योगी और मौर्या के बीच लगातार टकराव से भाजपा की चिंता बढ़ी

BJP''s concern increased with constant collision between Yogi and Maurya
अजय कुमार । Feb 3 2018 11:08AM

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पहले साल में ही कई विवादों से घिर गई है। पिछले साल 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब योगी के साथ दो उप−मुख्यमंत्री भी बनाए गए थे।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पहले साल में ही कई विवादों से घिर गई है। पिछले साल 19 मार्च को योगी आदित्यनाथ ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब योगी के साथ दो उप−मुख्यमंत्री भी बनाए गए थे। कहा यह गया कि पिछड़ा−ब्राह्मण−क्षत्रिय समीकरण को साधने के लिए डॉ. दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया गया था लेकिन वोट बैंक को साधने का यह प्रयास साल भर के भीतर ही औंधे मुंह गिरता लग रहा है। डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा से तो किसी को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की महत्वाकांक्षा योगी और सरकार के लिये मुसीबत का सबब बनी हुई है।

दरअसल, बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में अपना 15 साल का राजनीतिक वनवास खत्म किया तो इसका श्रेय मोदी−अमित शाह टीम के अलावा योगी आदित्यनाथ और तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष एवं मौजूदा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या को भी दिया गया। केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ा समाज से आते हैं और पिछड़ा समाज ने विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी के पक्ष में मतदान करके उसकी भरपूर मदद की थी। यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मौर्या की संगठन कार्यों की क्षमता को देखते हुए ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मौर्या को अपने अधिकार क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था, लेकिन चुनाव बाद जब सरकार बनाने की बारी आई तो मौर्या को दरकिनार करके योगी आदित्यनाथ को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया गया। मौर्या को डिप्टी सीएम के पद पर ही संतोष करना पड़ा।

इस बात की कसक मौर्या समर्थकों के चेहरों पर अक्सर देखने को मिल भी जाती है। मगर ऐसा सब नहीं सोचते हैं। इसके उलट कुछ लोग कहते हैं कि यह सच है कि चुनाव के समय केशव प्रसाद मौर्या प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे। परंतु चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद योगी ही सबसे बड़े स्टार प्रचारक थे। मोदी के बाद उनकी सभाओं की सबसे अधिक मांग हो रही थी लेकिन यह बात मौर्या गुट के लोगों को समझ से परे लगती है। वह कहते हैं कि योगी की स्वीकार्यता होगी मगर केशव प्रसाद मौर्या की भी अपनी सियासी जमीन और जलवा है इसीलिये वह पिछड़ों को भाजपा के साथ जोड़ने में कामयाब रहे।

यह सच है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या की तरफ से नाराजगी की कोई बात सामने तो नहीं आई है मगर जिस तरह का घटनाक्रम दिख रहा है वह कई संकेत देता है। कुछ दिनों पहले 24 जनवरी को लखनऊ में आयोजित उत्‍तर प्रदेश दिवस के प्रथम समारोह में मौर्य नहीं पहुंचे तो उनकी नाराजगी की बात को और बल मिल गया। इस संबंध में केशव समर्थकों का कहना था कि यूपी दिवस के विज्ञापन में मौर्य का नाम ही नहीं था, जबकि उनसे जूनियर मंत्रियों के नाम छापे गए थे, फिर केशव वहां कैसे जाते। मामला तूल पकड़ा तो समापन समारोह के विज्ञापन में उनका नाम भी डाला गया और वे पहुंचे भी लेकिन, योगी−मौर्या के बीच की दूरियां साफ नजर आ रही थीं। इससे पूर्व केशव प्रसाद मौर्या को 20 जनवरी को वाराणसी में हुए युवा उद्घोष कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया था। फिर 23 जनवरी को योगी की ओर से बुलाई गई मंत्रियों की मीटिंग में मौर्य नहीं पहुंचे थे। अब उनका यूपी दिवस कार्यक्रम से गायब रहना, फिर से अंतर्कलह को हवा दे गया। पार्टी सूत्र नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि सीएम और डिप्टी सीएम एक साथ एक मंच पर आने से बचते हैं। 4 जनवरी को भाटपार रानी (देवरिया) और 25 को देवरिया के राजकीय इंटर कॉलेज में आयोजित सभाओं में केशव प्रसाद मौर्य ने मंच से मोदी का नाम तो लिया लेकिन योगी का एक बार भी जिक्र नहीं किया तो राजनैतिक पंडितों के कान खड़े हो गये।

