शाह महमूद कुरैशी निर्लज्ज हो तुम, पेशावर में मारे गये बच्चों की आत्माओं को रुला दिया तुमने

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यकीनन पेशावर के आर्मी स्कूल में मारे गये बच्चों की रूहें आज अपने देश को कोस रही होंगी जोकि उनकी दर्दनाक मौत पर राजनीति कर रहा है। पाकिस्तान, भारत के खिलाफ तुम्हारे पास मुद्दे नहीं हैं तो बच्चों की कब्र खोद कर मुद्दा निकाल लाये !

शर्म करो पाकिस्तान, शर्म करो। यकीनन पेशावर के आर्मी स्कूल में मारे गये बच्चों की रूहें आज अपने देश को कोस रही होंगी जोकि उनकी दर्दनाक मौत पर राजनीति कर रहा है। पाकिस्तान, भारत के खिलाफ तुम्हारे पास मुद्दे नहीं हैं तो बच्चों की कब्र खोद कर मुद्दा निकाल लाये ! पाकिस्तान के हुक्मरानों तुम शायद भाषण देने से पहले रिसर्च भी ठीक से नहीं करते और भारत पर इल्जाम लगा कर खुद को और फँसा लेते हो। पेशावर में जो कुछ हुआ उसकी निंदा करने में, उस पर शोक प्रकट करने में भारत तुम्हारे साथ पूरी तरह खड़ा था और तुमने भारत पर ही इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप लगा दिया। शर्म करो पाकिस्तान, शर्म करो।

मामला क्या है ?

उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि पाकिस्तान पेशावर के स्कूल में 150 बच्चों की हत्या को कभी नहीं भूलेगा। इस हमले और कई अन्य हमलों का संबंध ‘भारत द्वारा समर्थन प्राप्त आतंकवादियों’ से जुड़ा है। कुरैशी के इस आरोप पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। भारत ने कुरैशी के बयान को 'घृणास्पद आक्षेप’ करार देते हुए कहा कि यह बयान इस हमले में मारे गए बच्चों की याद को अपमानित करना है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन की राजदूत ईनाम गंभीर ने भारत के जवाब देने के अधिकार का उपयोग करते हुए कुरैशी द्वारा महासभा के संबोधन में लगाए गए आरोपों को निराधार बताया। गंभीर ने कहा, ''चार साल पहले पेशावर के एक स्कूल पर हुए भयानक हमले के संबंध में लगाया गया घृणित आरोप बेहद आक्रोशित करने वाला है।'' 

घटना का विवरण

इस मामले पर गौर करें तो यह घटना 16 दिसम्बर, 2014 की है, उस दिन मंगलवार की सुबह पाकिस्तान के पेशावर में एक आर्मी स्कूल में आ‍तंकी हमले में 141 लोग मारे गये और मरने वालों में 132 से ज्यादा बच्चे थे जबकि 9 लोग स्कूल के स्टाफ के थे। घायलों की संख्या 250 से ज्यादा थी। उस दिन हुआ यह था कि आर्मी स्कूल में 7 आतंकवादी घुस आए और छात्रों व टीचरों पर अंधाधुंध फायरिंग की। आतंकवादियों ने अधिकतर बच्चों को सिर में गोली मारी। देखते ही देखते पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने स्कूल को घेर लिया और पाकिस्तान सेना ने मुठभेड़ में पांच आतंकवादियों को मार गिराया जबकि एक आतंकवादी ने खुद को धमाके में उड़ा लिया था। उस समय पाकिस्तानी सेना ने बताया था कि स्कूल से करीब 960 लोगों को सकुशल निकाल लिया गया है।

हमले की जिम्मेदारी टीटीपी ने ली थी

पाकिस्तान अगर भूल गया है तो उसे याद दिला दें कि हमले के तुरंत बाद तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) ने बयान जारी कर आर्मी स्कूल पर हमले को ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब और ऑपरेशन खैबर-1 का बदला बताया था। टीटीपी ने अपने बयान में कहा था कि स्कूल पर हमला इसलिए किया गया कि सेना हमारे परिवार पर हमला करती है। हम चाहते हैं कि सेना उस दर्द को महसूस करे। टीटीपी प्रवक्ता ने हमले को उत्तरी वजीरिस्तान में आर्मी ऑपरेशन का बदला भी बताया था।

सैन्य अदालतों का गठन क्यों ?

पाकिस्तान अगर भूल गया है तो उसे याद दिला दिया जाये कि उसके तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने आर्मी स्कूल पर हमले के बाद देश में सैन्य अदालतों का गठन किया था और कट्टर आतंकवादियों को धड़ाधड़ मौत की सजा की पुष्टि की जाने लगी थी। सैन्य अदालतें जिन आतंकवादियों को मौत की सजा की पुष्टि कर रही थीं उनमें सशस्त्र बलों, विधि प्रवर्तन एजेंसियों पर हमले के दोषी शामिल थे। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, एम्नेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों ने पाकिस्तान से मृत्युदंड रोकने की मांग की लेकिन पाकिस्तान ने यह कहते हुए उनकी मांगों को ठुकरा दिया कि इससे देश में आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2016 तक पाकिस्तान की सैन्य अदालतें 500 से ज्यादा लोगों को फाँसी पर लटका चुकी थीं।

