जम्मू कश्मीर में होगा दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल

दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में पहले से ही शुमार भारतीय रेलवे एक नया रिकार्ड बनाने जा रहा है। रेलवे दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज बना रहा है जो एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ज्यादा ऊंचा होगा।

कौड़ी-रियासी (जम्मू कश्मीर)। कौड़ी इलाके के बारे में बहुत ही कम लोगों ने सुना होगा जोकि रियासी जिले में प्रत्यक्ष रूप से एक छोटा सा क्षेत्र है। यह इलाका पूरी दुनिया की पहुंच से बाहर है। पर अब यह सुर्खियों में इसलिए है क्योंकि कोंकण रेलवे द्वारा इस इलाके में जो रेलवे का सबसे ऊंचा पुल बनाया जा रहा है वह दुनिया का सबसे ऊंचा रेल का पुल होगा। रियासी जिले में चिनाब नदी पर दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल के निर्माण का कार्य फिर से शुरू कर दिया गया जब आईआईटी दिल्ली के एक दल ने इसे सुरक्षित करार दिया। कटड़ा से बनिहाल रेल सम्पर्क वाली 125 किलोमीटर लम्बी चिनाब रेल पुल को पेरिस के आईफल टावर से 35 मीटर ऊंचा बताया जा रहा है। आईफल टावर की ऊंचाई 324 मीटर बताई जाती है।

दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में पहले से ही शुमार भारतीय रेलवे एक नया रिकार्ड बनाने जा रहा है। रेलवे दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज बना रहा है जो एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ज्यादा ऊंचा होगा। एफिल टॉवर की ऊंचाई 324 मीटर (1063 फीट) है। फिलहाल उत्तरी जम्मू और कश्मीर को जोड़ने के लिए चिनाब नदी पर धनुषाकार स्टील का ढांचा तैयार किया जा रहा है। रेलवे के अनुसार इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर (1177 फीट) होगी। जब यह पूरा बन कर तैयार हो जाएगा, तो यह अभी चीन के बेपेजिंयाग नदी पर बने दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे ब्रिज से भी बड़ा होगा। चीन का यह रेलवे पुल 275 मीटर ऊंचा है।

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रो. केएस राव के नेतृत्व में आईआईटी दिल्ली के एक दल ने करीब पांच साल पहले 359 मीटर ऊंचे पुल के लिए सुरक्षा परीक्षण किया था। परीक्षण में पाया गया कि पुल निर्माण सभी सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं। गौरतलब है कि पुल के निर्माण के कार्य पर साल 2008 में रोक लगा दी गई थी जब इसकी सुरक्षा और उसकी श्रृंखला संतुलन पर चिंता व्यक्त की गई थी। रेलवे ने इस विषय पर रेलवे बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एम रवींद्रन की अध्यक्षता में सात सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस विशेषज्ञ समिति में आईआईटी मुम्बई, पंजाब विश्वविद्यालय और आस्ट्रिया के परामर्शक शामिल थे। विशेष समिति ने चिनाव नदी पर 1,315 मीटर लम्बे तथा 359 फुट ऊंचे पुल को पूरी तरह से सुरक्षित पाया था लेकिन उसने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए एक स्वतंत्र एजेंसी से इसका परीक्षण कराने का सुझाव दिया था।

एक रेलवे अधिकारी के अनुसार दिसंबर 2016 तक तैयार हो जाने वाले इस पुल का डिजाइन इस तरह से तैयार किया गया है कि यह खतरनाक तेज हवाओं और अन्य भूगर्भीय हलचलों को झेलने में सक्षम होगा। कोंकण रेलवे कार्पोरेशन की देखरेख में बन रहे इस सबसे ऊंचे पुल की लागत करीब 92 मिलियन (92000000 रूपए) आएगी। इंडो-यूरोपियन साझेदारी से संयुक्त रूप से चलाई जा रही कोंकण रेलवे की इस परियोजना का हिस्सा 359 मीटर ऊंचा पुल है जो देश के साथ-साथ विश्व में आकर्षण का केंद्र भी इसलिए होगा क्योंकि समुद्रतल से 859 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र में से जो रेल पुल से गुजरेगी उससे नीचे झांकने की हिम्मत शायद ही कोई कर पाए।

