सच की रक्षा करने का जो आह्वान बाइडेन ने किया है उसमें पूरी दुनिया शामिल हो

Joe Biden

बाइडेन के सामने चुनौतियाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं लेकिन वह उन पर खरा उतरने का माद्दा रखते हैं। इसको दो उदाहरणों के जरिये समझते हैं। पहला- जो बाइडेन बराक ओबामा के कार्यकाल में आठ साल तक अमेरिकी उपराष्ट्रपति रह चुके हैं इसलिए प्रशासन की बारीकियों को बेहद करीब से जानते हैं।

अमेरिका में ट्रंप युग का समापन और बाइडेन युग की शुरुआत धूमधड़ाके के साथ हुई है। अमेरिका ने ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया ने डोनाल्ड ट्रंप जैसे सनकी नेता से 'लोकतंत्र की ताकत' के बलबूते ही निजात पाई है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में भले जो बाइडेन की जीत हुई थी लेकिन वहाँ चुनावों से पहले ही यह दिख रहा था कि अमेरिकी जनता अपनी उस गलती को सुधारने के लिए आतुर है जो उसने 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के वक्त कर दी थी। चार साल के अपने कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप ने जिस सनकीपने से अमेरिका को चलाया उसने दुनिया के इस सबसे समृद्ध और विकसित देश को वर्षों पीछे धकेल दिया। ट्रंप ने अपने मनमाने फैसलों की बदौलत अमेरिका को दुनिया में अलग-थलग तो कर ही दिया था साथ ही अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर अंतिम समय तक मंत्रियों व अधिकारियों को अचानक ही बर्खास्त कर देने, अधिकारियों पर गलत कार्य के लिए दबाव बनाने, चुनावों में हार नहीं मानने, असत्य बोलने का रिकॉर्ड बनाने, राष्ट्रपति चुनावों में विजेता को औपचारिक रूप से बधाई नहीं देने, सोशल मीडिया पर अमेरिकी राष्ट्रपति को प्रतिबंधित कर दिये जाने, दो-दो महाभियोग झेलने वाला पहला अमेरिकी राष्ट्रपति बनने, लोकतंत्र पर भीड़तंत्र के जरिये कब्जा करने का नाकाम प्रयास करने का जो इतिहास अपने नाम पर दर्ज करवाया है वह अमेरिका के लिए सदैव शर्म का विषय बना रहेगा।

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बाइडेन के समक्ष कई बड़ी चुनौतियाँ

बाइडेन ने बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने पहले भाषण में लोकतंत्र की सर्वोच्चता कायम रखने सहित जो भी बातें कही हैं, उन पर उन्हें खरा उतरना ही होगा क्योंकि उनकी ताजपोशी कोई सामान्य स्थिति में नहीं हुई है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में विश्व का सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका मखौल का विषय बना हुआ है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब अमेरिका यूनाइटेड नहीं डिवाइडेड स्टेट्स नजर आ रहा है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में कोरोना के मामले उतार पर हैं लेकिन अमेरिका में महामारी अपने चरम पर बरकरार है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब विश्व के अन्य देशों की मदद करने वाले अमेरिका की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। बाइडेन को कमान ऐसे समय मिली है जब दुनियाभर में नये-नये वैश्विक मंच बन रहे हैं और अमेरिका पुराने वैश्विक मंचों से कट चुका है।

बाइडेन के सामने चुनौतियाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं लेकिन वह उन पर खरा उतरने का माद्दा रखते हैं। इसको दो उदाहरणों के जरिये समझते हैं। पहला- जो बाइडेन बराक ओबामा के कार्यकाल में आठ साल तक अमेरिकी उपराष्ट्रपति रह चुके हैं इसलिए प्रशासन की बारीकियों को बेहद करीब से जानते हैं। यही नहीं जरा 3 नवंबर 2020 के बाद के हालात से अब तक के घटनाक्रम पर गौर करिये। राष्ट्रपति चुनाव परिणाम आने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप इस बात पर अड़े हुए थे कि चुनाव में धांधली हुई है और वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह परिणामों को अदालत में चुनौती देंगे। ट्रंप ने यह भी कहा कि वह बाइडेन को व्हाइट हाउस में घुसने नहीं देंगे। ट्रंप रोजाना बाइडेन के खिलाफ अनर्गल बातें तो करते ही रहे साथ ही चुनाव परिणामों को भी नकारते रहे जबकि राज्यों के चुनाव अधिकारी ट्रंप की टीम द्वारा दर्ज कराई गयी आपत्तियों को सुबूतों के अभाव में खारिज करते रहे। ट्रंप ने इलेक्टोरल कॉलेज की गिनती में भी बाधा डलवाने के कथित प्रयास किये लेकिन बाइडेन एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह धैर्य से सारी स्थितियों का सामना करते रहे। वह ट्रंप पर आक्रामक नहीं हुए क्योंकि उन्हें लोकतंत्र की ताकत पर भरोसा था, उन्हें अमेरिकी संविधान पर भरोसा था। ट्रंप के गुस्से का जवाब बाइडेन ने जिस प्यार से दिया है उसी प्यार से उन्हें ट्रंप समर्थकों का दिल भी जीतना होगा क्योंकि जाते-जाते भी ट्रंप विभाजन की रेखा खींच गये हैं।

