मानसून, महंगाई और महामारी से उत्तर प्रदेश का हो रहा बुरा हाल

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अजय कुमार । Sep 6 2018 1:02PM

उत्तर प्रदेश का बुरा हाल है। पूरा प्रदेश पानी−पानी हो गया है। इससे जन−धन की तो हानि हो ही रही है, कारोबार भी बुरा असर पड़ा है। कुल मिलाकर करीब डेढ़ माह पूर्व जिस मानसून के लिये जनता बेचैन थी, वह उसके लिये सिरदर्द साबित हो रहा है।

उत्तर प्रदेश का बुरा हाल है। पूरा प्रदेश पानी−पानी हो गया है। इससे जन−धन की तो हानि हो ही रही है, कारोबार भी बुरा असर पड़ा है। कुल मिलाकर करीब डेढ़ माह पूर्व जिस मानसून के लिये जनता बेचैन थी, वह उसके लिये सिरदर्द साबित हो रहा है। खेत−खलिहान पानी से भर गये हैं तो सड़कें गड्ढ़ों में तब्दील हो चुकी हैं। नदियां विकराल रूप धारण करके और अपने तटों को तोड़ते हुए जानलेवा साबित हो रही हैं। उत्तर प्रदेश में जानलेवा बनी बारिश की वजह से 03 सितंबर को एक ही दिन में 16 लोगों की मौत हो गयी है। 12 लोग घायल हो गये हैं। ये जानकारी राहत आयुक्त कार्यालय से प्राप्त रिपोर्ट से मिली। इनमें शाहजहांपुर में सबसे ज्यादा छह लोगों की मौत की बात कही गई। इसके अलावा सीतापुर में तीन, अमेठी तथा औरैया में दो−दो और लखीमपुर खीरी, रायबरेली एवं उन्नाव में एक−एक व्यक्ति की वर्षाजनित दुर्घटनाओं में मौत हुई है। पूरे प्रदेश में ऐसे हादसों में 12 लोग घायल भी हुए। इसके अलावा 24 घंटे में कुल 461 मकान अथवा झोपड़ियां भी क्षतिग्रस्त हुईं। मानसून के कारण महंगाई बढ़ रही है तो वर्षाजनित बीमारियां महामारी जैसा रूप लिये हुए हैं।

बेरहम बरसात के चलते सैंकड़ों लोग मौत के मुंह में समा चुके हैं, तो बरसात के मौसम में करंट लगने से मौत के मामले भी बढ़ गये हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता होगा जब करंट लगने की खबरें अखबार में न आती हों। नदियों के किनारे बसे हजारों गांव और शहर त्राहिमाम कर रहे हैं। सैंकड़ों करोड़ से बने हाई−वे जलमग्न या फिर खड़ंजों में तब्दील हो गए हैं। बरसात ने लोगों का रोजगार भी छीन लिया है। दिहाड़ी पर काम करने वाले फाके करने को मजबूर हैं तो चिप्स−कचरी−पापड़, दाल की मंगौड़ी आदि बनाने वाली महिलाओं का भी काम धंधा बंद हो गया है। इस बरसात में कच्चे मकान तो तिनके की तरह बह ही गये, पक्के और आलीशान मकानों की भी तस्वीर बदरंग हो गई है। बरसात में होने वाली बीमारियां भी सुरसा की तरह मुंह फैलाती जा रही हैं।

डेंगू, मलेरिया जैसे बुखार एक बार फिर जानलेवा साबित हो रहे हैं। सबसे बुरा हाल जानवरों का है। जब इंसान अपनी जान बचाने के लिये हाथ−पैर मार रहा हो तो जानवरों का कौन ध्यान रख सकता है। मवेशियों को सूखा चारा नहीं मिल पा रहा है। उत्तर प्रदेश में बाढ़ से मरने वालों का आंकड़ा तीन सौ से ऊपर पहुंच चुका है। प्रदेश के 24 जिलों के 3133 गांव बुरी तरह बाढ़ से प्रभावित हैं। इन जिलों के 27 लाख से अधिक लोग बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों के एक लाख से अधिक लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में सड़क मार्ग की स्थिति बहुत खराब है, जिसे धीरे−धीरे ठीक किया जा रहा है।

    

लगातार बारिश और बाढ़ की वजह से कई तरह की जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं। इन बीमारियों से कई लोगों की मौत भी हुई है। बरेली मंडल में ही पिछले 15 दिनों में बाढ़ से 123 लोगों की मौत हो चुकी है। हालात इतने बदतर हैं कि मरीजों का इलाज अस्पतालों के बाहर पेड़ के नीचे किया जा रहा है। ऐसे एक नहीं बल्कि कई अस्पताल हैं। इंजेक्शन से लेकर ड्रिप चढ़ाने का काम यहीं हो रहा है।

