मुलायम की हार में भी जीत, सब कुछ लुटा बैठे शिवपाल

अजय कुमार । Jan 19 2017 4:15PM

सपा में मुलायम युग समाप्त हो चुका है। कल तक पार्टी को अपनी जागीर समझने वाले बुजुर्ग समाजवादी नेता या तो आज अखिलेश के पीछे खड़े हैं, या फिर हाशिये पर पहुंच गये हैं।

समाजवादी पार्टी धीरे−धीरे अखिलेशमय होती जा रही है। 25 वर्षों की कड़ी मेहनत और सियासी दांवपेंच के सहारे मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी को जिस ऊंचाइयों तक पहुँचाया था अब उसे अखिलेश यादव नई सोच और नये कलेवर के साथ आगे ले जाना चाहते हैं। उन्हें नेताजी के झुके हुए कंधों से अधिक अपने कंधों और अपने लोगों पर भरोसा है। आज की तारीख में अखिलेश के मन में नेताजी के लिये सम्मान तो है, मगर युवा अखिलेश यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि मुलायम द्वारा तैयार की गई सियासी पिच पर वह और आगे बढ़ सकते हैं। मुलायम ने अकेले ही संघर्ष के पथ पर चलते हुए मंजिल नहीं हासिल की थी। उनके साथ एक से एक धुरंधर नेताओं की मजबूत टीम हुआ करती थी। आज भले ही मुलायम की नहीं सुनी जा रही है, लेकिन मुलायम ने कभी अपने साथ के लोगों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था। संघर्ष के दौर में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कई नेताओं के बच्चों तक को मुलायम ने राजनीति में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण के बेटे चौधरी अजित सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सिंह के बेटे नीरज शेखर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा, सांसद मोहन सिंह की बेटी कनक लता सिंह, भगवती सिंह के दामाद महेन्द्र कुमार सिंह, चौधरी हरमोहन सिंह के बेटे सुखराम सिंह जैसे तमाम उदाहरण हैं। अपनी ही पार्टी के नहीं दूसरे दलों के नेताओं के भी पुत्रों को मुलायम ने खूब सियासत चमकाने का मौका दिया। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और मुलायम सिंह बिल्कुल विपरीत दिशा में सियासत करते थे, परंतु सच्चाई यह भी है कि कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह भी मुलायम सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसी प्रकार से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की सियासत चमकाने में भी मुलायम की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। मुलायम ने लोकसभा चुनाव में कभी भी राहुल के खिलाफ सपा का कोई प्रत्याशी ही नहीं उतारा। अगर उतारा भी तो कमजोर प्रत्याशी ही उतारा ताकि राहुल बाबा की जीत पक्की हो जाये, जिसने दूसरों के बच्चों को आगे बढ़ाने में कोई कोर−कसर नहीं छोड़ी थी, वह अपने परिवार के बच्चों को कैसे पीछे देख सकता था। यही कारण है आज मुलायम के परिवार के करीब दो दर्जन बच्चे सियासत में ताल ठोंक रहे हैं।

खैर, यह सपा का अतीत है जो वर्तमान से बिल्कुल अलग है। आज समाजवादी पार्टी अखिलेश के नाम से जानी−पहचानी जाती है। सपा में मुलायम युग समाप्त हो चुका है। कल तक पार्टी को अपनी जागीर समझने वाले बुजुर्ग समाजवादी नेता या तो आज अखिलेश के पीछे खड़े हैं, या फिर हाशिये पर पहुंच गये हैं। पार्टी पर वर्चस्व की जंग में नेताजी मुलायम सिंह तक बेटे के सामने बौने नजर आये, लेकिन मुलायम सिंह के लिये बस संतोष वाली बात यह रही कि उन्हें बेटे से हार का सामना करना पड़ा, जो कहीं न कहीं उन्हें सुकून भी पहुंचाता होगा। मुलायम को बेटे से सियासी शिकस्त जरूर मिली, लेकिन नेताजी का पार्टी में सम्मान बरकरार है। भले ही इसके लिये कुछ लोग अखिलेश को श्रेय देते हों लेकिन ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं है जो यह कहने से हिचकिचाते नहीं हैं कि अखिलेश के लिये पिता से अलग राह पकड़ना आसान नहीं था। यही वजह है एक तरफ तो अखिलेश पिता के आदेशों की नाफरमानी करते रहे तो दूसरी तरफ 'बच्चे−बूढ़े एक समान' की तर्ज पर उन्हें 'पुचकारते' भी रहते हैं। हो सकता है कि जल्द ही मुलायम सिंह बेटे अखिलेश के पक्ष में पार्टी के लिये प्रचार करते दिख जायें। समाजवादी सियासत के लिये ऐसा जरूरी भी है। वर्ना इसका नुकसान अखिलेश को उठाना पड़ सकता है।

