कांग्रेस ने वैसे तो कई गलतियां कीं, लेकिन हार की सबसे बड़ी वजहें यह रहीं

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कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने वंशवाद को बढ़ावा दे रहे नेताओं पर हमला बोला, राहुल के इस रुख की सराहना हो पाती उससे पहले ही कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता ने इस बात का खंडन कर दिया कि राहुल ने कार्यसमिति की बैठक में ऐसा कुछ नहीं कहा।

लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई। लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ कि पार्टी संसद में मुख्य विपक्ष का दर्जा हासिल करने लायक भी सीटें नहीं जीत पाई। कांग्रेस कार्यसमिति ने हार के कारणों पर चर्चा करने और जिम्मेदारी तय करने को लेकर एक बैठक भी की लेकिन इस बैठक से कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। बैठक से पहले कहा गया कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देंगे लेकिन उन्होंने जो इस्तीफा देने का प्रस्ताव किया उसे सर्वसम्मति से ठुकरा दिया गया। बाद में यह खबर आई कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने वंशवाद को बढ़ावा दे रहे नेताओं पर हमला बोला, राहुल के इस रुख की सराहना हो पाती उससे पहले ही कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता ने इस बात का खंडन कर दिया कि राहुल गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में ऐसा कुछ नहीं कहा।

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हिन्दू तो बन गये

2014 का लोकसभा चुनाव जब कांग्रेस हारी थी तब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हार की समीक्षा के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश की बहुसंख्यक आबादी हिन्दुओं को लगा कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है इससे वह पार्टी से दूर हो गये। राहुल गांधी ने जब कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला तो एंटनी समिति के निष्कर्ष को ध्यान में रखते हुए जनेऊ धारण किया और चल पड़े मंदिरों की यात्रा पर। इसका फल भी मिला जब गुजरात विधानसभा चुनावों में पार्टी ने पहले से अच्छा प्रदर्शन किया।

खुद को शिवभक्त बताने वाले राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर भी गये और कैलाश मानसरोवर भी गये। यही नहीं लोकसभा चुनावों तक जिस राज्य में वह चुनाव प्रचार करने जाते थे वहां अकसर मंदिरों में पूजा अर्चना करते देखे गये। यही नहीं 2019 के चुनावों में राजनीति में पदार्पण करने वाली उनकी बहन प्रियंका गांधी भी मंदिरों और मजारों पर लगातार गयीं। अब सवाल उठता है कि जब कांग्रेस आलाकमान एंटनी समिति की दिखाई राह पर आगे बढ़ रहा था तब गलती कहाँ हुई ?

मगर राष्ट्रवादी नहीं बन सके

कांग्रेस भाजपा पर आरोप लगा रही है कि वह राष्ट्रवाद का माहौल बनाकर विकास के मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने में सफल रही लेकिन देखिये यहीं कांग्रेस से सबसे बड़ी गलती हुई है। देश पर सर्वाधिक समय तक राज करने वाली पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर अलग सुर अलापती नजर आई और जनता ने उसे ठुकरा दिया। कांग्रेस से गलती सिर्फ चुनावों के वक्त हुई, ऐसा नहीं है। 2016 में जब उरी हमला हुआ और भारतीय सेना ने एलओसी पार कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया तब कांग्रेस ने सेना के शौर्य के सुबूत मांगकर पहली गलती की। कांग्रेस ने चुनावों से पहले सरकार से बार-बार सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगे और चुनावों के वक्त कह दिया कि मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान भी सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। कांग्रेस के अलग-अलग नेता सर्जिकल स्ट्राइक की अलग-अलग संख्या बताते रहे और अपने कार्यकाल के सुबूतों की चर्चा तक नहीं की। बाद में सेना की ओर से साफ किया गया कि सर्जिकल स्ट्राइक पहली बार उरी हमले के बाद ही की गयी थी।

कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगकर अपनी पिछली सरकारों की कथनी और करनी पर भी लोगों की नजरें आकर्षित कर दीं। जब यह बात सामने आई कि मुंबई हमले के दौरान वायुसेना ने सरकार को यह सुझाव दिया था कि सीमापार जाकर कार्रवाई की जाये तो उस समय सेना और वायुसेना को रोक दिया गया था, इससे भी कांग्रेस की चुनावों के दौरान किरकिरी हुई। इसके अलावा पुलवामा हमले के बाद बालाकोट पर की गयी भारतीय वायुसेना की कार्रवाई को पहले तो कांग्रेस ने सराहा लेकिन कुछ दिनों बाद ही वायुसेना से भी सुबूत मांगकर गलती कर दी। कांग्रेस मोदी विरोध की राह में बढ़ते-बढ़ते कब देशविरोधी दिखने लग गयी इसका अहसास शायद उसे हुआ नहीं होगा इसीलिए उसने देशद्रोह को परिभाषित करने वाली धारा 124 (ए) को खत्म करने का वादा अपने चुनाव घोषणापत्र में कर डाला। इस मुद्दे ने तो जैसे ताबूत में आखिरी कील ठोंकने का काम ही कर डाला। सारे देश में एक माहौल बन गया कि कांग्रेस देशद्रोहियों को बचाना चाहती है। 

पिछली गलतियों से नहीं लिया सबक

कांग्रेस भूल गयी कि ऐसी ही गलती अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान उसने 1999 में तब की थी जब चुनावों से ठीक पहले कारगिल की लड़ाई चल रही थी तब पार्टी नेता सरकार के खुफिया तंत्र की विफलता और सरकार के निद्रा में लीन होने का आरोप लगाते रहे।

लेकिन देश और दुनिया देख रही थी कि कैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक बस की यात्रा करके दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के प्रयास किये थे। कारगिल में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ वाजपेयी सरकार की कोई ढिलाई नहीं थी बल्कि पाकिस्तान की ओर से पीठ में घोंपा गया छुरा था।

राफेल पर बेकार का हौवा खड़ा किया

कांग्रेस के कार्यकाल में लगभग हर छोटा-बड़ा रक्षा सौदा विवादों में रहा शायद इसीलिए पार्टी ने राफेल विमान खरीद में भ्रष्टाचार की बात उठाते हुए अपने आरोप सीधे प्रधानमंत्री पर लगाये। लेकिन उच्चतम न्यायालय भी इस मामले पर अपना फैसला सुना चुका है और जो समीक्षात्मक याचिकाएं दायर की गयी हैं उस पर भी फैसला आने वाला है।

रक्षा सौदों में कथित भ्रष्टाचार का तानाबाना बुन कर चौकीदार को चोर कह तो दिया गया लेकिन चुनावों के बीच में जिस तरह चौकीदार को चोर कहने के लिए माफी मांगनी पड़ी उससे भी साफ हो गया कि कांग्रेस इस अति आधुनिक विमान की भारत को आपूर्ति में बाधा पैदा करने का खेल खेल रही है।

यही नहीं गोवा के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर को भी राहुल गाहे-बगाहे राफेल मामले में घसीटते रहे जिससे उनकी छवि खराब हुई। राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कांग्रेस भले गंभीर पार्टी हो लेकिन चुनाव जीतने के लिए उससे लगातार ऐसी गलतियां होती चली गयीं जिनसे पार्टी बचती तो शायद स्थिति दूसरी होती।

-नीरज कुमार दुबे

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