गंगा सहित कई नदियों का जल स्तर बढ़ने के चलते उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बाढ़ जैसे हालात हैं। लगातार बारिश होने और नरोरा बांध से आए पानी की वजह से फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर जिलों के सैकड़ों गांव डूब गए हैं। फतेहपुर में गंगा खतरे के निशान से 17 इंच ऊपर बह रही है तो कानपुर में भी यह लाल निशान को पार कर गई है। वाराणसी में सभी घाट पानी में समा गये हैं। गंगा के अलावा यमुना और राज्य की दूसरी सहायक नदियों का जल स्तर भी बढ़ रहा है। अधिकारियों के मुताबिक इसके चलते अब तक बड़ी संख्या में लोगों को राहत शिविरों में जाना पड़ा है। फर्रुखाबाद के 300 गांव बारिश से प्रभावित हुए हैं। 100 गांव तो पूरी तरह डूब चुके हैं। करीब 30 सड़कें बह चुकी हैं और बदायूं की तरफ जाने वाला रास्ता तक बंद हो गया। यहां गंगा की सहायक काली नदी का पानी सात गांवों में घुस गया है। वहां कई स्कूल इसके पानी में डूब गए हैं। कानपुर में भी करीब 200 गांवों के लोगों को तीन राहत शिविरों में रखा गया है। यहां पानी रानी घाट, कटरी खेवड़ा, कटरी सिंहपुर, हिंदूपुर और प्रतापुर गांव में पहुंच गया है।

मानसून का खेती से भी गहरा नाता है। अच्छा मानसून खेती के लिये वरदान होता है, लेकिन यह तभी होता है, जब यह समय पर आये और समय पर चला जाये। इसमें भी दो राय नहीं है कि अच्छा मानसून अर्थव्यवस्था को फीलगुड देता है। समय से बुवाई और वक्त पर कटाई ऐसी चीज है, जिसकी हर किसान बाट जोहता है। गर्मी की ज्यादातर फसलों की बुवाई अमूमन जुलाई−अगस्त में होती है। अगर जुलाई−अगस्त में बारिश में देरी हुई, तो फिर बुवाई में भी देरी होती है। इस देरी का मतलब उत्पादन में गिरावट की आशंका का बढ़ना है। चूंकि हमारे देश का 60 फीसदी बुवाई क्षेत्र मानसूनी बारिश पर निर्भर है, ऐसे में सामान्य वर्षा खुशी का माहौल प्रदान करती है। देश के कुल 640 जिलों में से उन 240 जिलों के लिए अबकी बार का मानसून राहत भरी खबर लाता, जिन्हें पिछले साल सूखे का सामना करना पडा था। इस सूखे से सबसे बुरी तरह प्रभावित कुछ जिले बुंदेलखंड़ के थे, अगर कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा होता है तो पूरी अर्थव्यवस्था पर उसका दूरगामी प्रभाव पड़ता है। अच्छी पैदावार खाद्यान्न महंगाई दर को काबू में रखती है।

अच्छे मानसून का सुखद असर यह भी होता है कि इसके कारण भूजल स्तर के रिचार्ज होने से सिंचाई के साथ−साथ पेयजल की उपलब्धता बढ़ जाती है और बारिश का पानी देश के 81 बड़े जलाशयों को लबालब भर देता है। उच्च कृषि विकास दर का सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति के बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होती है। इसलिए चुनावी साल में अच्छा मानसून सत्तारूढ़ पार्टी के लिए भी सुखद साबित होता है। क्योंकि, जनता की आम धारणा पर इन सभी का असर पड़ता है। हम सभी जानते हैं कि बारिश, अनाज के उत्पादन और आर्थिक विकास का सकारात्मक पारस्परिक संबंध है। लगातार दो सूखे वाले वित्तीय वर्ष 2014−15 और 2015−16 में देश में अनाज के उत्पादन में गिरावट आई थी, जिसके कारण उस दौरान कृषि विकास दर क्रमशः -0.8 और −0.1 प्रतिशत रही। लेकनि, जब 2016−17 में मानसूनी बारिश सामान्य हुई, तो कृषि विकास दर उछलकर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। परंतु 2017−2018 में इसमें जबर्दस्त कमी देखी गई और यह आंकड़ा फिर 3.4 प्रतिशत पर आकर ठहर गया। अबकी इसमें सुधार की उम्मीद की जा रही है, लेकिन अभी मानसून से खेती को हुए नुकसान का भी आकलन होना है। इस बीच सब्जियों के भाव आसमान चढ़कर बोल रहे हैं।

-अजय कुमार

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