गुजरात के ऊना में फिल्म ''पीपली लाइव'' जैसा माहौल
राजनीतिक पार्टी चाहे राष्ट्रीय स्तर की हो या क्षेत्रीय स्तर की, सभी के नेता एक बार यहाँ आकर पीड़ितों का हाल जानने और उनके साथ चाय पीते हुए तसवीरें खिंचवाने के लिए आतुर दिख रहे हैं।
गुजरात के ऊना में फिल्म 'पीपली लाइव' की कहानी जैसा माहौल हो गया है। कथित रूप से मृत गाय की चमड़ी निकाल रहे दलित युवकों की गौरक्षकों द्वारा की गयी पिटाई का वीडियो ऐसा वायरल हुआ कि बड़े-छोटे सभी राजनीतिक दलों को अपनी अपनी राजनीति चमकाने का मौका मिल गया। टीवी समाचार चैनलों की ओबी-वैनों के चलते पीड़ितों के गाँव में खासी चहल-पहल है। राजनीतिक पार्टी चाहे राष्ट्रीय स्तर की हो या क्षेत्रीय स्तर की, सभी के नेता एक बार यहाँ आकर पीड़ितों का हाल जानने और उनके साथ चाय पीते हुए तसवीरें खिंचवाने के लिए आतुर दिख रहे हैं। आतुरता इनती ज्यादा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री तो घायलों का हाल जानते जानते एक कांस्टेबल की हत्या के आरोपी से भी मुलाकात कर आये।
एक स्थानीय आपराधिक घटना को जिस तरह राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया है उससे साबित होता है कि हमारे राजनीतिक दलों को राष्ट्र के समक्ष खड़ी असल समस्याओं की परवाह नहीं है और बस एक ही लक्ष्य रहता है कि सत्तारुढ़ दल को कैसे भी घेरा जाए। पीड़ितों का हाल जानने सबसे पहले मुख्यमंत्री आनंदीबेन पहुँची थीं लेकिन उस पर मीडिया का ध्यान नहीं गया और सारा फोकस दूसरे राज्यों से आ रहे नेताओं पर नजर आ रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की पीड़ितों से मुलाकात के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पीड़ितों से मुलाकात की यही नहीं उन्होंने एक कांस्टेबल की मौत के आरोपी बनाये गये व्यक्ति से भी मुलाकात की, इस पर विवाद खड़ा हुआ तो वह कांस्टेबल के घरवालों से भी मिलकर आये। अब तृणमूल कांग्रेस का एक दल भी कोलकाता से गुजरात जाने वाला है। राकांपा नेता शरद पवार भी ऊना पहुँच कर पीड़ितों का हाल जानेंगे। जनता दल युनाइटेड, वामपंथी दलों के अलावा कुछ और दलों की विज्ञप्तियों में भी बताया गया है कि उनके दल भी ऊना का दौरा कर पीड़ितों का हाल जानेंगे और उनके साथ एकजुटता जताएंगे। सभी राजनीतिक दलों की ओर से दिखाई जा रही इस संवेदना और एकजुटता की तारीफ करनी चाहिए लेकिन एक सवाल यह भी उठता है कि क्या गुजरात के बाहर दलितों पर होने वाले हमलों के खिलाफ भी ऐसी ही एकजुटता दिखाई गई है।
गुजरात में जो कुछ हुआ वह घोर निंदनीय है लेकिन इस पर राजनीति करने से बचा जाना चाहिए और समाज के लोगों को नाहक ही उद्वेलित नहीं करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि आरोपियों को सख्त सजा शीघ्र ही दिलाए ताकि आगे से ऐसी वारदात नहीं हो सके। इस सबके अलावा दलित समाज के कई युवकों की ओर से आत्महत्या के प्रयास किये जाने की जो खबरें आ रही हैं वह चिंताजनक हैं। सरकार को जल्द से जल्द समाज के भीतर कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास जगाना चाहिए। युवकों को भी समझना चाहिए कि जीवन समाप्त कर देना किसी समस्या का हल नहीं है। जीवन अमूल्य है और संघर्ष से हर जंग जीती जा सकती है।
