सदाशयी हिन्दुओं में धर्म और परम्परा की रक्षा के लिए लड़ने का उबाल नहीं

Hindu is non serious for religion
तरुण विजय । Jun 2 2018 5:01PM

कर्नाटक का उदाहरण देखिए। कुछ भी ऐसा नहीं जो नया हुआ हो। कुछ सीटें भाजपा को कम मिलीं। इसका आत्मावलोकन हुआ ही होगा। बंगलौर में मतदाता क्यों कम निकले? जो एकजुटता और मिशन कामयाब करने की जिद्द होनी चाहिए थी, उसमें कमी रही क्या?

1947 से पहले ऋषि दयानंद, विवेकानंद, श्री अरविंद, लाल-बाल-पाल और डॉ. हेडगेवार सरीखे महापुरुष हिन्दु जागरण के माध्यम से भारत स्वातंत्र्य और गौरव की बात करते थे। महामना ने जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रारम्भ किया तो उसमें 'हिन्दू' शब्द है, इस कारण विरोध नहीं हुआ।

आज प्रत्यक्ष हिन्दू रक्षा, हिन्दू गौरव की बात करना- 47 के सात दशक बाद प्राण गंवाने को न्यौता क्यों बन गया है? कश्मीर से बंगाल और कर्नाटक से केरल तक हिन्दू समाज का तिरस्कार, अपमान, हत्याएं, उनको बांटने, हिन्दू संवर्द्धिनी संस्थाओं और हिन्दू संप्रदायों को अहिन्दू घोषित करने की मानो प्रतिस्पर्द्धा चल पड़ी है। ईसाई चर्च का हिन्दू विरोध ब्रिटिश संगीनों तले पला और बढ़ा। उनमें से कुछ आज भी स्वयं को ब्रिटिश वायसराय का दरबारी और उसी परम्परा का अनुगामी मानते हैं। वरना उनकी हिम्मत न होती कि 2019 में सत्ता परवर्तन हेतु प्रार्थनाओं की अपील जारी करते। वे भूल गए कि हिन्दू बहुसंख्यक नागरिकों की सर्व पंथ समभाव की भावना ही चर्च को प्राप्त समान अधिकारों का आधार है। हिन्दू विरोध, हिन्दू गौरव आहत करने वाले दलों का समर्थन, हिन्दू हितों पर बोलने वालों का अपमान वर्तमान सेकुलर पार्टियों तथा मीडिया का स्वभाव है ही।

कर्नाटक का उदाहरण देखिए। कुछ भी ऐसा नहीं जो नया हुआ हो। कुछ सीटें भाजपा को कम मिलीं। इसका आत्मावलोकन हुआ ही होगा। बंगलौर में मतदाता क्यों कम निकले? जो एकजुटता और मिशन कामयाब करने की जिद्द होनी चाहिए थी, उसमें कमी रही क्या? सोशल मीडिया पर वाकयुद्ध, जमीनी हकीकत नहीं बदलते। हिन्दुओं का स्वभाव है, वे प्रत्यक्ष विरोधी से पहले भीतरी प्रतिस्पर्द्धी, जाति-बाहर वाले के प्रति अपनी शत्रुता पहले निभाते हैं। इतिहास गवाह है कि कितने ही जीते जा सकते वाले युद्ध हम इसी पारस्परिक विद्वेष और शत्रुता, गहरी पसंद-नापसंद के कारण हारे हैं। क्या भारत जिस युगान्तरकारी समय से गुजर रहा है, वह उसी गजनवी-परमार युग, प्रभास-पाटण की पुनरावृत्ति कराने देगा? हम श्रेष्ठ थे, संगठित और युद्ध-सज्ज थे, वीरता, पराक्रम में कम न थे, भगवद् भक्ति और निष्ठा में सर्वोपरि थे, फिर भी वह क्यों हुआ, जो हुआ? जो इतिहास पढ़ते नहीं, सीखते नहीं, स्वयं के भीतर झांक बदलते नहीं, उन्हें जीत के जबड़ों से हार खींच लानी पड़ती है।

यह केवल भारत के सदाशयी हिन्दू मानस को श्रेय है कि रमजान के समय कश्मीर के गद्दार, कायर जिहादियों के खिलाफ गोली न चलाने व एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा की गई। नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह का यह कदम वीरता और शक्ति सम्पन्न सैन्य बल का प्रतीक है। लेकिन क्या रमजान मनाने वालों ने इस सदाशयता का वैसी ही सकारात्मकता के साथ उत्तर दिया? काटहिं ते कदरी फरै...! सत्य नहीं तो और क्या है? सोनिया-राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस हिन्दू-विरोध का पर्याय बन गई है। चोर दरवाजे से, हार कर भी सरकार बनाने पर कैसे प्रतीक के साथ उसने जश्न मनाया? एक ब्राह्मण की शिक्षा काटते हुए कुमारस्वामी का चित्र छापा गया- क्यों? कांग्रेस की 'जीत' का ब्राह्मण की शिक्षा से क्या संबंध? जैसे ब्रिटिश काल में ईसाई पादरी हिन्दुओं को 'हीदन', 'पैगन', सांप-संपेरों और जानवरों का देश निरूपित करते थे, आज की कांग्रेस उसी हिन्दू विरोधी चर्च का राजनीतिक मुखौटा बन गयी है। हिन्दू सिर्फ असंगठित जाति विद्वेष में रत परस्पर युद्धरत वैसे ही बंटे हैं जैसे विदेशी हमलों के समय थे। 

