अटलजी के विपक्ष में भले ढेरों नेता थे पर विरोधी एक भी नहीं था

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अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे, यह लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के लिए बेहद दुखद समाचार है। राष्ट्र हित को हमेशा पहली प्राथमिकता मानते हुए राजनीति करने वाले हमारे देश में विरले ही लोग हुए हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी पर क्या लिखा जाये ? आलेख की कहां से शुरुआत की जाये ? उनके व्यक्तित्व के किस पहलू ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया ? कैसे वह भारतीय जनमानस के दिलोदिमाग पर इस तरह छा गये ? इस तरह के सवाल मन को घेरे हुए हैं इसलिए हो सकता है कि यह आलेख, लेखन के नियमों को तोड़ दे लेकिन इसे भावनाओं का प्रकटीकरण माना जाना चाहिए।

अटलजी के अंतिम सफर में उमड़ा था भारत

अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे, यह लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के लिए बेहद दुखद समाचार है। राष्ट्र हित को हमेशा पहली प्राथमिकता मानते हुए राजनीति करने वाले हमारे देश में विरले ही लोग हुए हैं। ऐसा विराट व्यक्तित्व आखिर इससे पहले किसने देखा जिसे श्रद्धांजलि देने के लिए जातियों, धर्मों और पार्टियों के बंधन टूट गये, छोटे बच्चों से लेकर ऐसे बुजुर्ग जोकि सहारा लेकर ही चल सकते थे वह भी अटलजी की अंतिम यात्रा में शामिल हुए, यही नहीं राष्ट्र और पूरी दुनिया ने देखा कि अपने सर्वोच्च नेता के चले जाने से गमगीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कड़ी धूप में 8 किलोमीटर पैदल चलकर अटलजी के अंत्येष्टि स्थल तक पहुँचे। अटलजी को जीते जी तो सम्मान मिला ही, मृत्यु के बाद भी देश ने उन्हें वह सम्मान दिया जिसके वह हकदार थे। उनके अंतिम संस्कार में सिर्फ भारतीय नेता ही नहीं बल्कि विदेशों से भी जिस प्रकार वहां के नेता उमड़े, विदेशी राजनयिक उमड़े वह दर्शाता है कि भारत माता ने ही नहीं दुनिया ने भी अपना एक बहुमूल्य रत्न खो दिया है।

अटलजी वाकई भारत रत्न थे

श्रद्धेय अटलजी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भले उन्हें 2015 में मिला हो लेकिन वह तो अपने आरम्भ काल से ही भारतीयों के दिलों में बसते हैं। भला, कौन भूल सकता है जब 13 दिनों की अटलजी की सरकार गिर गयी थी, अटलजी ने सत्ता के लिए जोड़तोड़ करने से साफ इंकार कर दिया था। कह दिया था कि पार्टियों में तोड़फोड़ से मिली सत्ता को वह चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करेंगे। अटलजी की सरकार गिरने से भले 1996 में विपक्ष खुश हुआ हो लेकिन देश निराश था। 1998 में जब अटलजी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो अमेरिका सहित अन्य विदेशी सैटेलाइटों और विदेशी गुप्तचरों को जरा भी भनक नहीं लगने दी कि भारत परमाणु परीक्षण करने जा रहा है, जो काम पिछले कई प्रधानमंत्री नहीं कर पाये थे वह अटलजी ने सत्ता में आते ही कर दिखाया। दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाये लेकिन अटलजी ने इस मौके का उपयोग भारत को आत्मनिर्भर बनाने में लगाया। अटलजी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए लाहौर तक बस चलवाई, खुद उसमें बैठ कर लाहौर तक भी गये लेकिन जब कारगिल में घुसपैठ के जरिये उन्हें धोखा मिला तो पाकिस्तान को कड़ा सबक भी सिखाया।

अटलजी के लिए राष्ट्र ही सबकुछ था

अटलजी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं विचार थे जिसने भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों को नये सिरे से स्थापित किया, जिसने व्यक्तिगत आलोचनाओं का विरोध किया। दूसरी पार्टियों के लोग भले कितनी भी तगड़ी आलोचना करें पर अटलजी व्यक्तिगत आलोचना नहीं करते थे। उनके शब्दों में व्यंग्य जरूर होता था लेकिन शब्द रूपी तीखे बाण वह कभी नहीं चलाते थे। सत्ता का मोह नहीं रखने वाले ऐसे शीर्षस्थ नेता भारत ही नहीं दुनिया में भी कम ही हुए हैं। देश नहीं भूला है वह दृश्य जब लोकसभा में एक वोट से अपनी सरकार गिर जाने पर उस फैसले को स्वीकार करते हुए अटलजी संसदीय परम्पराओं का पालन करते हुए सीधा राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपने चले गये थे। देश नहीं भूला है वह दृश्य जब अटलजी ने अपनी ही पार्टी की गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए उसे राष्ट्रधर्म निभाने की सलाह सार्वजनिक रूप से दे डाली थी। ऐसी सलाह वही दे सकता है जिसके लिए पार्टी से बड़ा राष्ट्र हो।

 

