देशविरोधियों के मानवाधिकार की बात करने वालों सेना के शौर्य पर सवाल मत उठाओ

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हैरत की बात यह कि इन पत्थरबाजों या देशविरोधी गतिविधि करने वालों के खिलाफ सेना या पुलिस कोई कदम उठाती है तो सबको मानवाधिकार याद आ जाता है। क्या सेना या सुरक्षा से जुड़े लोगों के लिए किसी ने मानवाधिकार की बात की है।

दुनिया के देशों में संभवतः यह हमारा देश ही होगा जहां सेना के मनोबल को बढ़ाने की जगह उससे प्रूफ मांगा जाता है। दुश्मन से लोहा लेते सरहदों की रक्षा की जिम्मेदारी संभाले सैनिकों, अर्धसैनिकों, आंतरिक सुरक्षा में जुटे जवानों की शहादत को राजनीति का मोहरा बनाना हमारे राजनीतिक दलों, कथित मानवाधिकारवादियों, प्रतिक्रियावादियों का शगल रहा है। किसने क्या किया या किसके समय क्या हुआ यह महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि परिस्थिति विशेष में क्या हो रहा है ? आज कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों और अलगाववादियों द्वारा आए दिन की जा रही देशविरोधी घटनाएं आम होती जा रही हैं। एक और सैनिक आतंकवादियों की मुठभेड़ से जूझ रहे हैं तो दूसरी ओर हमारे ही देश के कुछ लोग हमारा ही नमक खाने वाले उन आतंकवादियों के सुरक्षा कवच बनकर पत्थरबाजी जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं। हैरत की बात यह कि इन पत्थरबाजों या देशविरोधी गतिविधि करने वालों के खिलाफ सेना या पुलिस कोई कदम उठाती है तो सबको मानवाधिकार याद आ जाता है। क्या सेना या सुरक्षा से जुड़े लोगों के लिए किसी ने मानवाधिकार की बात की है।

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हाल ही में पुलवामा की दुर्भाग्यजनक व निदंनीय घटना के बाद हमारी वायुसेना द्वारा जिस तरह से पिछले दिनों रात्रि साढ़े तीन बजे के आसपास पाकिस्तान के खिलाफ एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया और उसके बाद पाकिस्तान का एफ-16 विमान जमींदोज किया। उसके बाद जहां समूचा देश एक आवाज में विंग कमाण्डर अभिनंदन की रिहाई की मांग कर रहा था वहीं कुछ नेता या प्रतिक्रियावादी एयर स्ट्राइक के नतीजों यानि की सरकारी या यों कहें कि सेना द्वारा पाकिस्तान में आतंकवादियों के ठिकानों पर हुए नुकसान के सबूत मांग रहे थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय वायु सेना द्वारा की गई कार्यवाही अपने लक्ष्य को निशाना बनाने में पूरी तरह सफल रही। इसका सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि पाकिस्तान अंदर तक हिल गया। सबसे पहले पाकिस्तानी प्रवक्ताओं और पाकिस्तानी मीडिया ने घटना की जानकारी दी। फिर एक के बाद एक झूठ के पुलिंदे पेश किए गए। यहां तक फर्जी वीडियो जारी किए गए और किसी तरह का नुकसान नहीं होने का दावा किया गया। इसके बाद भारतीय वायु सेना द्वारा एफ-16 विमान गिराने और भारतीय मिग विमान के क्रैश होने को अपनी उपलब्धि बताकर भ्रम फैलाने में कोई कमी नहीं छोड़ी कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कार्रवाई करते हुए दो विमान गिरा दिए। अंततोगत्वा सच सामने आ ही गया। यह भी अपने आप में बड़ी बात है कि दुनिया का कोई देश भारतीय वायु सेना के कदम के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला और हम हैं कि आपसी बातचीत से हल निकालने की बात करते हुए सेना के मनोबल को बढ़ाने की जगह उसे कमतर करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। आखिर इससे अधिक दुर्भाग्यजनक क्या होगा? 

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एक बात विचारणीय है जो लोग सरकार द्वारा सेना को खुली छूट देने या किसने किसके समय हथियार खरीदे या यों कहें कि सोशल मीडिया का खुला दुरुपयोग करते हुए जाबांज हिन्द की सेना के शौर्य को राजनीतिक रंग देने का प्रयास कर रहे हैं, यह कहीं ना कहीं हमारी मानसिकता को उजागर करने में कम नहीं है। आखिर जिस देश में हम जन्मे हैं, जहां की माटी ने हमें इस स्तर तक पहुंचाया है उसके प्रति भी हमारा कोई दायित्व होना चाहिए। केवल विरोध के स्वर या चर्चा में बने रहने के लिए मानवाधिकारवादी बनने या तमगे लौटाने से देश का या समाज का भला नहीं होने वाला। देखा जाए तो यह आत्म विश्लेषण का मौका है। निश्चित रूप से इस एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान की कमर टूटी है। यही कारण है कि अभिनंदन की तत्काल रिहाई संभव हो पाई। पाकिस्तान को इकतरफा पहल करनी पड़ी। पर इस सबसे परे यह भी देखना होगा कि हमारी सेना के जांबाज सिपाही सरहद पार कर पाकिस्तान के अंदर जाकर वो भी कई किलोमीटर अंदर जाकर अपनी कार्यवाही को अंजाम देकर आए हैं जो निश्चित रूप से पूरे देश के लिए गर्व की बात है।

एक जमाने का आर्यावत आज हिन्दुस्तान होकर रह गया है। इस सबके लिए कोई और नहीं हमारे देश के ही विभीषण, शकुनी या जयचंद जैसे अनेकों लोग रहे हैं। आखिर आलोचना की भी कोई सीमा होती है। देश के सम्मान के लिए तो पूरे देशवासियों की एक आवाज होनी चाहिए। देश की सरहदों की रक्षा करने वालों के लिए समूचे देश से एक ही नारा गूंजना चाहिए। अलगाववादियों या आतंकवादियों और इनको संरक्षण देने वालों के खिलाफ भी समूचे देश की एक आवाज होनी चाहिए। आखिर अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग कब तक यह देश सहन करता रहेगा। यह समझ से परे होता जा रहा है कि आखिर इस देश का प्रत्येक नागरिक कब एक आवाज के साथ देशहित में आगे आएगा, कब राजनीतिक रोटियां सिकना बंद होंगी। कब कथित मानवाधिकारी देशहित के मुद्दों को सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाना छोड़ेंगे। यह विचारणाीय व गंभीर है। हमें यह सोचना व समझना होगा कि पहले देश बाद में और कुछ।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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