रहे हैं वहीं इसी साल के अंत में गुजरात सहित अन्य प्रदेशों के चुनाव होंगे। यह चुनाव देश के भविष्य की राजनीति तय करेंगे। कोई कहे या ना कहे पर इस बार के चुनावी नतीजों में जहां केन्द्र सरकार द्वारा खेले गए नोटबंदी के जुए का असर साफ दिखाई देगा, वहीं चुनाव आयोग के नए निर्देश और हाल ही में सर्वोच्च अदालत द्वारा दिए गए निर्णय से भी चुनाव प्रभावित होंगे।
इन चुनावों को लेकर चुनाव आयोग के सामने भी कड़ी चुनौती होगी। इसका एक प्रमुख कारण देश में राजनीतिक दलों में बढ़ती असहिष्णुता, पेड न्यूज, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की पालना कराने और शांति व व्यवस्था बनाए रखते हुए चुनाव कराना बड़ी चुनौती होंगे। इसके साथ ही जिस तरह का गतिरोध पिछले लंबे समय से राजनीतिक दलों में बना हुआ है उसका असर भी साफ तौर से दिखाई देगा। हालांकि इनमें से पंजाब और गोआ को छोड़कर शेष राज्यों में भाजपा से इतर दलों की सरकार है ऐसे में सरकारी संशाधनों के दुरुपयोग के आरोप भाजपा पर कम ही लगेंगे।
हालांकि चुनावों की घोषणाओं के साथ ही चुनाव विश्लेषकों के आरंभिक सर्वेक्षण आने लगे हैं पर इन सर्वेक्षणों को जेहन में रखना मात्र ही प्रर्याप्त होगा क्योंकि चुनाव का ऊँट किस करवट बैठेगा यह भविष्य ही तय करेगा। भले ही कोई लाख कहे कि इन चुनावों को स्थानीय राज्य स्तरीय परिस्थितियां प्रभावित करेगी पर मेरा स्पष्ट मानना है कि इन चुनावों को सर्वाधिक प्रभावित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवंबर को एक हजार और पांच सौ रुपए के नोट बंद करने और उसके बाद की परिस्थितियां प्रभावित करेंगी। यह भी साफ हो जाना चाहिए कि चंडीगढ़ या महाराष्ट्र के स्थानीय चुनाव परिणाम को विधानसभा चुनावों के संदर्भ में देखना बेमानी होगा। अब नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख तक सभी दलों में आया राम−गया राम का दौर शुरू हो जाएगा वहीं ओछे आरोपों की बाढ़ भी आएगी। उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी में आंतरिक मतभेद व चौराहे पर आई आपसी लड़ाई सामने है।
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नोटबंदी का व्यापक असर इन चुनावों में साफ दिखाई देगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 8 नवंबर को नोटबंदी और उसके बाद पुराने नोटों को बदलवाने, नए नोट निकालने, बैंकों की लंबी कतारें, कतारों में मौत को राजनीतिक हथियार बनाने, 50 दिन के बाद भी स्थिति पूरी तरह से सामान्य नहीं होने, नए नोटों के जखीरे के आए दिन पकड़े जाने का असर साफ तौर से इन चुनावों में दिखाई देगा। देश का प्रत्येक नागरिक आज काले धन के खिलाफ है। इसके अलावा जिस तरह से केन्द्र सरकार द्वारा अलगाववादी व नक्सलवादी गतिविधियों की कमी को इश्यू बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है उससे लोग प्रभावित तो हो रहे हैं। मानें या ना मानें पर आम आदमी आए दिन के रुपयों की पकड़ा धकड़ी से खुश है। लाख परेशानी के बावजूद छापेमारी के समाचारों से आम आदमी में यह धारणा बनती लगती है कि सरकार के नेक प्रयासों को सरकारी मशीनरी खासतौर से कुछ बैंकों और कुछ बैंक कर्मियों ने विफल करने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
भाजपा के पक्ष में यह बात भी जाती लगती है कि एक और नरेन्द्र मोदी नोटबंदी के पक्ष में डटे रहे तो दूसरी और समूचा विपक्ष नोटबंदी की खिलाफत में सामने आ गया। विपक्ष लाख कहे कि वह भी काला धन के खिलाफ है या नोटबंदी के खिलाफ नहीं, लेकिन लोगों के गले बात नहीं उतरी है। लाख कोशिशों के बाद सरकार हालातों को सुधार नहीं पाई तो विपक्ष भी मुद्दे को सही ढंग से उठा नहीं पाया। यदि जनता को हो रही परेशानी को विपक्ष संसद में भी प्रभावी तरीके से उठाता तो विपक्ष को अधिक फायदा होता। आखिर संवैधानिक संस्थाओं का तो पक्ष या विपक्ष दोनों को ही सम्मान करना होगा। यह चुनाव नोटबंदी के कारण राजनीतिक दलों के पास होने वाले वित्तीय संसाधनों की कमी से भी प्रभावित होंगे। इससे लगता है कि धनबल का असर कम होगा, बाहुबल का असर कम करने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग व प्रशासन की होगी।
पांच राज्यों में चुनावी बिगुल अब बज गया है। आरोप प्रत्यारोप अब अधिक पैनापन लेकर आएंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद जातिगत आधार पर ही टिकटों का वितरण होगा, व्यक्तिगत छीटांकशी भी होगी, माहौल को जानबूझकर गर्माया जाएगा। आपसी खींचतान होगी। एक दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास होंगे। इस सबके बीच देखा जाए तो नेताओं या दलों की नहीं बल्कि मतदाताओं की परीक्षा होने जा रही है। फैसला मतदाताओं को ही करना है। यह चुनाव देश की भावी दिशा को तय करने में जा रहे हैं ऐसे में इन पांच राज्यों के नागरिकों की और पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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