गुजरात काफी संवेदनशील राज्य भी माना जाता है और असामाजिक तत्व सदैव इसी प्रयास में रहते हैं कि कैसे माहौल को बिगाड़ा जाये। ऊना की घटना के विरोध में जिस तरह राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध किये जा रहे हैं, तोड़फोड़ की खबरें आ रही हैं वह चिंताजनक स्थिति को बयां करती हैं। अभी गत वर्ष पाटीदार आंदोलन के दौरान राज्य में हालात काफी बिगड़ गये थे। राज्य और केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह किसी भी स्थिति में राज्य के हालात को बिगड़ने नहीं दें। इस कार्य में सभी दलों का सहयोग वांछित है लेकिन फिलहाल तो अधिकतर दल इस घटना से राजनीतिक लाभ लेने में जुटे हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि दलितों पर हमले की घटना एकमात्र गुजरात राज्य में हुई है लेकिन गुजरात चूँकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है इसलिए यहाँ की किसी घटना को लेकर केंद्र सरकार को घेरने का मतलब प्रधानमंत्री पर निशाना साधना है। जितने भी नेता ऊना पहुँच रहे हैं वह नरेंद्र मोदी को तब से नापसंद करते हैं जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दलों का मानना है कि यदि गुजरात की सत्ता से किसी तरह भाजपा बाहर हो जाये तो राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का मनोबल कम होगा क्योंकि गुजरात उसका गढ़ माना जाता है और इसी राज्य को कभी 'हिन्दुत्व की प्रयोगशाला' कहा गया था। गुजरात में नगर निगम का भी चुनाव हो तो उसे मोदी की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता रहा है। हालिया पंचायत चुनावों में भी जब भाजपा को झटका लगा था तो इसे मोदी की ही नाकामी के तौर पर प्रचारित किया गया था।
विपक्षी दलों को लगता है कि नरेन्द्र मोदी के गुजरात से हट जाने के बाद उनके लिए मैदान साफ हो गया है। मुख्यमंत्री आनंदीबेन का प्रदर्शन खुद भाजपा की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा है और वह अपनी बेटी को भू-आवंटन के मुद्दे को लेकर विवादों में भी रही हैं। विपक्ष खासकर कांग्रेस को लगता है कि यह उसके लिए 'अभी नहीं तो कभी नहीं' जैसी स्थिति है। हालाँकि कांग्रेस के पास भी राज्य में ऐसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं है जिसे सभी गुटों का समर्थन हासिल हो लेकिन फिर भी प्रयास यही है कि भाजपा पर बढ़त बनाने के सभी अवसरों का पूरी तरह उपयोग किया जाए। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी राज्य में अपने लिए बेहतर भविष्य देख रही है। वह पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के संपर्क में बतायी जा रही है ताकि वह आप में आकर गुजरात में पार्टी को मजबूती प्रदान करें। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक कई बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं और इससे वह यही संदेश देना चाहते हैं कि राज्य को लेकर उनकी पार्टी गंभीर है। हालाँकि यहाँ सरकार बनाने का सपना देखना उनके लिए अभी दूर की कौड़ी है लेकिन फिर भी आप का आधार बढ़ने से नुकसान भाजपा को भी होगा क्योंकि दो दलों के बीच होने वाली सीधी लड़ाई में भाजपा लगातार जीतती रही है यदि मामला त्रिकोणीय य चतुरकोणीय होता है तो मुश्किलें बढ़ेंगी।
बहरहाल, कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने ऊना की घटना को 'गुजरात मॉडल' बताया है लेकिन वह यह भूल गये कि गुजरात में ऐसी बहुत-से विकास कार्य हुए हैं जिनको भी 'गुजरात मॉडल' कहा जाता है। नकारात्मक बात के आधार पर अपने ही राज्य की गलत छवि बनाकर अहमद पटेल अपनी पार्टी को क्षणिक राजनीतिक लाभ दिलाने को ही बड़ी उपलब्धि मानें तो मान सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चाहिए कि ऊना की घटना पर अपनी चुप्पी तोड़ें। उक्त घटना पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की ओर से संसद में दिये गये अपने बयान में यह कह देना कि 'प्रधानमंत्री इस घटना से दुखी थे', ही काफी नहीं है।
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