ननों की दुर्दशा के समाचारों ने चर्चों के अमानवीय चेहरे को उजागर किया

inhuman-faces-of-the-churches-are-exposed
राकेश सैन । Sep 15 2018 2:46PM

पीड़िता ने ईसाई धर्म केंद्र वेटिकन सिटी में भी इंसाफ की गुहार लगाई है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बिशप फ्रेंको मुलक्कल ने रावण द्वारा की गई सीताहरण जैसी आत्मघाती गलती दोहरा ली है जो उसकी सोने की लंका का नाश का कारण बनने जा रही है।

पंजाब में केरल मूल के ईसाई धर्मगुरु बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर एक नन द्वारा लगाए गए दुराचार के आरोप ने चर्च व प्रशासन के अमानवीय चेहरे को एक बार फिर उजागर कर दिया है। प्रभावशाली धर्मगुरु फ्रेंको पर आरोप लगते ही प्रशासन व चर्च एकदम सक्रिय हो गए परंतु पीड़ित नन को न्याय दिलवाने के लिए नहीं बल्कि आरोपी को बचाने के लिए। किसी पादरी या बिशप द्वारा किया गया यौन शोषण का कोई यह पहला मामला नहीं है परंतु अबकी बार पीड़ित नन इस बात को लेकर तो सौभाग्यशाली रही कि उसे अब समाज, चर्च के भीतर के कुछ लोगों का तो साथ मिला है अन्यथा पहले के मामले तो यूं ही आए गए कर दिए जाते रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में चर्च के भीतर ननों की दुर्दशा को लेकर आ रहे समाचारों को देख कर आज हर ईसाई साध्वी प्रभु ईसा मसीह से यही प्रार्थना करती दिखती है कि -हे प्रभु ! अगले जन्म मोहे 'नन' न कीजो।

पंजाब के जालंधर स्थित देश के 145 महत्त्वपूर्ण बिशपों में से एक फ्रेंको मुलक्कल पर सैक्रेड हार्ट में काम कर चुकी नन ने आरोप लगाए कि उसने 2014 से लेकर 2016 तक दुराचार किया और केवल बलात्कार ही नहीं बल्कि अप्राकृतिक संबंध स्थापित किए। नन ने पहले इसकी शिकायत चर्च को की परंतु वहां उसकी कोई सुनवाई न हुई बल्कि उसे चुप रहने की नसीहत दी गई। काफी संघर्ष के बाद केरल के कोट्टयम जिले के चंगानासरी में न्यायालय में पीड़िता के ब्यान दर्ज किए गए। उक्त मामला सामने आने के बाद अब कई तरह की बातें खुल रही हैं। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई अन्य देशों से मिले आंकड़ों पर गौर करे तो चर्च दुष्कर्म का अड्डा बन गया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में आस्था की आड़ में पादरियों ने महिलाओं या ननों के साथ ही, नहीं बल्कि मासूम बच्चियों को भी अपने हवस का शिकार बनाया। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें कई पादरी अपनी पहुंच और प्रभाव के चलते कानून के लंबे हाथों को बौना साबित कर चुके हैं। पादरियों पर लोगों की आस्था होती है और प्रशासनिक व राजनीतिक प्रभाव भी। इनके खिलाफ चर्च या कानून के पास शिकायत दर्ज करवाना और न्याय पाना कोई खालाजी का बाड़ा नहीं है। 

चर्च में पादरियों का निरंतर गिर रहा चरित्र ईसाई समाज के लिए खतरा बनता जा रहा है। एक रिकार्ड के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में सात प्रतिशत कैथोलिक पादरी बच्चों के यौन शोषण में लिप्त पाए गए। वर्ष 1950 से 2010 के बीच हुए इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि ऑस्ट्रेलिया कैथोलिक पादरी बच्चों के यौन शोषण में लिप्त रहे हैं। एक अन्य जांच में वहां के करीब 40 फीसद चर्च पर बच्चों के यौन शोषण के आरोप लगे हैं। ऑस्ट्रेलिया के रॉयल कमीशन के पास वर्ष 1980 से 2015 के बीच 1000 कैथोलिक इंस्टीट्यूशनों के खिलाफ 4500 लोगों ने यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी। रॉयल कमीशन बाल यौन शोषण से जुड़े मामलों की जांच करती है। खास बात यह है कि इसमें से अधिकतर पादरी और धार्मिक गुरु कानून के शिकंजे से आसानी से बच निकलने में सफल भी रहे। इतना ही नहीं इन मामलों में रिपोर्ट दर्ज कराने में ही औसत 33 साल का समय लगा जो पूरी व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा करने के लिए पर्याप्त उदाहरण है। करीब एक माह पूर्व अमरीका में पेन्सिलवेनिया राज्य के सर्वोच्च न्यायालय ने कैथोलिक चर्चों में यौन शोषण से जुड़ी एक ज्यूरी की रिपोर्ट को जारी किया था जिसमें 300 से ज्यादा पादरियों के नाम यौन शोषण में शामिल हैं। ज्यूरी ने पाया कि सात दशकों में पदारियों ने एक हजार से ज्यादा बच्चों का यौन शोषण किया है। यह अमेरिका के केवल एक राज्य का हाल है बाकी देश और दुनिया के आंकड़े एकत्रित किए जाएं तो ईसाई समाज की भयावह तस्वीर सामने आएगी। 