कमला हैरिस का विश्वास

इसके अलावा कमला देवी हैरिस ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति बन कर जो इतिहास रचा है उससे ना सिर्फ सभी भारतीय बल्कि दुनियाभर में बसे भारतवंशी भी गौरवान्वित हुए हैं। महिला, अश्वेत, विदेशी मूल आदि तमाम बाधक तत्वों पर विजय पाते हुए कमला देवी हैरिस ने जो कर दिखाया है वह अभूतपूर्व है। कमला हैरिस ने पदभार ग्रहण करते हुए जिस आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया है वह बेहतर भविष्य की झलक दिखाता है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जिस प्रकार नस्ली एवं आर्थिक न्याय के लिए लड़ाई लड़ी उस कड़ी को निश्चित रूप से कमला हैरिस आगे ले जाएंगी।

मीडिया को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है

डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति सर्वोच्च पद तक यदि पहुँचते हैं तो उसमें मीडिया का भी बड़ा हाथ होता है। वैसे बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मीडिया के साथ सहज रिश्ते शुरुआत से ही नहीं रहे और सोशल मीडिया कंपनियों ने तो ट्रंप पर प्रतिबंध लगा कर नया इतिहास ही रच दिया। लेकिन इस समय वाहवाही लूट रही इन अमेरिकी मीडिया कंपनियों से यह भी पूछा जाना चाहिए कि ट्रंप का इतना बड़ा कद बनाया किसने था। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के दौरान मीडिया विभाजित नजर आ रहा था और खुले तौर पर एक वर्ग हिलेरी क्लिंटन और एक वर्ग डोनाल्ड ट्रंप के साथ नजर आ रहा था। अचानक से एक अराजनीतिक व्यक्ति को ना सिर्फ मीडिया ने अपने सिर पर बैठा लिया था बल्कि अमेरिका की बड़ी पार्टी ने भी उन्हें नेता के रूप में स्थापित करने में मदद कर दी जिसका अंजाम पूरी दुनिया ने भुगता। डोनाल्ड ट्रंप प्रकरण से दुनियाभर के मीडिया को सबक लेने की जरूरत है। जैसे मीडिया जनता के बीच यह जागरूकता फैलाता है कि सोच समझकर अपना वोट दें या सही प्रत्याशी को ही चुनें, इसी प्रकार मीडिया को भी नेता बनने के आकांक्षी लोगों की कवरेज के समय बहुत सोच समझकर काम करना चाहिए। क्योंकि किसी को भी रातोंरात 'बड़ा' बना देने का अंजाम कई बार बहुत बुरा होता है।

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बहरहाल, जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल के पहले दिन जिन 15 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किये उनसे साफ हो गया है कि वह अपना पूरा ध्यान अमेरिकी जनता से किये गये वादों को पूरा करने में लगाने वाले हैं। बाइडेन के शुरुआती फैसलों की बात करें तो उन्होंने 100 दिन मास्क लगाने, पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका के फिर से शामिल होने, डब्ल्यूएचओ में अमेरिका की वापसी, मुस्लिम देशों के लोगों की अमेरिका यात्रा पर लगे प्रतिबंध को हटाने सहित मैक्सिको सीमा पर दीवार निर्माण पर तत्काल रोक लगाना आदि शामिल हैं। उम्मीद है आने वाले दिनों में बाइडेन विदेश और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित ट्रंप प्रशासन के कई बड़े फैसलों को पलटेंगे या उनमें संशोधन करेंगे। हालांकि बाइडेन को यह भी ध्यान रखना होगा कि सिर्फ ट्रंप के फैसलों को पलटने से काम नहीं चलेगा बल्कि अमेरिका के माहौल को पूरी तरह बदलना होगा। वैसे सच की रक्षा करने और झूठ को हराने का जो आह्वान बाइडेन ने किया है उसमें पूरी दुनिया को शामिल होने की जरूरत है।

-नीरज कुमार दुबे

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