पिता−पुत्र की इस जंग में मुलायम का तो कोई खास नहीं बिगड़ा, परंतु चाचा शिवपाल यादव की सियासत पर पूरी तरह से ग्रहण लग गया है, जिन्हें अखिलेश खेमा कहीं न कहीं अमर सिंह के साथ ही पूरी समस्या का सूत्रधार मानता था। अमर सिंह तो पूरा ड्रामा खत्म होने से पहले ही लंदन के लिये उड़ गये, छोड़ गये तो शिवपाल यादव को। कभी समाजवादी पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले शिवपाल यादव की पद और प्रतिष्ठा दोनों ही चली गई। शिवपाल में डर का आलम यह है कि वह अब कानून विदों से इस बात की राय ले रहे हैं कि अपने नाम के साथ वह समाजवादी पार्टी, प्रदेश अध्यक्ष लिखें या नहीं लिखें। उन्हें डर सता रहा है कि अगर वह प्रदेश अध्यक्ष लिखते हैं तो कहीं उनके खिलाफ कोई एफआईआर न लिखा दे। अखिलेश ने नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया है।

चुनाव आयोग से नाम और सिंबल की लड़ाई जीतने के बाद अखिलेश ने सपा संगठन में उन चेहरों को वापस बुला लिया है, जिन्हें शिवपाल यादव ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था और उन नेताओं को संगठन से निकाल दिया है जिन्हें शिवपाल ने तवज्जो दी थी। इसी क्रम में चुनावी बेला में अखिलेश ने पांच विधान परिषद सदस्य समेत नौ युवा सपा नेताओं का निष्कासन खत्म करने के साथ ही सात फ्रंटल संगठनों के अलावा अल्पसंख्यक मोर्चा, व्यापार सभा व महिला सभा में नए अध्यक्ष तैनात कर दिये हैं। एमएलसी संजय लाठर, सुनील सिंह यादव 'साजन', आनंद सिंह भदौरिया, उदयवीर सिंह, अरविंद प्रताप सिंह यादव का निष्कासन रद्द् कर दिया गया। जिन अध्यक्षों पर शिवपाल यादव के करीबी होने का ठप्पा लगा था, उन्हें हटा दिया गया। इसी के साथ चारों युवा फ्रंटल संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों को उनके पदों पर बहाल कर दिया है। समाजवादी महिला सभा और व्यापार सभा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर क्रमशः गीता सिंह व आनंद अग्रवाल को नामित किया गया है।

सपा मुखिया अखिलेश यादव के निर्देश पर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने विधान परिषद सदस्य संजय लाठर, सुनील सिंह यादव 'साजन', आनंद सिंह भदौरिया, उदयवीर सिंह और अरविंद प्रताप यादव के अलावा समाजवादी युवजन सभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष गौरव दुबे, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजेश यादव, यूथ बिग्रेड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मो. एबाद व छात्र सभा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह देव को बहाल कर दिया है। इनमें पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव के भांजे अरविंद प्रताप यादव को जमीनों पर कब्जे व अनुशासनहीन आचरण का आरोप लगाकर निष्कासन किया गया था। उदयवीर को मुलायम सिंह को तीखा पत्र लिखने और राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने की सलाह देने पर बर्खास्त किया गया था। अन्य सभी को मुलायम के आवास व सपा कार्यालय पर उग्र प्रदर्शनों के बाद पार्टी से निकाला गया। ये प्रदर्शन अखिलेश यादव को हटाकर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर हुए थे।

- अजय कुमार

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