खालिस्तानियों की गतिविधियों को और बर्दाश्त करना महंगा पड़ सकता है

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राकेश सैन । Aug 28 2018 2:27PM

विदेशी धरती पर खालिस्तानी आतंकियों व अलगाववादियों की बढ़ रही गतिविधियों की अब और अनदेखी करना शुतरमुर्ग की नीति का अनुसरण करना होगा जो खतरे को सामने देख कर रेत में सिर छिपा लेता है।

विदेशी धरती पर खालिस्तानी आतंकियों व अलगाववादियों की बढ़ रही गतिविधियों की अब और अनदेखी करना शुतरमुर्ग की नीति का अनुसरण करना होगा जो खतरे को सामने देख कर रेत में सिर छिपा लेता है। अभी हाल ही में विदेशी दौरे के दौरान खालिस्तानी तत्वों ने अकाली दल बादल के नेता मनजीत सिंह जीके व कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली में नारेबाजी करके अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का प्रयास किया। अलगाववादियों व पूर्व आतंकियों द्वारा संचालित संगठन सिख्स फार जस्टिस की बढ़ी सक्रियता ने देशवासियों को चिंता में डाल दिया है और दुखद बात है कि इस संगठन को राजनीतिक संरक्षण भी मिलना शुरू हो चुका है। ब्रिटेन की वामपंथी विचारधारा वाली ग्रीन पार्टी भारत विरोधी इस लॉबी के खुल कर समर्थन में आ गई है और पार्टी की उपनेता कैरोलीन ल्यूकस का कहना है कि अलगाव की मांग कर रहे खालिस्तानियों को भी अपने भाग्य के फैसले का अधिकार मिलना चाहिए।

अमेरिका के कैलेफोर्निया शहर में खालिस्तानी तत्वों ने दिल्ली गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी (डीएसजीएमसी) के अध्यक्ष व अकाली दल के नेता मनजीत सिंह पर जानलेवा हमला कर दिया। इस घटना के चार दिन पहले उन पर इन्हीं तत्वों ने न्यूयार्क में भी हमला किया था। लंदन दौरे के दौरान तीन खालिस्तानी तत्वों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कान्फ्रेंस में घुस कर हंगामा मचाया। अलगाववादियों द्वारा किसी भारतीय नेता पर इस तरह के हमले कोई पहली घटना नहीं है। इससे पूर्व पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह, निवर्तमान सरकार के मंत्री सिकंदर सिंह मलूका पर भी विदेशी धरती पर इस तरह के हमले हो चुके हैं। लेकिन इन दिनों विदेशी धरती पर खालिस्तानी अलगाववादियों व आतंकवादियों की गतिविधियां बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। अभी हाल ही में पूर्व आतंकवादी परमजीत सिंह पम्मा के नेतृत्व में सिख्स फार जस्टिस द्वारा लंदन में जनमत 2020 के समर्थन में रैली की जा चुकी है। चाहे इस रैली को सिख समाज की ओर से इतना सकारात्मक जवाब नहीं मिला और भारतीयों ने इनके समानांतर भारत समर्थक रैली करके अलगाववादियों का मुंहतोड़ जवाब देने का प्रयास किया परंतु इतना तो साफ हो चुका है कि खालिस्तानी तत्व हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठे हैं। पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आई.एस.आई.) व ब्रिटेन में मिले राजनीतिक समर्थन से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।

कुछ समय पहले जर्मनी में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के दो आतंकियों को गिरफ्तार किया गया और इस मामले की जांच के दौरान सामने आया कि यूरोप में इन आतंकी संगठनों की गतिविधियां बढ़ रही हैं और इन्हें ब्रिटेन की वामपंथ ग्रीन पार्टी का राजनीतिक समर्थन हासिल है। आतंकी संगठन अपनी सारी गतिविधियां सिख्स फार जस्टिस के नाम से गठित संगठन के छद्मावरण में चला रहे हैं। यह संगठन पंजाब में चले आतंकवाद के दौरान भगौड़े हुए अलगाववादी व खालिस्तानी आतंकियों द्वारा चलाया जा रहा है। इसमें भारत से गए लोगों की दूसरी पीढ़ी के युवा भी शामिल हैं जो मूल रूप से तो पंजाबी या भारतीय हैं परंतु इनका जन्म और लालन-पालन विदेशी धरती पर ही हुआ। भारत व पंजाब से इनका कोई भावनात्मक लगाव नहीं है। इसके अलावा विदेशों में अवैध तरीके से जाने वाले पंजाबी युवकों को सिख्स फार जस्टिस शरण दे कर अपने साथ मिलाने का काम करती है। इन युवाओं के माध्यम से अलगाववादी इनके परिवारों से संबंध स्थापित कर रहे हैं। पंजाब में पिछले कुछ सालों में हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व हिंदू संगठनों के नेताओं की हत्या के पीछे इसी तरह के युवाओं का हाथ साबित हो चुका है और कई अनिवासी भारतीय युवा गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

देश हो या विदेश वामपंथी दलों का दोहरा चरित्र रहा है। कहने को तो वह पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की बात करते हैं परंतु वास्तव में वामपंथी ही इन खालिस्तानी नागों को पाल-पोस रहे हैं। पंजाब का इतिहास साक्षी है कि यहां 1960-70 के दशक में चले नक्सलवाड़ी आंदोलन के अवशेषों से ही खालिस्तानी आतंकवाद का ढांचा तैयार किया गया। पंजाबी विश्वविद्यालय जो आज भी वामपंथियों का गढ़ माना जाता है वह आतंकवाद के दौरान खालिस्तानियों का वार रूम बन कर सामने आया। खालिस्तान की मांग करने वाले लोग जज्बाती, झगड़ालू और सांप्रदायिक किस्म की मानसिकता के हैं परंतु इन्हें बौद्धिक खाद उपलब्ध करवा रहे हैं वामपंथी। खालिस्तानी तत्वों द्वारा किए जा रहे रेफरेंडम 2020 के पीछे भी वामपंथियों की कार्यशैली दिखाई दे रही है। वामपंथी वर्तमान में वही गलती दोहरा रहे हैं जिस तरह उन्होंने देश विभाजन के समय सांप्रदायिक और जज्बातों के आधार पर पैदा मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को बौद्धिक तर्क-वितर्क उपलब्ध करवाए।

खालिस्तानियों की बढ़ रही खुराफात पर न तो रक्षात्मक होने की आवश्यकता है और न ही भयभीत बल्कि इसका दृढ़ता से जवाब देना समय की मांग है। ब्रिटेन व अमेरिका जैसे इस तर्क की आड़ में अपनी धरती पर आतंकवाद का पोषण होने नहीं दे सकते कि उनके यहां लोकतांत्रिक तरीके से किसी भी तरह की मांग रखने का अधिकार है। इस अधिकार के नाम पर कोई देश कैसे अपने मित्र देश के अमन में अंगारे फेंकने वालों को पलने व बढ़ने दे सकता है। भारत सरकार को पनप रहे खालिस्तानी सपोलों का समय रहते ही सिर कुचलना होगा और इनको पोषित करने वालों को चेताना होगा कि चिंगारी का खेल बुरा होता है।

-राकेश सैन

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