घनघोर विपक्षी पर भी व्यक्तिगत प्रहार नहीं करते थे अटलजी

Atalji always respected the opposition
तरूण विजय । Dec 25 2017 9:59AM

जब वे दोबारा प्रधानमंत्री बने तो अधिक आत्मविश्वास के साथ कठोर निर्णय भी लेने में हिचकिचाए नहीं। पोखरन-2 का विस्फोट ऐसा ही चमत्कारिक क्षण था। अमेरिका जैसा तथाकथित सर्वशक्तिशाली देश भी भौचक्का और हैरान रह गया।

अटल जी का व्यक्तित्व एक ऐसे स्वयंसेवक के पुण्य प्रवह की प्रतिबिम्ब है जिसकी कलम ने लिखा था 'गगन में लहरता है भगवा हमारा, रग-रग हिंदू मेरा परिचय और केशव के आजीवन तप की यह पवित्रतम धारा... साठ सहज ही तरेगा इससे भारत सारा।' 'हिरोशिमा की वेदना' और 'मनाली मत जइयो' उनके कवि हृदय की वेदना एवं उछाह दर्शाते हैं तो एक समय ऐसा भी आया जब दुःख व कष्टों ने घेरा। अपनों की मार से हुई व्यथा ने उन्हें झकझोरा, पर वे टूटे नहीं। तार तोड़े नहीं।

वे अपनी बात कहने आए व्यक्ति को इस बात पर अपार संतोष धन देते थे कि अटल जी ने मेरी बात सुन ली। आज संगठनों और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सबसे बड़ी पीड़ा और वेदना इसी बात की है कि सब सुनाने वाले मिलते हैं, सुनने वाले नहीं। मैंने एक बार अटल जी से कहा कि आपके साथ दिल्ली से मथुरा दीनदयाल धाम तक अकेले चार घंटे सफर करने का मौका मिला। बहुत कुछ सुनाने के भाव से मैं ही बकबक करता गया और आप सुनते रहे। इतना धैर्य कहां से आया। अटल जी खूब हंसे और बोले, यही तो मन की बात है। सुनने से कुछ मिलता ही है। जो पसंद आए उसे रख लो, बाकी छोड़ दो।

पाकिस्तान बनने और उसकी नफरत पर उनकी व्यथा इन पंक्तियों में प्रकट हुई-

खेतों में बारूदी गंध, टूट गए नानक के छंद,

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है,

बसंत से बहार झड़ गई, दूध में दरार पड़ गई।

अपनी ही छाया से बैर, गले लगने लगे हैं गैर,

खुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता,

बात बनाएं, बिगड़ गईं, दूध में दरार पड़ गई।

जब वे दोबारा प्रधानमंत्री बने तो अधिक आत्मविश्वास के साथ कठोर निर्णय भी लेने में हिचकिचाए नहीं। पोखरन-2 का विस्फोट ऐसा ही चमत्कारिक क्षण था। अमेरिका जैसा तथाकथित सर्वशक्तिशाली देश भी भौचक्का और हैरान रह गया। दुनिया भर में प्रतिबंध लगने लगे पर अटल जी ने परवाह नहीं की। अमेरिका से सुपर कम्प्यूटर नहीं मिला तो महान वैज्ञानिक विजय भाटकर को प्रोत्साहित कर भारत में ही सुपर कम्प्यूटर बनवाया। क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिला तो भारत में ही उसका विकास किया।

कारगिल में पाकिस्तान को करारी शिकस्त देने के बाद भी आगरा शिखर वार्ता उनके आत्मविश्वास का ही द्योतक थी।

सूचना प्रौ़द्योगिकी में क्रांति, मोबाइल टेलीफोन को सस्ता बनाकर घर-घर पहुंचाना, भारत के ओर-छोर स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्गों से जोड़ना और हथियारों के मामले में भारत को अधिक सैन्य सक्षम बनाना अटल जी की वीरता एवं विकास केंद्रित नीति के शानदार परिचय हैं। वे अंतिम व्यक्ति की गरीबी को दूर करने के लिए बेहद चिंतित रहते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्म मानववाद और गांधी चिंतन में उनकी गहरी श्रद्धा थी इसीलिए भाजपा निर्माण के बाद उन्होंने गांधीवादी समाजवाद को अपनाया। वे अपने घनघोर विपक्षी पर भी घनघोर व्यक्तिगत प्रहार के पक्षधर नहीं थे। हम पांचजन्य में उन दिनों सोनिया जी के नेतृत्व में कांग्रेस की आलोचना करते हुए अक्सर तीखी आलोचना करते थे। ऐसे ही एक अंक को देखकर उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से ही फोन किया- 'विजय जी, नीतियों और कार्यक्रमों पर चोट करिए, व्यक्तिगत बातों को आक्षेप से बाहर रखिए। यह अच्छा होगा।'

एक बार हमने धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे अंक निकाला जिसके मुखपृष्ठ पर काशी के डोमराजा के साथ संतों, शंकराचार्य और विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल का भोजन करते हुए चित्र छपा। अटल जी यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि ऐसी बातों का जितना अधिक प्रचार-प्रसार हो, उतना अच्छा है। ऐसे कार्यक्रमों और होने चाहिए लेकिन मन से होने चाहिए, फोटो-वोटो के लिए नहीं। पांचजन्य के प्रथम संपादक तो वे थे ही, प्रथम पाठक भी थे। प्रधानमंत्री रहते हुए हमारे अंकों पर उनकी प्रतिक्रियाएं मिलती थीं। एक बार स्वदेशी पर केंद्रित हमारे अंक के आवरण पर भारत माता का द्रोपदी के चीरहरण जैसा चित्र देख वे क्रुद्ध हुए- 'हमारे जीते जी ऐसा दृश्यांकन। हम मर गए हैं क्या? संयम और शालीनता के बिना पत्रकारिता नहीं हो सकती।'

पचास के दशक के उस दौर से जब नेहरूवादी मानसिकता के कारण भिन्न मत के वर्ग पर एक प्रकार की वैचारिक अस्पृश्यता का प्रहार होता था और तब अटल जी के संपादकत्व में पांचजन्य, राष्ट्रधर्म, स्वदेश, हिंदुस्तान जैसे पत्र निकाले। अटल जी ने इन सभी पत्रों को एक नई दिशा और कलेवर दिया। वे संघर्ष के दिन थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के साथ कठिनाइयों में भी वे खूब मेहनत से काम करते। तब उन्होंने लिखा-

बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा,

कदम मिलाकर चलना होगा।

इस वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अटल जी के जन्मदिन को सुशासन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया। सुशासन पर अटल जी ने एक साक्षात्कार में कहा था- 'देश को अच्छे शासन की जरूरत है। शासन अपने प्राथमिक कर्तव्यों का पालन करे, हर नागरिक को बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा दे, उसके लिए शिक्षा, उपचार और आवास का प्रबंध करे इसकी बड़ी आवश्यकता है।

अटल जी दीर्घायु हों। उनका जीवन शतशत वसंतों की उत्सवी गंध से सुवासित हरे। वे भारत के राष्ट्रीय नेतृत्व का मानक बने हैं। यह मानक भारत को उजाला दे।

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