पाक में सताई जा रही हैं हिंदू लड़कियाँ, कहाँ हैं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ता

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2010 की अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने स्पष्ट कहा था कि अधिकांश मामलों में हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है।

दिन की शुरुआत अखबार में छपी खबरों से करना आज लगभग हर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा है। लेकिन कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर जाती हैं कि क्या आज के इस तथाकथित सभ्य समाज में भी मनुष्य इतना बेबस हो सकता है ? क्या हमने कभी खबर के पार जाकर यह सोचने की कोशिश की है कि क्या बीती होगी उस 12 साल की बच्ची पर जो हर रोज़ बेफिक्र होकर अपने घर के आंगन में खेलती थी लेकिन एक रोज़ उसका अपना ही आंगन उसके लिए महफूज़ नहीं रह जाता ? आखिर क्यों उस आंगन में एक दिन यकायक एक तूफान आता है और उसका जीवन बदल जाता है ? वो बच्ची जो अपने माता पिता के द्वारा दिए नाम से खुद को पहचानती थी आज वो नाम ही उसके लिए बेगाना हो गया। सिर्फ नाम ही नहीं पहचान भी पराई हो गई। कल तक वो रीना थी लेकिन आज "रेहाना" है। सिर्फ पहचान ही नहीं उसकी जिंदगी भी बदल गई। कल तक उसके सिर पर पिता का साया था और भाई का प्यार था लेकिन आज उसके पास एक "शौहर" है। कल तक वो एक बेटी थी एक बहन थी लेकिन आज वो एक "शरीके हयात" है।

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान से हिंदू लड़कियों के जबरन धर्मांतरण और निकाह कराने की खबरें आई हों। लेकिन हाँ शायद यह पहली बार है जब पाक में रह रहे हिंदुओं के साथ वहां होने वाले किसी अत्याचार की ख़बर पर भारत के विदेश मंत्री ने सीधे वहां मौजूद भारतीय उच्चायोग से इसकी विस्तृत रिपोर्ट मांगी हो। इसके साथ ही भारत सरकार ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को इस मामले में आधिकारिक नोट लिख कर वहाँ मौजूद अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए भी कहा है। गौरतलब है कि सिंध से दो लड़कियों के अपहरण की उक्त खबर के कुछ ही देर बाद मुल्तान से भी दो हिंदू लड़कियों के वीडियो सामने आए हैं जिसमें वे सरकार से खुद को कट्टरपंथियों से बचाने की मिन्नत कर रही हैं।

हिंदू लड़कियों को अगवा करके उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवा कर उनका निकाह करवा देना पाकिस्तान में कितनी बड़ी समस्या है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इमरान खान ने 2018 के अपने चुनावी भाषणों में यह वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो हिन्दू लड़कियों के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। दरसअल आतंकवाद को संरक्षण देने के मामले में जिस प्रकार पाक पूरे विश्व के सामने बेनकाब हो चुका है उसी प्रकार अब हिन्दू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण करने के बाद उनका निकाह करवाने के मामले में भी उनका सच अब धीरे-धीरे दुनिया के सामने आने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान में हर महीने लगभग 20 से 25 लड़कियों का अपहरण कर धर्मांतरण कराया जाता है। और अब तो वहाँ का मानवाधिकार आयोग ही कट्टरपंथियों की इस दलील को खोखला बता रहा है जो अक्सर उनके द्वारा दी जाती है कि अगवा हुई लड़की ने अपनी मर्ज़ी से एक मुसलमान से शादी की है और वो अब अपने पुराने धर्म या परिवार में लौटना नहीं चाहती।

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दरअसल 2010 की अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने स्पष्ट कहा था कि अधिकांश मामलों में हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। आयोग का यह भी कहना है कि यह घटनाएं सिंध प्रांत तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि देश के अन्य भागों जैसे थार, संघार, जैकोबाबाद इलाकों में भी ऐसा हो रहा है। सिंध और इन इलाकों में हिन्दुओं की गिरती हुई जनसंख्या ही अपने आप में वहाँ के हालात के बारे में बयाँ करने के लिए काफी है।

स्थिति यह हो गई है कि अब पाक में मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और आम लोग भी इस प्रकार की घटनाओं पर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगे हैं। वे अपनी ही सरकार को अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा करने में असफल रहने का आरोप लगा रहे हैं। इसी कारण अब पाक में धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाने की मांग तेज़ हो गई है। इससे पहले भी 2016 में सिंध विधानसभा में धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने का बिल पास हुआ था लेकिन कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते लागू नहीं हो पाया था। लेकिन अब मौजूदा परिस्थितियों में इमरान खान और उनका "नया पाकिस्तान" धर्मांतरण जैसे इस नाजुक मुद्दे पर अपने ही द्वारा जगाई गई पाक आवाम और खास तौर पर वहां के अल्पसंख्यकों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं यह तो समय ही बताएगा। लेकिन उन्हें इस प्रकार नाबालिग और कम उम्र की बच्चियों के धर्मांतरण से उठने वाले कुछ सवालों के जवाब तो देने ही होंगें जैसे, आखिर हर बार सिर्फ लड़कियां या महिलाएं ही क्यों "अपनी मर्ज़ी" से धर्मांतरण करती हैं कभी कोई लड़का या पुरूष क्यों नहीं? धर्मांतरण की मंज़िल आखिर हर बार "निकाह" ही क्यों होती हैं? क्यों हर बार लड़की धर्मांतरण के बाद "पत्नी" ही बनाई जाती है "बहन या बेटी" नहीं? क्यों इन लड़कियों को धर्मांतरण के बाद हमेशा "पति" ही मिलता है भाई या पिता नहीं? और आखिरी सवाल 18 साल से कम उम्र के किसी आज़ाद युवा को अपने देश की सरकार चुनने का अधिकार नहीं है लेकिन एक "अपहृत" नाबालिग लड़की को धर्मांतरण और निकाह करके अपनी पहचान बदल लेने का अधिकार है ? इन सवालों के ईमानदार उत्तर में ही धर्मांतरण की समस्या का समाधान छुपा है।

-डॉ. नीलम महेंद्र

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