कन्फेशन कैथोलिक चर्च के सात संस्कारों में से एक है। माना जाता है कि जब हम कोई गलत काम करते हैं, तो हमारा ईश्वर के साथ नाता टूट जाता है। ऐसे में ईश्वर के साथ दोबारा रिश्ता बनाने के लिए हमें कन्फेशन की जरूरत पड़ती है। ये पादरी कन्फेशन के तहत रूठे ईश्वर को मनाने व अपराध बख्शाने के सेतु माने जाते हैं। यह प्रक्रिया लगभग वैसी है जैसे कि हिंदू धर्म में गंगा स्नान किया जाता है कि जिसके बाद व्यक्ति पापमुक्त माना जाता है। कन्फेशन करने आए व्यक्ति या महिला को पादरी अपने साथ कन्फेशन रूम में ले जाता है। याची अपना किया गया अपराध कबूल करता है और पादरी इस पर ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह उसे माफ करे। लेकिन देखने में आ रहा है कि कई पादरी याची के अपराधबोध को उसकी कमजोरी के रूप में लेते हैं और उसी के आधार पर उसे ब्लैकमेल करते हैं। अपराधबोध से ग्रस्त व भयभीत याची इसकी शिकायत कानून से भी नहीं कर पाता क्योंकि ऐसा करने पर उसे सजा मिलने का खतरा बढ़ जाता है। इस परंपरा की आग ने न जाने कितने घर फूंके जा चुके हैं। शादी से बाहर रिश्ते, चोरी, जलन और गुस्से, गर्भपात से लेकर विवाहोत्तर संबंध तक के मामले कन्फेशन के लिए आते हैं। इन मामलों में पीड़ितों को ब्लैकमेल करना आसान होता है। 

हाल ही में फरवरी महीने में केरल की एक चर्च के पादरियों पर एक विवाहित महिला ने सालों से यौन उत्पीड़न और ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है। पीड़ित महिला ने पादरी के सामने कन्फेशन के दौरान कहा कि 16 साल की उम्र से शादी होने तक एक दूसरा पादरी उसका यौन उत्पीड़न करता रहा है। उसे न्याय नहीं मिला। यह महिला जब पादरी-काउंसलर के पास गई, जो दिल्ली से कोच्चि गया था तो वहां भी उससे दुर्व्यवहार हुआ। महिला के पति ने मलंकारा ऑर्थोडक्स सीरियाई चर्च में भी शिकायत की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। 1999 में केरल में एक पादरी से गर्भवती होने वाली नाबालिगा का मामला उठाने वाले प्रोफेसर सेबेस्टियन वत्तमत्तम कहते हैं, पादरी का यौन उत्पीड़न करना एक तथ्य है लेकिन चर्च उसे ढंकने के लिए जिस रास्ते पर चल निकला है वो अधिक गंभीर मुद्दा है। देश के कई चर्चों में अपना ही संविधान चलता है। यहां इस तरह की शिकायत पहले चर्च के अधिकारियों द्वारा की जाती है जिस पर अनावश्यक रूप से लटकाने व भटकाने के आरोप लगते रहे हैं। जांच में आरोप सही मिलने के बाद कानून या पुलिस प्रशासन को शिकायत दर्ज करवाई जाती है। दूसरी दृष्टि में चर्च देश के अंदर एक अलग देश की तरह काम करता है और अपनी व्यवस्था पर लोहावरण चढ़ा कर रखता है। इससे चर्च के अंदर होने वाले अपराध अंदर ही कोफिन में दफना दिए जाते हैं। चर्च व धर्मगुरुओं की आध्यात्मिक छवि, प्रशासनिक व राजनीतिक प्रभाव, समाज पर पकड़ होने के कारण पीड़ितों को अंतत: अपमान का घूंट कर ही संतोष करना पड़ता है। 

लेकिन बदल रही परिस्थितियों में ईसाई समाज व ननों में भी नई चेतना का विकास हो रहा है और बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर आरोप लगाने वाली नन ने जिस दृढ़ता से अपनी बात समाज व कानून के सामने रखी उसने चर्च व इसकी पूरी प्रणाली की चूलें हिला कर रख दी हैं। खुशी की बात यह भी है कि फ्रेंको की वासना की शिकार नन को खुद ईसाई समाज से खुल कर समर्थन मिला है। केरल व पंजाब में आए दिन बिशप की गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं। बिशप मुलक्कल अपने आप को निर्दोष बताते हुए नन पर ही तोमहत मढ़ने के प्रयास में है परंतु पीड़िता ने ईसाई धर्म केंद्र वेटिकन सिटी में भी इंसाफ की गुहार लगाई है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बिशप फ्रेंको मुलक्कल ने रावण द्वारा की गई सीताहरण जैसी आत्मघाती गलती दोहरा ली है जो उसकी सोने की लंका का नाश का कारण बनने जा रही है।

-राकेश सैन

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़