दरअसल, दोनों नेताओं में खींचतान 2017 के विधानसभा चुनाव के समय से ही चल रही है। अगड़ी जातियां तो बीजेपी की परंपरागत मतदाता रही हैं लेकिन बीजेपी को जीतने के लिए पिछड़ों का वोट भी चाहिए था। इसलिए फूलपुर से सांसद रहे केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी ने प्रदेश अध्‍यक्ष बना दिया। केशव प्रसाद ने प्रदेश अध्‍यक्ष के रूप में खूब मेहनत की थी, उन्‍होंने ओबीसी वोटों खासकर मौर्य, कुशवाहा, शाक्‍य और सैनी समाज को बीजेपी के पक्ष में गोलबंद कराया। इसलिए वह खुद को सीएम पद का दावेदार मान रहे थे, लेकिन पार्टी नेतृत्‍व ने योगी आदित्‍यनाथ पर भरोसा जताया।

केशव मौर्या का कद छोटा न दिखे और जातीय संतुलन भी बना रहे इसलिये उन्हें डिप्टी सीएम बनाने के साथ पीडब्‍ल्‍यूडी जैसे अहम विभाग दिये गये लेकिन केशव प्रसाद की महत्वाकांक्षा इससे ज्यादा हासिल करने की थी। केशव को इस बात का भी दर्द था कि उन्हें मात्र चार विभाग दिये गये जबकि योगी ने अपने पास करीब तीन दर्जन विभाग रखे थे। इसके अलावा समय−समय पर हुए कई और कारण भी उनकी नाराजगी को बढ़ाते रहे। शपथ लेने के कुछ दिनों बाद केशव प्रसाद एनेक्सी बिल्डिंग पहुंचे। केशव मौर्य ने पांचवीं मंजिल के उसी कार्यालय पर अपनी नेमप्लेट लगवा दी जहां अखिलेश बतौर सीएम बैठा करते थे। उस वक्‍त योगी दिल्ली में थे। जब योगी लखनऊ लौटे तो फिर केशव के नाम का बोर्ड हटा दिया गया। यह शायद पहला मौका था, जब राजनैतिक पंडितों ने मौर्या और योगी के बीच की दरार को देखा था। इसके अलावा मौर्या को यह भी लगता रहा कि गड्ढा मुक्‍त सड़कों को लेकर सीएम लगातार उनके विभाग के काम पर नजर रख रहे हैं, जबकि डिप्टी सीएम को पीडब्ल्यूडी में सीएम की दखलंदाजी पसंद नहीं आती थी।

मौर्या की नाराजगी तब उस समय और बढ़ गई जब गुजरात−हिमाचल प्रदेश में शपथ ग्रहण समारोह में योगी अपने साथ उप−मुख्‍यमंत्री दिनेश शर्मा को तो ले गये, लेकिन केशव को अलग से जाना पड़ा। केशव दूसरे विमान से शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे थे। कहा जा रहा है कि योगी−केशव की काफी समय से मुलाकात भी नहीं हुई है। सूत्र बताते हैं कि सरकार, आरएसएस और संगठन के बीच नौ जनवरी को मुख्यमंत्री आवास पर हुई बैठक में मौर्य ने अपने मन की बात कही थी। जनता के बीच कोई गलत मैसेज नहीं जाये, इसके लिये एक समय केशव प्रसाद को केंद्र में भेजे जाने की भी चर्चा छिड़ी थी लेकिन बाद में यह मामला आगे बढ़ नहीं पाया। पार्टी आलाकमान को डर सता रहा था कि केशव के सहारे जो पिछड़ा वर्ग का वोट बसपा, सपा से खिसक कर बीजेपी की तरफ आया है, कहीं वह खिसक नहीं जाये।

वैसे उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, सीएम योगी के साथ अपने मतभेदों को लेकर लगातर इंकार करते रहते हैं। वह कहते हैं जो लोग हमारे बीच खटास पैदा करना चाहते हैं उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला। योगी और मौर्या के बीच बढ़ी दूरियों को लेकर पार्टी और सरकार में कोई खुल कर तो नहीं बोल रहा है लेकिन इसकी सुगबुगाहट साफ सुनी जा सकती है। संगठन अपने दो बड़े मंत्रियों के बीच अहम के टकराव से न केवल बेचैन है, बल्कि उसे मिशन 2019 की भी चिंता सता रही है।

-अजय कुमार

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