हमले के मास्टरमाइंड को तो अमेरिका ने मार गिराया था

पाकिस्तान अगर भूल गया है तो उसे याद दिला दें कि जुलाई 2016 में बाचा खान विश्वविद्यालय हमले एवं पेशावर स्कूल नरसंहार का मास्टरमाइंड और उसके चार अन्य साथी अफगानिस्तान में अमेरिका के एक हवाई हमले में मारे गए थे। पेंटागन ने इस बात की पुष्टि की थी। पेंटागन के प्रेस सचिव पीटर कुक ने 13 जुलाई, 2016 को बताया था कि तारिक गिदार समूह का एक कुख्यात आतंकवादी नेता उमर खलीफा नांगरहार में मारा गया। उमर नाराई के नाम से भी जाना जाने वाला खलीफा पाकिस्तान में हुए कई आतंकवादी हमलों का मास्टरमाइंड था। इनमें जनवरी 2016 में बाचा खान यूनिवर्सिटी पर हुआ हमला, सितंबर 2015 में बदाबेर वायु सेना स्टेशन पर हुआ हमला, दिसंबर 2014 में पेशावर स्कूल पर हुआ हमला शामिल है। 

यही नहीं अमेरिका ने पेशावर के स्कूल पर हमले के एक और मास्टरमाइंड उमर मंसूर उर्फ उमर नारे को भी ड्रोन हमले में मार गिराया था। जुलाई 2016 की पाकिस्तानी अखबार डॉन की एक रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान में नांगरहार प्रांत के बंदर इलाके में अमेरिकी ड्रोन हमले में उमर मंसूर उर्फ उमर नारे एक अन्य आतंकवादी नेता कारी सैफुल्ला के साथ मारा गया था। ‘द डॉन’ के अनुसार एक अधिकारी ने बताया कि उनके पास सैफुल्ला के साथ मंसूर के मारे जाने की विश्वसनीय रिपोर्ट है। सैफुल्ला तालिबान आत्मघाती हमलावरों का प्रभारी था। अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने 25 मई को उमर मंसूर को वैश्विक आतंकवादी करार दिया था जिसके बाद मंसूर के अमेरिका की हिट-लिस्ट में शामिल किए जाने का रास्ता साफ हो गया था।

पेशावर हमले पर भारत भी था दुखी

इमरान खान की सरकार अगर भूल गयी है तो उसे बता दें कि पेशावर स्कूल पर हमले के तुरंत बाद भारत ने आतंकवादियों के इस कायराना कृत्य की कड़ी निंदा की थी। शायद यह पहला अवसर था जब भारत के स्कूलों और शहरों में पेशावर में मारे गये लोगों की याद में कैंडल मार्च निकाले गये, शोक प्रस्ताव पढ़े गये और दो मिनट का मौन रखा गया। निर्लज्ज है पाकिस्तान की सरकार जिसने अपने पड़ोसी की सद्भावना को अपनी राजनीति चमकाने की खातिर खारिज कर दिया। 

पाकिस्तान अगर भूल गया है तो उसे बता दें कि भारतीय संसद का दिसंबर में शीतकालीन सत्र चल रहा था और तब संसद ने पेशावर हमले की कड़ी भर्त्सना करते हुए इसे मानवता के प्रति गंभीर अपराध बताया था और मारे गये लोगों के सम्मान में मौन रखा गया था। लोकसभा में अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने जब इस जघन्य हमले का उल्लेख किया था तो पूरे सदन ने इसकी निंदा करते हुए संकल्प व्यक्त किया था कि निर्दोष लोगों विशेष रूप से बच्चों को खिलाफ आतंकवादी हमले को सहन नहीं किया जाएगा और ऐसी जघन्य अपराधों के दोषियों को कड़ा से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए। सदन ने पाकिस्तान की आम जनता, शोक संतप्त परिवारों तथा घायलों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना और सांत्वना व्यक्त की और दो मिनट का मौन रखा। यही नहीं राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने कहा था कि पेशावर के एक स्कूल पर कातिलाना और बुजदिली के आतंकवादी हमले की जितनी भी निंदा की जाये वह कम है। उन्होंने इस दु:खद घटना को एक त्रासदी बताया था। उन्होंने कहा था कि आतंकवाद से चुनौतीपूर्ण ढंग से लड़ना होगा। बाद में सदस्यों ने दो मिनट मौन खड़े होकर श्रद्धांजलि दी थी।

बहरहाल, पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री इमरान खान को पेशावर स्कूल हमले की याद इसलिए भी आई है क्योंकि जब यह हमला हुआ तो खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में इमरान खान की पार्टी पीटीआई का ही शासन था। कानून व्यवस्था राज्य का विषय पाकिस्तान में भी है इसीलिए यह हमला पीटीआई सरकार की विफलता भी थी। अब इमरान खान अपनी विफलता का ठीकरा कहीं और फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। इमरान खान एक ओर तो प्रस्ताव भेज कर वार्ता बहाली का आग्रह करते हैं और दूसरी ओर सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इमरान खान पाकिस्तानी सेना के मोहरे हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र में भारत को घेरने के मामले में वह अपने पूर्ववर्तियों से ज्यादा कुटिल निकले। इमरान खान के पूर्ववर्ती तो कश्मीर के मुद्दे पर ही उल-जुलूल बोला करते थे लेकिन इमरान खान की सरकार तो बच्चों की मौत पर ही राजनीति करने लगी। शर्म करो पाकिस्तान, शर्म करो।

-नीरज कुमार दुबे

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