जिस हिन्दू में अपने धर्म और परम्परा की रक्षा के लिए लड़ने का उबाल नहीं, जो सत्ता के स्वाद में स्व धर्म रक्षा के संघ-धर्म का पालन करने का आनंदमठ सरीखा उद्याम-आवेग नहीं, वह पांच सितारा वैभव में भारतोदय के इस सदियों संघर्ष के बाद प्राप्त अवसर को गंवा देगा। बहुत समय नहीं हुआ जब यवनों ने इस देश की भाग्य रेखा को खण्डित किया था। और यह तो आज, हमारे वर्तमान समय का सत्य है कि जिस श्रीनगर में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की असमय, रहस्यमय मृत्यु- जिसे लोकसभा में पं. अटल बिहारी वायपेयी तथा पांडिचेरी में श्री अरविंद आश्रम में श्री मां ने 'हत्या' निरूपित किया था- उसी श्रीनगर में विस्थापित हिन्दू आज भी जा बसने की स्थिति में नहीं। पांच मुसलमान किसी नगर में किसी वर्ग द्वारा जाएं तो संयुक्त राष्ट्र संघ तक भारत के सेकुलर जा पहुंचते हैं। पांच लाख हिन्दू बहिष्कृत, विस्थापित, प्रताड़ित, तिरस्कृत रहें तो उसका 'नोटिस' ही नहीं लिया जाता। मानो कोई बात ही नहीं।

कश्मीर तो है ही सिर्फ मुसलमानों का। जम्मू के डोगरे वीरों, आखिर लौटोगे तो अपनी ही मां के ममतामय आंचल में। उस समय मां के घावों पर सन्नाटा ओढ़ने का क्या जवाब दोगे, आज ही से सोचना शुरू कर दो। कई बार चुनावी जीत के लिए सब कुछ लुटा देना, हार से भी भयानक सिद्ध होता है।

बंगाल देखिए। यह आनंदमठ, बंकिम, सूर्यसेन, प्रीतिलता वोड़ेदार, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, सुभाष बोस की अग्निधर्मा, संस्कृतिनिष्ठ, धर्मरक्षिणी दुर्गा मां की पुण्य धरा है। वहां भी क्या हिन्दुओं को आत्मरक्षा के लिए गुहार लगानी पड़ेगी- मानो 30 लाख बंगाली भारतीयों की अकाल में मृत्यु का जिम्मेदार ब्रिटिश परकीय शासन आज भी जारी है? धिक्कार है, धिक्कार है, धिक्कार है ऐसे स्वदेशी भारतीयों पर जो चुनाव के लिए अपनी ही माटी, अपनी ही मां, अपने ही मानुष के साथ ऐसा रक्त रंजित विश्वासघात करते हैं।

यदि हम उन भारत द्रोही लोगों के प्रति जागरूक और सचेत नहीं हैं तो फिर भारत का क्या भविष्य होगा यह सोच कर कंपकंपी होती है। कर्नाटक का दृश्य हमने देखा। इतनी घृणा से हमला और तमाम विरोधी शक्तियां चुनाव के बाद एकजुट हो गईं। सैद्धांतिक एक राष्ट्रीय जनाधार होते हुए भी हमें बाहर होना पड़ा। किस कारण अनेक सीटें गंवानी पड़ी? क्यों? आखिर कर्नाटक हमारा था। जहां लोग हमें बहुत उत्साह के साथ वोट दे रहे थे। जहां भगवा झंडा सब ओर फैल रहा था। वहीं कुछ लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण एक दूसरे को नीचा दिखाने लग जायेंगे- तो बार-बार देश कौन उठाएगा? यह कोई नई बात नहीं और कोई नया घटनाक्रम नहीं है। कोई नया इतिहास नहीं है। मोहम्मद गौरी से लेकर आज तक का इतिहास ये बताता है कि हिन्दु के पहले शत्रु अपने होते हैं, बाहर वाले नहीं। आज यह समय आ गया है कि जब हम अपने तमाम मतभेद, अपनी तमाम छोटी-छोटी बातों को भूल जायें। अपने तमाम सपने एक बार देश के सपने में विलीन कर दें और कोई क्यों हमसे लड़ने आ रहा है और भीतर से भारत को कमजोर करने का षड्यंत्र कर रहा है, उसको समझ पराभूत करने के लिए हम अपनी सैन्य समान शक्ति का प्रदर्शन करें। ये समय सदियों के बाद आया है। ये समय एक युग परिवर्तन का समय है। यदि अब चूक गये तो जाने कितनी विदेश शक्तियां भारत को आजादी की खुशियों से अलग कर देंगी और लूट-खसोट करने, भ्रष्टाचारी और विदेशी तत्वों के अंतगर्त काम करना पड़ेगा। ये समय चूक का नहीं है। मत चूको चौहान यही हमारा मंत्र होना चाहिए।

जिन तत्वों ने विजय नगर साम्राज्य को षड्यंत्र से परास्त किया होगा, जिन्होंने हमारी सभ्यता को नष्ट किया, जिन्होंने सोमनाथ को 18 बार ध्वस्त किया, जिन्होंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में हिन्दुओं को परास्त करके उनके मंदिर नष्ट किये तथा नरसंहार किये, जिन्होंने आजादी के बाद भी हिन्दुओं को कश्मीर में विस्थापित बनाया उनको हम कभी भी चैन से नहीं बैठने देंगे। उन्हें जीतने नहीं देंगे। उनको हिन्दुओं की शक्ति के विरोध में सफल नहीं होने देंगे। ये आज का मंत्र और यही तंत्र के पीछे शक्ति होनी चाहिए- मत चूको चौहान।

-तरुण विजय

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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