यह पुल फ्रांस में माईलो रोड ब्रिज का रिकार्ड तोड़ने जा रहा है। चिनाब दरिया पर बनने जा रहा यह पुल कौड़ी और बल इलाकों को आपस में जोड़ेगा और यह परियोजना कोंकण रेलवे के लिए एक उपलब्धि होगी क्योंकि इलाके में मात्र 25 परिवार रहते हैं जिन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका इलाका विश्व रेलवे के इतिहास में नए पन्ने लिखने जा रहा है और वैसे भी माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा से 25 किमी की दूरी पर आंजी नाले पर बनाए गए आंजी पुल के बाद कोंकण रेलवे के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है जो जम्मू-श्रीनगर रेलवे मार्ग का सबसे ऊंचा पुल बनाने जा रही है।

जिस चिनाब दरिया पर इस पुल को बनाया जा रहा है वह संवेदनशील माना जाता रहा है और जिस इलाके में इसे बनाया जा रहा है वहां तो पहुंच पाना ही संभव नहीं था। यह पुल 1315 मीटर लम्बा होगा जिसके लिए वर्ष 2008 में 600 करोड़ रूपयों की लागत आंकी गई थी जो अब बढ़ गई है। पहले इसे दिसम्बर 2009 तक पूरा कर लिए जाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन सुरक्षा मानकों पर चिंता प्रकट किए जाने के बाद इसका काम बंद कर दिया गया था। इस पुल के प्रति एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें 25 हजार मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल होगा। भले ही शुरूआती दौर में यह परियोजना विशेषज्ञों को व्यावसायिक तौर पर सार्थक नहीं लगी हो लेकिन अब यह भारतीय रेलवे के लिए एक गर्व की बात है तथा साथ ही प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बन गया है कि जम्मू कश्मीर को रेलवे के जरिए शेष देश से जोड़ा जाना है।

निर्माण के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कोंकण रेलवे के अधिकारी कहते थे कि निर्माण कार्य कठिन कार्य नहीं है लेकिन एक चुनौतीपूर्ण कार्य जरूर है विशेष रूप से जब कोई इसके बारे में विचार करें कि आपको ऐसे स्थान पर रेल की पटरी को बिछाना है जो पहुंच से बाहर होने के साथ ही भौगौलिक परिस्थितियों के रूप में खतरनाक मंजर पेश करता हो। यह ब्रिज बारामुल्ला को जम्मू से जोड़ेगा। पुल बन जाने के बाद इस रूट पर लगने वाला समय पहले के मुकाबले आधा ही रह जाएगा। पुल को बनाने के लिए 25000 टन स्टील का उपयोग होगा। स्टील समेत अन्य सामान को हैलीकाप्टर्स के जरिए यहां पहुंचाया जा रहा है क्योंकि इस क्षेत्र में रास्ते बेहद खतरनाक हैं। गौरतलब है कि इस ब्रिज पर 2002 में काम शुरू किया गया, लेकिन सुरक्षा, इस जगह पर चलने वाली तूफानी हवाओं और लागत से जुड़ी समस्याओं के चलते 2008 में काम रोक दिया गया। दो साल बाद फिर इन समस्याओं का निदान ढूंढ़कर काम शुरू किया गया।

रेलवे अधिकारियों के अनुसार नदी पर पुल बनाने में सबसे बड़ी चुनौती थी नदी का बहाव रोके बिना निर्माण कार्य करना। इस ब्रिज के आधार स्तंभों तक पहुंचने के लिए भी नई सड़कों का निर्माण करना पड़ा। परियोजना के निर्माण कार्य में सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि कोंकण रेलवे को कौड़ी तक पहुंचने के लिए सबसे पहले 119 किमी लम्बी सड़क का निर्माण करना था जो शुरू में असंभव इसलिए दिखा था क्योंकि समुद्रतल से 859 मीटर की ऊंचाई पर सड़क का निर्माण भी उतना ही कठिन था जितना इस पुल और रेलवे लाइन को बिछाने का काम।

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