भाजपा से चल रहे मुकाबले में बसपा का आत्मघाती गोल

अजय कुमार । Jul 26 2016 1:16PM

जब धरना प्रदर्शन में बसपा ने पोस्टर में दयाशंकर के लिए अपमानजनक शब्द और उसकी माँ, बहन बेटी को पेश करने की मांग जैसा अपमानजनक बयान दिया तो बसपा के प्रति लोगों में उपजी सहानुभूति ठंडी होती नजर आई।

राजनीति के खेल में कुछ भी स्थायी नहीं होता है। कब किस पार्टी के नेता/कार्यकर्ता क्या बोल जायें और विरोधी उसका क्या मतलब निकालते हुए राजनैतिक फायदा उठा लें, यह हमेशा से अबूझ पहेली रही है। हाल ही में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने 'दयाशंकर प्रकरण' पर सियासी बिसात बिछाकर भाजपा को जबर्दस्त 'मात' दी थी। उसी समय मायावती के लिये अपशब्द कहने वाले भाजपा से निष्कासित नेता दयाशंकर सिंह की माँ तेतरा देवी ने अपनी एक चाल से बाजी पूरी तरह से पलट के रख दी। अब स्थिति यह है कि बैकफुट पर नजर आ रही भाजपा फ्रंट पर आ गई है और कल तक दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सड़क पर हल्ला काटने वाले बीएसपी नेताओं को जवाब देते नहीं बन रहा है। मुकदमों की झड़ी लग गई है। बसपा नेताओं की तहरीर पर पुलिस ने दयाशंकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की तो अगले ही पल दयाशंकर की माँ की तहरीर पर पुलिस को बसपा सुप्रीमो मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित तमाम बसपा नेताओं के खिलाफ उन्हीं धाराओं में एफआईआर दर्ज करनी पड़ गई जिन धाराओं में उसने दयाशंकर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की थी। खेल की भाषा में कहा जाये तो बसपा ने अति उत्साह में आत्मघाती गोल कर लिया।

दरअसल, उत्तर प्रदेश में आजकल जो भी सियासी ड्रामा चल रहा है उसके पीछे की वजह अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। सभी पार्टियां अपने वोट बैंक को धार देने में लगी हैं। इसीलिये उन बातों और मसलों को बेवजह ही हवा दी जा रही है जिससे जनता का कोई सरोकार नहीं है। अब कोई यह कैसे कह सकता है कि अगर मायावती के खिलाफ कोई अपशब्द बोलता है तो उससे पूरे दलित समाज का अपमान होता है। कहीं किसी हिन्दू पर कोई अत्याचार हो जाये तो उसके लिये पूरी मुस्लिम कौम को अगर किसी मुसलमान के साथ कुछ गलत हो जाये तो उसके लिये पूरी हिन्दू जमात को कैसे कठघरे में खड़ा किया जा सकता है। मगर हो यही रहा है। कोई साधू, साध्वी, धर्मगुरु या राजनेता आदि किसी मुसलमान के लिये उलटा सीधा बोल देता है तो उसके बयान को सभी हिन्दुओं का विचार मान लिया जाता है और अगर कोई मुस्लिम धर्मगुरु, मुल्ला मौलवी या नेता हिन्दुओं के लिये कुछ उलटा−सीधा कह देता है तो उसे पूरी मुस्लिम जगत की आवाज मान लिया जाता है, जो बिल्कुल गलत है, लेकिन दुर्भाग्य से शार्टकट की राजनीति करने वाले नेतागण अपने सियासी फायदे के लिये ऐसे विवादित बोलों को भुनाते रहते हैं।

बसपा सुप्रीमो मायावती आजकल काफी परेशान नजर आ रही हैं। उनके दिग्गज सहयोगी साथ छोड़ते जा रहे हैं तो भाजपा उनके दलित वोट बैंक पर आंख लगाये बैठी है। बैठी ही नहीं है, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मायावती के इस मजबूत वोट बैंक में सेंध भी लगा दी थी। जाटव को छोड़कर कई अन्य दलित बिरादरियों ने खुलकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। माना जा रहा था कि स्वामी प्रसाद मौर्य व आरके चौधरी के पार्टी से जाने से झटके पर झटके खा रही बसपा के लिए दयाशंकर प्रकरण ने ऑक्सीजन का काम किया था। मगर बसपा ने जिस तरह इस मुद्दे को पूरी आक्रामकता के साथ भुनाने की कोशिश की, वह उलटी पड़ गई। मायावती ने जिन शब्दों में दयाशंकर की टिप्पणी का जवाब दिया और उनकी माँ, बहन और बेटी को निशाना बनाया, उसे लोगों ने ठीक नहीं माना। लेकिन, चूंकि दयाशंकर के निशाने पर मायावती आई थीं लिहाजा लोगों ने बसपा अध्यक्ष के जवाब को आक्रोश का नतीजा मानकर ज्यादा तूल नहीं दिया। पर, जब धरना प्रदर्शन में बसपा ने पोस्टर में दयाशंकर के लिए अपमानजनक शब्द और उसकी माँ, बहन बेटी को पेश करने की मांग जैसा अपमानजनक बयान दिया तो न सिर्फ बसपा के प्रति लोगों में उपजी सहानुभूति ठंडी होती नजर आई, बल्कि आक्रोश मानकर नजरअंदाज की जा रही टिप्पणी व नारे ही चर्चा का विषय बन गए। इससे जहां दयाशंकर के परिवार को पलटवार का मौका मिला गया, वहीं सोशल मीडिया से लेकर हर स्तर पर दयाशंकर की बूढ़ी माँ और नाबालिग बच्ची को निशाना बनाए जाने की आलोचना शुरू हो गई।

बदले हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लखनऊ में धरना−प्रदर्शन करके अपनी ताकत दिखाने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती दूसरे दिन दिल्ली में सफाई देती दिखीं। बसपा महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी को भी अपने और पार्टी के बचाव में आगे आना पड़ा। बसपा के खिलाफ क्षत्रिय समाज भी खुल कर सामने आ गया है। वहीं बसपा के सवर्ण प्रत्याशियों के खिलाफ अगड़े समाज के कुछ संगठनों ने मुहिम छेड़ने की योजना बनानी शुरू कर दी है। यह बात भी सर्वसमाज का समर्थन पाने की कोशिश में जुटी बसपा के खिलाफ जाती दिख रही है। भाजपा को इस पूरे घटनाक्रम से ठाकुर वोट बैंक मजबूत होता दिखा रहा है इसीलिये वह भले ही दयाशंकर से दूरी बनाकर चल रही हो लेकिन उनके परिवार के साथ मजबूती के साथ खड़ी है। दयाशंकर के परिवार के पक्ष में भाजपा का लखनऊ सहित प्रदेश के अन्य जिलों में प्रदर्शन इस बात का प्रमाण है।

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