सबका साथ, सबका विकास अटलजी की ही देन

बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद जब भाजपा को राजनीतिक छुआछूत का सामना करना पड़ रहा था और कोई भी दल उसके साथ नहीं आना चाहता था तब वाजपेयी जी के चेहरे को ही भाजपा ने आगे किया। उस समय 24 दलों की गठबंधन सरकार सफलतापूर्वक चला कर अटलजी ने साबित किया था कि वह गठबंधन राजनीति के ब्रांड अम्बेसेडर हैं। उस समय जो भी दल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल हुआ था उसने यही कहा था कि समर्थन भाजपा को नहीं अटल बिहारी वाजपेयी को दिया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देकर उस पर अमल करने की बात कर रहे हैं लेकिन देखा जाये तो 'सबका साथ, सबका विकास' तो अटलजी ने ही शुरू किया जिसको मोदी आगे बढ़ा रहे हैं।

महापुरुष ऐसे ही होते हैं

अटल बिहारी वाजपेयी के विपक्ष में भले बहुत दल या राजनेता थे लेकिन उनके विरोध में एक भी दल और एक भी राजनेता नहीं था। अटलजी को जिस तरह हर राजनीतिक दल और राजनेताओं ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी है वह महापुरुषों को ही नसीब होती है। अटलजी राजनीति में भद्रता, मर्यादित भाषा का ही इस्तेमाल करने वाले, सत्ता के लिए कभी किसी को धोखा नहीं देने वाले, विपक्ष के लोगों के भी विचार सुनने और यदि अपनी गलती हो तो उसे स्वीकार करने वाले, आम जनता से सीधा संवाद बनाने वाले, भारत माता का गौरव दुनिया में बढ़ाने वाले, अपनी कविताओं और रचनाओं से देशप्रेम का पाठ पढ़ाने वाले अजातशत्रु थे।

हर भारतीय के दिल में बसते हैं अटलजी

यह अटलजी ही थे जो लगभग दस वर्षों तक बिस्तर पर रहे और इस दौरान हर भारतीय यही दुआ करता रहा कि काश! अटलजी उठें और बोलें। हर कोई उनको सुनना चाहता था। इन वर्षों में शायद ही कोई ऐसा समय हो जब सक्रिय राजनीति में उनके नहीं रहने के बावजूद कभी उनके विचारों और भाषणों का जिक्र नहीं हुआ हो। अटलजी चले गये, सबको निःशब्द कर गये, सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में तो अवकाश सरकार ने घोषित किया लेकिन यह उनकी शख्सियत का ही कमाल था कि निजी कार्यालयों ने स्वतः ही अवकाश घोषित कर दिये गये, व्यापारियों ने मंडियां और दुकानें एक दिन के लिए बंद कर दीं, मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में अटलजी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थनाएं की गयीं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद देश ने दूसरी बार इतनी बड़ी अंतिम यात्रा किसी नेता की देखी।

सोशल मीडिया पर पहली बार पसरा गम

और तो और दिन भर चुटकुलों, एक दूसरे पर कटाक्षों और बेकार की चीजों के वायरल होने का मंच सोशल मीडिया भी गमगीन नजर आया। यह पहली बार था कि सोशल मीडिया पर गम पसरा हुआ था। इससे पहले इस मंच पर विभिन्न घटनाओं को लेकर आक्रोश, हास्य, किसी की खिंचाई आदि के पोस्ट जरूर देखे गये हैं लेकिन अटलजी के निधन से सोशल मीडिया भी स्तब्ध रह गया। अटलजी के भाषण, उनकी कविताएं, उनके विचार, उनकी तसवीरें, उनसे जुड़े तथ्य ही सोशल मीडिया पर एक दूसरे को भेजे जा रहे हैं। यही नहीं व्हाट्सएप पर पहली बार दिखा कि आम जनता ने अपनी डीपी में अटल बिहारी वाजपेयी की तसवीर लगायी हुई है। इससे पहले त्योहारों पर राष्ट्रीय पर्वों पर उनसे संबंधित तसवीरें तो डीपी में लगती दिखी हैं लेकिन अटलजी पहले ऐसे राजनेता बने जिनकी तसवीरें लगाकर लोगों ने उनके प्रति अपना प्यार जताया। जो भी पोस्ट सोशल मीडिया पर चल रहे थे वह सब उनकी प्रशंसा भरे थे। एक पोस्ट में तो लिखा था- दोस्तों बड़ी रौनक होगी आज भगवान के दरबार में, एक फरिश्ता पहुँचेगा जब जमीं से आसमान में।

बहरहाल, अटलजी के बारे में कहने को तो बहुत है लेकिन वह अनंत है, यही नहीं उनसे जब जब मुलाकात हुई उस दौरान की बातें, अटलजी के निर्वाचन क्षेत्र लखनऊ में चुनाव प्रचार के दौरान की यादें जैसी बहुत-सी बातें हैं लेकिन शायद भावनाएं इतनी प्रबल हैं कि वह इससे आगे नहीं बढ़ने दे रहीं। अटलजी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके जीवन से जुड़ी कोई बात अपने जीवन में भी अंगीकार कर संकू। अटलजी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।

-नीरज कुमार दुबे

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